बिहार कैबिनेट ने कल निर्णय किया कि हर साल 3 जून को जार्ज फर्नांडिस का जन्मदिन राजकीय समारोह के रूप मनाया जाएगा। यह निर्णय बहुत पहले हो जाना चाहिए था। खैर, देर आए दुरुस्त आए। यह निर्णय सराहनीय है। जार्ज से संबंधित मेरे पास अनेक संस्मरण हैं। यदि अपने संस्मरणों की प्रस्तावित पुस्तक लिख पाया तो उसमें वह सब भी समाहित रहेगा।
थोड़े में यह कहा जा सकता है कि जार्ज एक अत्यंत ईमानदार नेता थे। उन्होंने अपने लिए कोई संपत्ति नहीं बनाई। वे शब्द के सही अर्थों में धर्मनिरपेक्ष थे। वह पहले दर्जे के निडर राजनीतिक योद्धा थे। वे एक देशभक्त नेता थे। आपातकाल में जब कई नेता चूहों की तरह बिल में छिप गए थे, जार्ज बंगलोर के पास की उस पहाड़ी पर अपने चुने हुए साथियों को डायनामाइट की ट्रेंनिंग दे रहे थे जहां शोले फिल्म की शूटिंग हुई थी। मैं भी तब बंगलोर में था।
बाद में जार्ज से मेरा एक सैद्धांतिक मामले में मतभेद हो गया था और मैंने उनसे मिलना बंद कर दिया था। पर, किसी एक बात के कारण देश-समाज के प्रति उनके कुल योगदान में कोई कमी नहीं आती है। मैंने वैसे नेताओं से संबंधित संस्मरण भी सकारात्मक ढंग से लिखे हैं जिन्हें मैंने पसंद नहीं किया। या, उन्होंने मुझे नापसंद किया।
किसी के योगदान का मेरी पसंदगी-नापसंदगी से कोई संबंध नहीं होता। इतिहास जैसा घटित हुआ है, वह भरसक उसी रूप में लोगों के सामने जाना चाहिए। अन्यथा, आप डंडीमार इतिहासकार हैं। डंडीमार इतिहासकारों ने इस देश का बड़ा नुकसान किया है।
---सुरेंद्र किशोर --29 मई 2020
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