हम बिहारियों को भले पिछड़ा कहो,पर हम
कम मांसाहारी हैं और हम अपने खेतों में अपेक्षाकृत
कम रासायनिक खाद का इस्तेमाल करते हैं।
यह हमारे लिए अभिशाप नहीं,वरदान है।
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सुरेंद्र किशोर
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‘‘बिहार में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 0.77 ग्राम मुर्गा उपलब्ध।
वहीं 3.2 ग्राम राष्ट्रीय औसत
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मांसाहार की खपत में बिहार काफी पीछ।’’े
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ऊपर लिखी खबर आज के ‘प्रभात खबर’ से ली गयी है।
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यह बहुत ही अच्छी खबर है।
औरों को कुछ भी लगे,मैं बिहार के लिए इसे शुभ मानता हूं।
कम से कम मांसाहार,यानी कैंसर की कम से कम आशंका।
रासायनिक खाद-कीटनाशक से उपजाए गये अनाज आदि में आर्सेंनिक पाया जाता है जो कैंसरकारी है।
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अभी तो मेरे पास सटीक आंकड़ा नही हैं,किंतु रासायनिक खाद का इस्तेमाल भी बिहार में अपेक्षाकृत कम होता है।
कुछ विशेषज्ञ इसे बिहार का पिछड़ापन मानते रहे हैं।
पर,मैं इसे पिछड़ापन नहीं बल्कि दूरदर्शिता है।
अब जैविक खेती की तरफ बिहार आगे बढ़ रहा है।
रासायनिक खाद के सर्वाधिक इस्तेमाल का परिणाम पंजाब झेल रहा है।
भटिंडा से बिकानेर के लिए ‘‘कैंसर मेल’’ खुलता है।बिकानेर में कैंसर का मुफ्त इलाज होता है।
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चिकेन से अधिक प्रोटीन तो मूंगफली में पाया जाता है।
पटना में हिन्दुस्तान अखबार आॅफिस के बगल में कभी बकरी बाजार हुआ करता था।
दिवंगत पत्रकार मोइन अंसारी ने मुझे बताया था कि वहां अंग्रेज के जमाने में पशु चिकित्सक बैठता था।
जिस पशु को काट कर उसका मांस खाने के लिए बेचा जाना होता था,चिकित्सक उसकी जांच करता था।यह देखने के लिए कि उस पशु को कोई बीमारी तो नहीं है।
तभी वह कटने के लिए जाता था।
तब कानून का शासन था।
वह नियम आज भी है।पर,क्या उसका पालन होता है ?
आज नजराना-शुकराना के समक्ष लोगों के स्वास्थ्य की किसको चिंता है ?
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पोल्ट्री फार्मों में अधिकाधिक पावर का एंटी बाॅयोटिक मुर्गे-मुर्गी को दिया जाता है ताकि वे मरे नहीं।नहीं देने पर 10 प्रतिशत मर जाते हैं।
द हिन्दू ने रिसर्च के आधार पर इस पर बहुत अच्छी खबर छापी थी।
उतना एंटी बाॅयोटिक उसके शरीर में प्रवेश कर जाता है ।
फिर उसका मांस खाने वालों पर कैसा असर पड़ता है ?
असर यह होता है कि उस व्यक्ति का शरीर हाई एंटी बाॅयोटिक रजिस्टेंट हो जाता है।
यानी, जब वह व्यक्ति बीमार होता है तो उस पर हाई एंटी बायटिक भी असर नहीं करता।
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हम बिहारी अपेक्षाकृत कम रासायनिक खाद-कीटनाशक दवाएं अपने खेतों में इस्तेमाल करते हैं।
उसका का भी हमें फायदा है।
पंजाब की अपेक्षा हमारे यहां कैंसर के मरीज कम हंै।
यदि हम धीरे -धीरे जैविक खादों से ही अधिकाधिक खेती करने लगें तो हमें कैंसर की बीमारी कम होगी।
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कैंसर की बीमारी का सर्वाधिक दर्दनाक पक्ष यह है कि कैंसर मरीजों को आखिरी स्टेज में जो अपार दर्द होता है,उस दर्द को कम करने या खत्म करने की दवा का अभी आविष्कार नहीं हुआ।
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22 नवंबर 23
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