गुरुवार, 2 नवंबर 2023

 जेठमलानी के कैरियर में उछाल आ गया था नानावती-प्रेम आहूजा केस के साथ 

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इस कांड को लेकर कई किताबें लिखी गयीं और ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ सहित कई फिल्में भी बनीं

          सुरेंद्र किशोर 

दिवंगत राम भूलचंद जेठमलानी ने कहा था कि 

‘‘नानावती -प्रेम आहूजा केस मेरे कैरियर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।’’

यह बात तब की है जब दिवंगत जेठमलानी बंबई में प्रैक्टिस कर रहे थे।

 नौ सेना के कमांडर के.एम.नानावती ने 27 अप्रैल, 1957 को प्रेम आहूजा की गोली मार कर हत्या कर दी थी।

हत्या के बाद नानावती ने खुद को पुलिस के हवाले कर दिया था।

दरअसल प्रेम आहूजा का नानावती की पत्नी सिल्विया से अवैध संबंध था।

जब नानावती ने प्रेम आहूजा के घर जाकर उससे  कहा कि तुम मेरी पत्नी से शादी कर लो तो आहूजा ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया। 

वह एक प्लेबाॅय का जीवन जी रहा था।

आहूजा का इनकार सुनकर नानावती ने उसे तीन गोलियां मारीं । उसकी मौत हो गयी।

  नानावती ऊंची पहुंच वाला व्यक्ति  था।वह ब्रिटेन में भारतीय हाई कमिश्नर वी.के.कृष्ण मेनन का रक्षा सहचारी रह चुका था।बाद में उसे उसका लाभ भी मिला।

इस बहु चर्चित घटना को लेकर बाद में कई फिल्में बनीं।

किताबें लिखी गयीं।

रात जेठमलानी अविभाजित भारत के सिंध प्रांत के शिकार पुर में  14 सितंबर 1923 को  जन्मे थे । गत 8 सितंबर 2019 को उनका निधन हो गया।

एक साथ दो -दो क्लास पास कर लेने के कारण बेजोड़ प्रतिभाशाली जेठमलानी 13 साल की उम्र में ही मैट्रिक पास कर गए थे।

17 साल की उम्र में लाॅ ग्रेजुएट हो गए।

पर, तब  प्रैक्टिस करने  की  न्यूनत्तम उम्र नियमतः 21 साल तय थी। जेठमलानी के लिए उस नियम को बदल कर 18 किया गया।

देश के बंटवारे के बाद जेठ मलानी बंबई आकर प्रैक्टिस करने लगे।

  नानावती-प्रेम आहूजा केस में राम जेठमलानी लोअर कोर्ट के सरकारी वकील यानी पी.पी., सी.एम.त्रिवेदी के सहायक थे।

सरकारी वकील आधे मन से केस लड़ रहे थे।

उसके कई कारण थे।

एक कारण यह भी हो सकता है कि उन दिनों हत्यारे नानावती के साथ जन भावना थी।

हजारों की भीड़ केस की प्रगति जानने के लिए उत्सुक रहती थी।

कुछ अन्य कारणों की चर्चाएं भी बंबई की हवाओं में थीं।

पर जेठमलानी अपना काम पेशेवर ढंग से करना चाहते थे।

कर भी रहे थे।इस बात पर पहले तो दोनों के बीच मतभेद हुआ।

 पी.पी.ने जेठमलानी की सलाहों की उपेक्षा की।

पर बाद में सलाह के लिए वे जेठमलानी पर ही निर्भर हो गये थे।

   इस हत्याकांड से संबंधित मुकदमा लोअर कोर्ट से  होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।तब इस केस की चर्चा पूरे देश में थी।

जेठमलानी इस केस में बाद में हाई कोर्ट में सरकारी वकील यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ के भी सहायक  थे।

चंद्रचूड़ सन 1978 में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी बने थे।

 प्रेम आहूजा की हत्या को लेकर आम जन भावना नानावती के साथ थी।इस भावना को उभारने में मीडिया खास कर साप्ताहिक ‘ब्लिट्ज’ और उसके अदमनीय संपादक आर.के.करंजिया का बड़ा योगदान था। ब्लिट्ज ने नानावती के पक्ष में अभियान चला रखा था।

25 पैसे कीमत वाला साप्ताहिक ब्लिट्ज इस केस की खबरों के कारण दो रुपए में बिकने लगा था।उसका प्रसार भी बहुत बढ़ गया था।जन भावना का असर ग्रेटर बंबई सेशन कोर्ट के ‘जूरी’ सदस्यों पर भी पड़ा।

मुकदमे की सुनवाई के बाद जूरी के 9 में से 8 सदस्यों ने नानावती को दोषमुक्त कर देने की सलाह जज को दे डाली।

  जज ने उसका पालन किया।

नानावती को लोअर कोर्ट से रिहाई मिल गयी।मामला हाईकोर्ट में अपील में गया।

फिर से केस का ट्रायल हुआ।

इस ट्रायल में सरकार के वकील चंद्रचूड़ के साथ -साथ जेठमलानी  की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही।

वहां नानावती को आजीवन कारावास की सजा हो गयी। 

11 दिसंबर 1961 को सुप्रीम कोर्ट ने भी इस सजा पर अपनी मुहर लगा दी।

साथ ही, इसी केस के साथ जूरी सिस्टम समाप्त कर दिया गया।इस देश का वह आखिरी केस

था जिसमें जूरी की सहायता ली गयी थी।इस केस में जूरी का निर्णय तथ्यों के बदले भावना पर आधारित था।

यानी इस ऐतिहासिक फैसले में राम जेठमलानी का भी महत्वपूर्ण  योगदान माना गया।

इसीलिए जेठमलानी ने कहा कि वह केस उनके लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।

 नानावती तीन साल तक जेल में रहे।

बाद में  महाराष्ट्र की राज्यपाल विजय लक्ष्मी पंडित ने नानावती को माफी दे दी।राज्यपाल के पास यह अधिकार है।

उसके बाद नानावती अपनी पत्नी सिल्विया और बच्चे के साथ कनाडा जा बसे थे।अब तो उनका निधन हो चुका है।

 जेठमलानी ने तो बाद में कई अन्य महत्वपूर्ण केस लड़े।

 वह केंद्रीय मंत्री भी रहे ।दो बार लोक सभा के सदस्य और कई बार राज्य सभा के सदस्य बने।

जेठमलानी की तर्क शक्ति और शैली बेजोड़ थी।

एक बार वे हथियारों मशहूर सौदागर खशोगी के जहाज पर देखे गये थे।उन दिनों जेठमलानी बोफोर्स तोप खरीद घोटाले के खिलाफ अभियान चला रहे थे।

एक पत्रकार ने पूछा कि एक तरफ तो आप हथियार सौदे के घोटाले के खिलाफ अभियान चला रहे हैं,दूसरी ओर हथियारों के कुख्यात सौदागर के जहाज पर देखे जाते हैं ?

इस पर जेठमलानी ने कहा कि मैं बोफोर्स तोप सौदे में घोटाले का सबूत लेने वहां गया था।क्योंकि एक चोर के खिलाफ सबूत दूसरे चारे के पाॅकेट में पाया जाता है।

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15 अक्तूबर 23 


   

 


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