शनिवार, 18 नवंबर 2023

 हर फिक्र को धुएं में मत उड़ाइए,नेता जी !!

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सुरेंद्र किशोर

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‘‘मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया,

हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया।

बर्बादियों का शोक मनाना फिजूल था,

बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया।

जो मिल गया,उसे ही मुकद्दर समझ लिया

जो खो गया, उसको भुलाता चला गया।

आदि आदि 

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फिल्म ‘‘हम दोनों’’ -1961

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डा.राम मनोहर लोहिया,जवाहरलाल नेहरू और जिन्ना 

सहित न जाने कितने नेता सिगरेट के गुलाम थे।

डा.लोहिया ने महात्मा गांधी के कहने पर सिगरेट एक बार छोड़ दी थी।

पता नहीं, गांधी जी ने नेहरू से सिगरेट क्यों नहीं छुड़वाई ?

पर,जब गांधी की हत्या हुई तो उसके बाद लोहिया ने फिर सिगरेट शुरू कर दिया था।

नतीजा यह हुआ कि लोहिया को सिगरेट पीते देख देश भर के युवा लोहियावादी सिगरेट पी-पी कर अपना स्वास्थ्य गंवाने लगे।

सामाजवादियों के अभिभावक नुमा नेता मामा बालेश्वर दयाल ने डा.लोहिया को लिखा कि आप सिगरेट पीना छोड़ दो।

  क्योंकि आपकी देखा-देखी समाजवादी नौजवान सिगरेट पीने लगे हैं।उससे उनके स्वास्थ्य को हानि पहुंच रही है।

इस पत्र पर डा.लोहिया ने सिगरेट छोड़ दी।

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नेहरू के निजी सचिव एम.ओ.मथाई ने, जो सन 1946 से 1959 तक उनके साथ रहे थे,अपनी संस्मरणात्मक पुस्तक  में  लिखा है कि रात के भोजन के बाद अपने बेडरूम में जाकर नेहरू सिगरेट पीते थे।

 उनके विश्वस्त सहायक उपाध्याय नेहरू की सेवा में रहता था।

यानी, 1959 तक तो नेहरू सिगरेट पीते ही थे।

बाद में भी पीते होंगे !

पता नहीं।

क्योंकि जब गांधी उन्हें नहीं रोक सके तो बाद में भला कौन रोकता।

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मेरी चिंता सिर्फ एक बात को लेकर रही है।

इस तरह के बड़े -बड़े नेताओं को गलत-खान पान करके अपने शरीर को बर्बाद नहीं करना चाहिए।

क्योंकि उनके लाखों-करोड़ों  प्रशंसक होते हैं

जो उनकी ओर उम्मीद भरी नजरों से देखते हैं।

नेता के न रहने पर उन्हें भारी निराशा होती है। 

दरअसल ऐसे नेताओं के जीवन के साथ -साथ उनके शरीर पर भी जनता का अघोषित अधिकार होता है।

बिहार के भी कुछ प्र्रमुख नेताओं ने अपने प्रशंसकांें-समर्थकों  को इस मामले में निराश किया है।

गलत खानपान आदि के कारण इनका भी शरीर 

धीरे- धीरे इनका साथ छोड़ रहा है।

गलत खानपान में अति भोजन,

कुभोजन,

मांस,

मदिरा,

गांजा,

भांग,

सिगरेट आदि शामिल हैं। 

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17 नवंबर 23


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