सरकार में अधिक वेतन का लोभ छोड़कर कभी अनेक लोगों ने स्वेच्छा से अपेक्षाकृत कम वेतन पर अखबार की नौकरी करना स्वीकार किया था
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सुरेंद्र किशोर
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बिहार के वरिष्ठ पत्रकार व बिहार विधान परिषद के मनोनीत सदस्य शम्भूनाथ झा ने 27 मई 1989 को दैनिक ‘आर्यावर्त’ में
लिखा था कि
‘‘मुझे पत्रकारिता से इतना प्रेम था कि मैट्रिक से एम.ए.तक की परीक्षाओं में बहुत ऊंचा स्थान पाने पर भी मैंने किसी भी सरकारी नौकरी की तलाश नहीं की।
और जब कभी मैंने एक -दो बार इसके बारे में सोचा भी तो तुरंत अपना विचार बदल लिया।
युद्ध (तीसरे विश्व युद्ध)के समय अंग्रेज शासक कुछ अच्छे पत्रकारों को सरकारी नौकरी में लगाना चाहते थे।
मेरे एक साथी श्री विश्वनाथ वर्मा को, जो इंडियन नेशन के सहायक संपादक थे,सरकार ने अपनी सेवा में बुला लिया और उन्हें जन संपर्क विभाग का निदेशक बना दिया।’’
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इस मामले में दिवंगत झा अकेले नहीं थे।
आर्यावर्त-इंडियन नेशन में कई उच्च शिक्षाप्राप्त लोगों ने कम पैसे पर नौकरी स्वीकार की जिन्हें सरकार अधिक पैसे दे सकती थी।क्योंकि उन दिनों उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों की काफी कमी थी।
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2 नवंबर 23
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