दीपावली के अवसर पर पैसे वाले अपने पैसों का
हिसाब-किताब करते हैं।
मैं अपने जीवन में मिली संतुष्टि का हिसाब बताता हूं।
------------
पहले कबीर को याद कर लूं--
‘‘....,जब आवे संतोष धन,सब धन धूली समान !
------------
आज मैं एक अत्यंत संतुष्ट व्यक्ति हूं।
मुझे ऐसी संतुष्टि उपलब्ध कराने में मेरे परिवार,रिश्तेदार,
मित्र,सहकर्मी तथा समाज के अन्य अनेक लोगों का
योगदान रहा है।सबके प्रति आभारी हूं।
-----------
अब एक ही इच्छा है--अंत समय तक कुछ
लिखता और कुछ अधिक पढ़ता रहूं।
--------------
सुरेंद्र किशोर
12 नवंबर, 23
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें