भारत के समक्ष इजरायल की
अपेक्षा अधिक गंभीर खतरा ?
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सुरेंद्र किशोर
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इस पोस्ट को पढ़कर कुछ लोग नाराज हो सकते हैं।
उसी तरह, जिस तरह सरदार पटेल का, चीन से खतरे से संबंधित, पत्र पढ़कर नेहरू नाराज हुए थे।
पर, 1962 के बाद तो लोकतांत्रिक मिजाज वाले प्रधान मंत्री नेहरू ने अपनी गलती स्वीकारी थी।
खबर आई थी,कहीं फोटो भी देखा था कि इसीलिए उन्होंने 1963 के गणतंत्र दिवस पर सुरक्षा बल के साथ साथ आर.एस.एस.की भी परेड करवाई थी।
किंतु आज के जेहादियों के समर्थक गैर मुस्लिम नेता-बुद्धिजीवी काफी जिद्दी लगते है।ये नेहरू जो नहीं हैं।
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कल ही गीतकार जावेद अख्तर ने हिन्दू संस्कृति में मौजूद सहिष्णुता की सार्वजनिक रूप से सराहना की।
उन्होंने यह भी कहा कि हिन्दुओं की वजह से ही इस देश में लोकतंत्र कायम है।
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संकेत हैं कि इजरायल-हमास युद्ध की पुनरावृति भारत में भी देर-सबेर हो सकती है।
इस गलतफहमी में मत रहिए कि वहां युद्ध फलस्तीन की जमीन के लिए है।
बल्कि वह तो बहाना है।
जिस तरह जेहादी पाकिस्तान के लिए कश्मीर बहाना है।
बल्कि हमास तथा उस तरह के जेहादी संगठनों का उद्देश्य दूसरा ही है।
गत 27 अक्तूबर 23 को खूंखार जेहादी संगठन हमास के पूर्व प्रमुख ने केरल के अतिवादी मुसलमानों की एक सभा को आॅडियो-विजुअल माध्यम से संबोधित करते हुए कहा कि ‘‘हिन्दुओं का उखाड़ फेंको।’’उन्होंने यदि यह कहा होता कि इजरायल को उखाड़ फेंकने में मदद करो तो बात समझ में आती।
याद रहे कि आज की भारत
सरकार भी फलस्तीन का समर्थन करती है।
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भारत में सक्रिय प्रतिबंधित पी.एफ.आई.ने पहले ही से यह घोषणा कर रखी है कि सन 2047 तक हथियारों के बल पर हम भारत को इस्लामिक देश बना देंगेे।
पाक से भी एक जेहादी
ने हाल में हुंकार भरी है कि इजरायल के बाद हमास का अगला निशाना भारत होगा।
ये सब बातें चुनाव लड़ने वाले वोट लोलुप नेतागण आपको नहीं बताएंगे।
उल्टे वे यह बताएंगे कि अल्पसंख्यकों की सांप्रदायिकता से अधिक खतरनाक बहुसंख्यकों की सांप्रदायिकता होती है।इसलिए भाजपा-संघ को उखाड़ फेंकिए।
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अब आप कल्पना कीजिए कि युद्ध
पर इजरायल को रोज-रोज कितना खर्च करना पड़ रहा है।
रकम सुनकर होश उड़ जाएंगे।गुगुल पर देख लीजिए।
भारत पर यदि बाहर-भीतर के जेहादियों का हमला हुआ तो हमारी सरकार को भी भारी खर्च उठाना पड़ेगा।उसके मुकाबले के लिए हमें और अधिक आर्थिक व हथियारी साधन जुटाने पड़ंेगे।
हां,यदि सन 2024 में ऐसी सरकार सत्ता में आई जो जेहादियों से लड़ने वाली होगी तो ही भारी खर्च होगा।
यदि जेहादियों के समक्ष सरेंडर करने वाली सरकार चुनी गयी तो वही होगा जैसा 2001 में संसद पर हमले और 2008 में मुम्बई पर हुए जेहादी हमले के बाद हुआ।यानी, हमारी सरकारों ने पलट वार नहीं किया।हां, 2001 की घटना के बाद अटल सरकार ने सेना को सीमा पर भेज दिया था।पाक ने भी अपनी सीमा पर अपने सैनिक भेज दिए थे।पर पता नहीं वाजपेयी सरकार को किसने रोक दिया।
सेना वापस आ गयी।
उस पर भारत के एक बड़े सेक्युलर नेता ने यह बयान दिया था कि भारत सरकार पाकिस्तान को हर्जाना दे।
क्योंकि पाकिस्तान को अपनी सेना को सीमा पर भेजने और बुलाने में भारी खर्च आया है।
ऐसे -ऐसे नेताओं से यह देश जूझ रहा है।किसी अगले हमले के समय भी जूझेगा।
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किंतु इजरायल की सरकार वैसी कायर नहीं है।
जब जेहादियों ने गत 7 अक्तूबर को इजरायल में घुस कर हमला करके ‘‘भारत के मध्य युग’’ को दुहराया तो इजरायल ने ‘अब नहीं तो कभी नहीं’ रणनीति के तहत जबर्दस्त जवाबी हमला शुरू कर दिया।विदेशों में बसे इजरायली लड़ने के लिए स्वदेश आ गये हैं।
दूसरी ओर 1971 के युद्ध के समय भारत के एक प्रभावशाली परिवार के पायलट ने तो छुट्टी ले ली थी।
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हमले की स्थिति में भारत को
जो खर्च आएगा,उसके लिए यहां के टैक्स चोरों के खिलाफ और भी सघन व कठोर कार्रवाई की जरूरत है।
देशभक्त लोगों को चाहिए कि वे अपने आसपास के टैक्स चोरों के खिलाफ शासन को गुप्त सूचना देकर
साधन बढ़ाने में मदद करें ताकि हमें एक बार फिर मध्य युग न देखना पड़े।
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आयकर,ई. डी. और सी.बी.आई..की सक्रियता के कारण हाल के वर्षों में भारत सरकार की आय बढ़ी है।गत साल ई डी ने भ्रष्टों के यहां से एक लाख करोड़ रुपए जब्त किये।
भारत सरकार का वर्ष 2013-14 में कर राजस्व करीब 11 लाख करोड़ रुपए था।
वह बढ़कर 2023-24 वर्ष में 27 लाख करोड़ रुपए हो जाने का अनुमान है।
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पर,अभी इसमें बहुत अधिक बढोत्तरी की गुंजाइश भी है।
क्योंकि प्रभावशाली भ्रष्ट लोग अब भी अपने धंधे में काफी सक्रिय हैं।वे तो कार्रवाई से बचने के लिए अब गिरोह बना रहे हैं।
अगले लोकसभा चुनाव में वे सोरोज से अधिक सक्रिय होंगे।
लूट का एक नमूना देखिए।
एक पूर्व केंद्रीय मंत्री के बारे में पिछले दिनों यह खबर छपी कि उसने छह देशों में करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपए की निजी संपत्ति बनाई है।वैसे आरोपी को भी अदालत बार बार लगातार अंतरिम जमानत देती जा रही है।
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केंद्र सरकार के सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने पिछले दिनों इस स्थिति पर अपनी यह पीड़ा जताई थी कि इस देश की अदालत सामान्य अपराध और आतंकी अपराध के बीच अंतर नहीं कर पा रही है।
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हमारे देश के पडोसी विभिन्न तरह के हैं।
चीन को हमारी जमीन चाहिए।
पाक और बाहर-भीतर के जेहादियों
को यहां पूरे देश में इस्लामिक शासन चाहिए।
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पर,भारत और अन्य देशों में अंतर है।
अभी 56 या 57 देशों में मुसलमानों का बहुमत है।
ऐसा आम तौर पर तलवार के बल पर हुआ है।
भारत में भी कभी मुसलमानों का शासन था।
अन्य देशों में 20 या 25 साल में ही मुसलमानों का बहुमत हो गया।
पर,भारत में मान सिंहों और जयचंदों की मौजूदगी के बावजूद
यहां एक तिहाई आबादी को ही मुसलमान बनाया जा सका।
मान सिंह और जयचंद तो राजा थे,इसलिए उनकी अधिक चर्चा होती रही है।
मध्य युग में हिन्दू आबादी का एक हिस्सा ने भी मुसलमान शासकों का साथ दिया था।
आज जेहादियों का साथ देने वालों की संख्या तब से अधिक है।
क्योंकि अब तो चुनाव के लिए वोट भी चाहिए।
आज खतरा बड़ा है।मैंने अपना कर्तव्य समझा कि कुछ बातें आपसे शेयर करूं।ऐसी बातें करने में खतरा भी है।पर,मैंने तो आपातकाल में इससे भी अधिक ‘‘खतरनाक खतरा’’ उठाया था।
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11 नवंबर 23
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