सोमवार, 27 नवंबर 2023

 संविधान दिवस पर

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सरल हृदय वाले नेता राजनीति में सन 1950 में भी पीछे 

ढकेल दिए जाते थे और आज तो और भी सौ कदम 

पीछे कर दिए जाते हैं

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सरदार पटेल न होते तो सरल हृदय वाले योग्यत्तम राजेन 

बाबू राष्ट्रपति न बन पाते

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सुरेंद्र किशोर

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सन 1950 में संविधान लागू हो जाने के बाद सवाल राष्ट्रपति के पद पर नियुक्ति का था।

प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू चाहते थे कि इस पद पर सी.राज गोपालाचारी बैठें।

हालांकि राजगोपालचारी विचारों से घोर दक्षिणपंथी व पंूजीवादी व्यवस्था के पोषक थे।

उधर नेहरू खुद को समाजवादी बताते थे।

राजा जी को राष्ट्रपति बनाने के सवाल पर कांग्रेस पार्टी में भारी आंतरिक मतभेद उठ खड़ा हो गया।

खैरियत थी कि तब कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र था।

पार्टी में विरोध इसलिए भी था क्योंकि राजा जी ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध कर दिया था।

सरदार पटेल के समर्थकों ने डा.राजेंद्र प्रसाद के नाम को आगे बढ़ा दिया।

  इस बीच जवाहरलाल नेहरू एक दिन राजेंन्द्र प्रसाद के पास चले गये।

 उनसे यह लिखवा लिया कि 

‘‘मैं राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार ही नहीं हूं।’’

  जब इस बात का पता सरदार पटेल को चला तो वे नाराज हो गये।

पटेल गुट के बड़े नेता महावीर त्यागी ने राजेन बाबू को ‘बिहारी बुद्धू’ तक कह दिया।

  समकालीन नेताओं के संस्मरण, लेखों व डायरी के पन्नों में दर्ज इतिहास के अनुसार उस समय की यह कहानी कुछ यूं बनती है।

  राजेंद बाबू से सरदार साहब ने पूछा कि आपने ऐसा लिख कर क्यों दे दिया ?

  इस पर सरल हृदय के गांधीवादी राजेन बाबू ने  कहा कि ‘‘मैं गांधी जी का शिष्य हूं।

यदि कोई मुझसे पूछता है कि क्या आप राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं तो यह बात मैं अपने मुंह से कैसे कह सकता हूं कि मैं उम्मीदवार हंू ? 

पंडित जी ने मुझसे जब ऐसा ही सवाल पूछा तो मैंने वैसा कह दिया।

 उनके मांगने पर मैंने यही बात लिखकर भी उन्हें दे दी।’’

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    इस बिगड़ी बात को सरदार साहब ने अपने विशेष प्रयास व कौशल से बाद में संभाला।

संभवतः पटेल व उनके समर्थक यह नहीं चाहते थे कि तीनों महत्वपूर्ण पदों पर एक ही जाति के नेता बैठें।

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उप राष्ट्रपति पद के लिए डा.एस.राधाकृष्णन का नाम तय था।

 पहले तो राजेंद्र बाबू को इस बात के लिए तैयार कराया गया कि वे उम्मीदवार बनें।

दरअसल राजेंद्र बाबू मन ही मन  चाहते तो थे ही  कि उन्हें राष्ट्रपति पद मिले।

पर, इसके लिए वे आज के अधिकतर नेताओं की तरह आग्रही या फिर दुराग्रही कत्तई नहीं थे।

(आज के तो कई नेता, पद के लिए सुप्रीमो का भयादोहन भी करते हैं या सुप्रीमो की राजनीतिक लाइन तक बदलवा देते हैं।)

पर,उधर राजेन बाबू किसी भी  पद के लिए नीचे नहीं गिरना चाहते थे।

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खैर,पटेल साहब ने स्थिति संभाली और राजेन बाबू राष्ट्रपति बने।

कैसे स्थिति संभाली,वह भी एक रोचक कहानी है।

हालांकि वह कहानी भी तब की राजनीति का गौरव बढ़ाने वाली नहीं है।

याद रहे कि नेहरू ने पार्टी की बैठक में यह धमकी दे दी थी कि यदि राजाजी को राष्ट्रपति नहीं बनाया जाएगा तो मैं प्रधान मंत्री पद से इस्तीफा दे दूंगा।

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26 नवंबर 23


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