सोमवार, 16 अगस्त 2021

 


   टुकड़ों में संभव नहीं राजनीति के अपराधीकरण का इलाज

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       --सुरेंद्र किशोर--

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  सुप्रीम कोर्ट ने ठीक ही कहा है कि ‘‘इस देश की राजनीतिक प्रणाली में दिन प्रति दिन अपराधीकरण बढ़ रहा है।

राजनीति को स्वच्छ करने के लिए विधायिका को चिंतित होना चाहिए।’’

  पर, सवाल है कि क्या सिर्फ विधायिका के बूते की यह बात है ?

दरअसल इस समस्या के हल के काम में विधायिका,कार्यपालिका और न्यायपालिका को साथ- साथ लगना होगा।

अब तक अपराधीकरण के खिलाफ कुछ ठोस कदम न्यायपालिका व चुनाव आयोग ने ही उठाए हैं।

आगे भी निर्णायक भूमिका उन्हीं की होगी।

विधायिका से अधिक उम्मीद मत कीजिए।

 सन 2002 में यदि सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख नहीं अपनाया होता तो उम्मीदवारों के आपराधिक रिकाॅर्ड और संपत्ति का विवरण भी लोग आज नहीं जान पाते।

  लेकिन यह तो इस समस्या को टुकड़ों में देखना हुआ।

राजनीति में अपराधीकरण की समस्या क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम की विफलता से जुड़ी हुई है।

इसकी और अधिक पड़ताल के लिए सुप्रीम कोर्ट को कोई कदम उठाना चाहिए।

 जब पुलिस व प्रशासन किसी पीड़ित की मदद नहीं करते तो वह किसी स्थानीय बाहुबली के पास जाता है।

उसे यदि वहां से मदद मिल जाती है तो वह बाहुबली धीरे -धीरे अपने इलाके में लोकप्रिय होने लगता है।

उनमें से कुछ बाहुबली चुनाव भी लड़ते हैं और जीत भी जाते हैं।हर बाहुबली सिर्फ जोर-जबर्दस्ती से ही नहीं जीतता।

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   आपराधिक न्याय व्यवस्था को बेहतर 

   बनाने की जरूरत 

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   अदालती सजाओं का प्रतिशत बढ़ने से बाहुबलियों का समाज और राजनीति पर से असर कम होगा।

अभी आई.पी.सी.के तहत दर्ज मुकदमों में सजाओं की दर इस देश में करीब 50 प्रतिशत है।

यानी जितने भ्रष्ट व अपराधी आरोपित होते हैं,उनमें से आधे लोग अदालतों से सबूत के अभाव में छूट जाते हैं।या फिर गवाह बदल जाते हैं।

  पुलिस इनमें से कई मामलों में आरोपियों का पुलिस थानों में टार्चर करके ही अन्य आरोपी व सबूत तक पहुंच पाती है।

किंतु सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में ऐसे टार्चर के खिलाफ अपनी सख्त राय प्रकट की है।

  अदालत ने ठीक कहा है।टार्चर अमानवीय भी है।

  किंतु किसी केस के अनुसंधान में एक अन्य तरीके से भी मदद मिल सकती है।

  वह है नार्को टेस्ट,डी एन ए टेस्ट,पालीग्राफिक टेस्ट और   ब्रेन मैपिंग ।   

सी.बी.आई.ने करीब 13 हजार करोड़ रुपए के घोटाले के आरोपी बैंक अफसर के नार्को टेस्ट के लिए  

कोर्ट से अनुमति मांगी।

कोर्ट ने नहीं दी।

 सन 1999 में पटना में गौतम और शिल्पी जैन की हत्या कर दी गई।

हत्या से पहले शिल्पी के साथ बलात्कार हुआ था।

आरोपी ने डी.एन.ए.टेस्ट के लिए अपने खून का नमूना देने से साफ मना कर दिया।

इस केस में किसी को सजा नहीं हुई।

सुप्रीम कोर्ट ने ही यह आदेश दे रखा है कि किसी की इच्छा के खिलाफ उसका डी.एन.ए.आदि जांच नहीं हो सकती।

फिर तीसरा उपाय क्या है जिसके जरिए जांच एजेंसियां सबूतों व अन्य आरोपियों तक पहंुच सके ?

सुप्रीम कोर्ट को चाहिए कि वह जांच एजेंसियों का इस दिशा

में मार्ग दर्शन करे।साथ ही क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम की बेहतरी की राह के रोड़ों को  भी अदालत हटाए। 

अन्यथा,पीड़ित लोग बाहुबलियों के पास जाते रहेंगे और अपराधीकरण बढ़ता रहेगा।


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  आचार संहिता को लागू करने

    से लौटेगी सदन की गरिमा 

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विधायिकाओं में अनुशासन और मर्यादा बनाए रखने के उपायों पर विचार करने के लिए सन 2001 में एक राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया गया था।

 लोक सभा के स्पीकर जी.एम.सी.बालयोगी ने सम्मेलन बलाया था।

 सम्मेलन में पीठासीन पदाधिकारी ,प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी,लोक सभा में प्रतिपक्ष की नेता सोनिया गांधी,मुख्य मंत्री तथा अन्य संबंधित गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए।

सबने संसद व विधान मंडलों की कार्यवाही में बढ़ती अनुशासन हीनता व घटती मर्यादा को फिर से कायम करने की जरूरत बताई।

  इसके लिए सर्वसम्मति से 29 सूत्री आचार संहिता तैयार की गई।

  उसमें अन्य बातों के अलावा यह भी तय किया गया कि यदि कोई सदस्य सदन की कार्यवाही में बाधा पहुंचाएगा या अपनी सीट छोड़कर वेल में जाएगा तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

उसे एक दिन या पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया जाएगा।

आश्चर्य है कि सदनों में बढ़ते हंगामों व अशोभनीय दृश्यों

के बावजूद उस आचार संहिता पर अमल नहीं किया जा रहा है।

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 आरक्षण पर कांग्रेस का

 बदला-बदला  रुख

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राज्य सभा में प्रतिपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग की है।

 उन्होंने आरक्षण की अधिकत्तम सीमा यानी 50 प्रतिशत को बढ़ा देने की भी जरूरत बताई है।

जरा देखिए !

कांग्रेस कहां से चलकर कहां पहुंच गई !

 मंडल आरक्षण की रपट 1980 में ही आ गई थी।

किंतु  कांग्रेस सरकार ने उसे लागू नहीं किया।

1990 में वी.पी.सिंह सरकार ने लागू किया।

उस पर तब के प्रतिपक्ष के नेता राजीव गांधी ने संसद में ऐसा गोलमटोल भाषण किया जिससे पिछड़ों को लगा कि कांग्रेस आरक्षण के पक्ष में नहीं है।

  इसका चुनावी नुकसान कांग्रेस को हुआ।

काश ! 1980 और उसके बाद के वर्षों में कांग्रेस के नेतृत्व ने इस मामले में दूरदर्शिता दिखाई होती।

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 और अंत में

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उसी दल की सरकार देश या प्रदेश को बेहतर बना सकती है जिसे अगले चुनाव में हारना मंजूर हो।

विभिन्न हलकों में निहितस्वाथियों की ताकत देखते हुए

ही यहां यह कहा जा रहा है।

लेकिन एक बार हार जाने के बाद अगले चुनाव में लोगबाग उसी दल को फिर से सत्ता में लाएंगे जिसने पिछली बार अच्छी मंशा के साथ देश-प्रदेश को बेहतर बनाने की कोशिश की थी।

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13 अगस्त 2021 के दैनिक ‘‘प्रभात खबर,’’पटना में प्रकाशित मेरे साप्ताहिक काॅलम कानोंकान से

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