प्रतिपक्ष द्वारा संसद को पंगु बना देने के
मामले मंे राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट से राय मांगें
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पूछें कि क्या नई कानूनी व संवैधानिक व्यवस्था
ही सदनों में गरिमा बहाल कर पाएगी ?
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--सुरेंद्र किशोर--
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भारत के राष्ट्रपति को चाहिए कि वह इस देश की विधायिकाओं को कुछ सदस्यों द्वारा लगातार पंगु बना दिए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट से राय मांगंे।
पूछें कि क्या संविधान की मंशा के अनुसार सदन को गरिमापूर्ण ढंग से चलाने के लिए किन्हीं विशेष कानून, नियम या संवैधानिक प्रावधान की जरूरत है ?
पीठासीन पदाधिकारियों के सम्मेलनों की सिफारिशें व सदन की कार्य संचालन नियमावली आदि निरर्थक बना दिए गए है।
साफ लगता है कि मौजूदा संसद के दोनों सदनों के मौजूदा पीठासीन पदाधिकारी भी खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं।
देश किंकत्र्तव्यविमूढ़ होकर रोज-रोज लोकतंत्र की धज्जियां उड़ते अपने टी.वी.सेटों पर देख रहा है।नई पीढ़ी के सामने लोकतंत्र की बहुत ही खराब छवि पेश हो रही है।
याद रहे कि इन दिनों प्रतिपक्षी सदस्य संसद के दोनों सदनों को लगातार नहीं चलने दे रहे हैं।
आज का सत्ता दल जब कल प्रतिपक्ष में था तो वह भी सदन में कुछ-कुछ ऐसा ही हंगामा करता था।
उसे वह जायज भी ठहराता था।
आए दिन देश की अनेक विधान सभाओं का भी यही हाल होता रहता है।
वहां भी अशोभनीय दृश्य उपस्थित होते हैं।
हिंसा,मारपीट,गाली-गलौज ,सदन स्थगन आम बात हो गई है।
पिछले दिनों कर्नाटका विधान परिषद के कुछ सदस्यों ने अपने सभापति को सदन में ही इतना अपमानित किया कि उन्होंने रेलगाड़ी से कटकर आत्महत्या कर ली।
संविधान के अनुच्छेद-143 में राष्ट्रपति को यह अधिकार
दिया गया है कि वे महत्वपूर्ण मामलों में सुप्रीम कोर्ट से राय मांग सकते हैं।
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3 अगस्त 2021
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