शुक्रवार, 6 अगस्त 2021

 


रिश्वतखोरों के खिलाफ मुकदमों की 

राज्य स्तरीय निगरानी जरूरी

...............................

-- सुरेंद्र किशोर --

...............................

आए दिन रिश्वत लेते सरकारी कर्मी गिरफ्तार होते रहते हैं।

उनके खिलाफ केस भी चलते हैं।

पर, अंततः क्या होता है ?

 इस बात का पता कम ही चल पाता है कि उनमें से कितनों को अदालती सजा हो पाती है।

 जहां तक मेरी जानकारी है, ऐसे मामलों की अलग से राज्यस्तरीय और कड़ी मोनीटरिंग नहीं होती।

सजा होते तो कम ही देखा-सुना जाता है।

 नतीजतन भ्रष्ट सरकारी कर्मी जेल से छूटते ही एक बार फिर अपने पुराने धंधे में लग जाते हैं।

   ऐसे में यदि कोई फरियादी कहता है कि उसे सरकारी आॅफिस में कहा जाता है कि सी.एम.क्या पी.एम.के यहां जाओ,पैसे के बिना यहां कोई काम नहीं होगा,तो किसी को कोई आश्चर्य नहीं होता।

क्या राज्य सरकार भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहनशीलता वाले किसी सेवारत या रिटायर अफसर के नेतृत्व में एक कोषांग गठित कर ऐेसे मुकदमों की निरंतर निगरानी करवाएगी ?

शायद उसके जरिए सबक सिखाने लायक अदालती सजा दिलवा जा सके !  

.................................................

   कब बंद होगा सदनों में हंगामा 

...................................................... 

देश भर के पीठासीन पदाधिकारी जब कभी इकट्ठा होते हैं तो वे इस बात की चर्चा करते हैं कि ‘‘विधायिका में बढ़ते शोर -शराबा,हिंसा व उदंडता को देखते हुए बैठक को सुचारू रूप से चलाना दिन प्रति दिन कठिन होता जा रहा है।’’

यानी,इस देश में अयोध्या विवाद खत्म हो सकता है।

तीन तलाक के खिलाफ कानून बन सकता है।

योगी आदित्यनाथ तो उत्तर प्रदेश में कई असंभव सा दिखने वाले काम कर सकते हैं ।

किंतु हमारे हुक्मरान लोकतंत्र के मंदिर में शालीनता और गरिमा कायम नहीं कर सकते हैं !!

  यह सब जान-सुनकर अनेक लोगों को दुख होता है। 

................................................

 मंडल दिवस पर आत्म निरीक्षण

    .....................................

मंडल आरक्षण का श्रेय लेने वाले आज के नेताओं को ‘मंडल दिवस’ (7 अगस्त ) पर जरा आत्म निरीक्षण भी कर लेना चाहिए।

केंद्रीय सेवाओं में पिछड़ों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान वी.पी.सिंह सरकार ने सन 1990 में किया था।

1993 में सुप्रीम कोर्ट ने भी उस आरक्षण पर अपनी मुहर लगा दी।

यानी, तब से यह लागू भी हो गया।

किंतु इतने साल बीत जाने  पर भी औसतन 15 प्रतिशत सीटें ही भर पाती हंै।

  अनेक मंडलवादी नेता इस बीच केंद्र सरकार के बड़े -बड़े पदों पर रहे।

  उन्होंने 15 प्रतिशत को बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने की दिशा में कौन का कदम उठाया ?

हां, इस बीच उनमें से कुछ नेताओं ने  27 प्रतिशत को बढ़ा देने की मांग जरूर की ।

..............................................................

भूली बिसरी याद

................................

26 मई, 1950 को बिहार विधान सभा में कांग्रेस के एक प्रमुख सदस्य ने याद रखने वाला भाषण दिया था।

वे साठी लैंड रेस्टोरेशन विधेयक पर वे बोल रहे थे।

 उस विधेयक के जरिए भूमि के गलत आवंटन को रद करना था।

चम्पारण जिले के साठी की भूमि का आबंटन कांग्रेस के तब के बड़े -बड़े नेताओं व उनके करीबियों के नाम कर दिए गए थे।

वह विधेयक उप प्रधान मंत्री व गृह मंत्री सरदार पटेल के दबाव से लाया गया था। 

 नेता जी के भाषण से तब ही यह लग गया था कि आजादी के बाद के हमारे नये हुक्मरान इस प्रदेश को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं।

  उनके भाषण के कुछ अंश यहां प्रस्तुत हंै।

‘‘.......मैं कहता हूं कि इस जमीन को बंदोबस्त करने में कोई गुनाह नहीं हुआ है।

क्या हमें भी यह अधिकार नहीं है कि देश की सेवा करते हुए

अपने बाल -बच्चों की परवरिश के लिए चंद तरह के व्यवसाय की व्यवस्था करें ?

या किसी राज या जमींदार से जमीन लेकर जोतें ?

मैं इतना तक कहूंगा कि कांग्रेस ने गलती की कि कांग्रेस वालों को ज्यादा जमीन नहीं दी।

 आज ही नहीं, दो -तीन वर्ष पहले बेतिया राज में विदेशी सरकार ने विदेशियों के साथ बहुत सी जमीन बंदोबस्त की थी।

क्या उस समय आपको (यानी प्रतिपक्षी दलों को ) इसका विरोध करने की जुबान नहीं थी ?

हरवंश सहाय की सैकड़ों एकड़ जमीन अंग्रेजों ने इसलिए जब्त कर ली थी क्योंकि उन्होंने महात्मा गांधी का साथ दिया था।

बड़े अफसोस की बात है कि उन पर भी इस हाउस में आक्षेप किया जाता है।

  हमलोगों में से अधिकतर लोगों का खयाल है कि शाही बंधुओं के साथ जो बंदोबस्ती हुई है, वह सही है।’’

  यानी, उन दिनों के अनेक सत्ताधारी नेताओं का यह मानना था कि आजादी की लड़ाई के दौरान हमें जो नुकसान हुआ,उसकी अब भरपाई होनी ही चाहिए।

  सत्ताधारी दल के अनेक नेताओं की उसी प्रवृति के कारण सन 1985 आते -आते सौ सरकारी पैसे घिसकर 15 पैसे हो गए।

 बाद के वर्षों में क्या -क्या होने लगा है,वह सब आज की पीढ़ी के सामने है।

याद दिला दूं कि तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि 

दिल्ली से तो हम एक रुपया भेजते हैं किंतु उसमें से सिर्फ 15 पैसे ही गांवों तक पहुंच पाते हैं।

.............................

और अंत में

.......................

हर साल ब्रिटिश संसद के 20 कार्य दिवसों के एजेंडा  का निर्धारण प्रतिपक्ष करता है।

क्या भारत में ऐसी व्यवस्था लागू हो जाएगी तो प्रतिपक्ष संसद में हंगामा करना बंद कर देगा ? 

इस सवाल का जवाब पाने से पहले यह जानना जरूरी है कि हंगामे का मकसद क्या है ?

मूल समस्या क्या है ?

समस्या यह नहीं है कि प्रतिपक्ष को समय नहीं मिलता।

दरअसल समस्या कुछ और ही है जिसका हल केंद्र सरकार के पास नहीं है।

................................

कानोंकान

साप्ताहिक काॅलम

6 अगस्त, 2021 के प्रभात खबर,

बिहार संस्करण 

में प्रकाशित




कोई टिप्पणी नहीं: