सोमवार, 16 अगस्त 2021

 स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर

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आज भी याद आते हैं ‘फिरंगिया’ 

के लेखक प्रिंसिपल मनोरंजन बाबू

मैंने जब छपरा के राजेंद्र काॅलेज में सन 1964 में 

बी.एससी.-पार्ट-वन में अपना नाम 

लिखवाया,उससे करीब तीन या चार साल पहले ही मनोरंजन बाबू उस काॅलेज के प्राचार्य पद से रिटायर हो चुके थे।

  पर, बाद में भी  कालेज में अक्सर उनका नाम बहुत आदर से लिया जाता था।

 कोई उनके एक गुण की चर्चा करता तो कोई उनकी  दूसरी  उपलब्धियों की।

उनकी मशहूर रचना ‘फिरंगिया’ तो अनेक लोगों की जुबान पर थीं।

  वे मूलतः अंग्रेजी के शिक्षक थे,पर वे भोजपुरी बहुत सहजता से बोलते-लिखते  थे ।

‘फिरंगिया’ भोज पुरी में ही है।

 एक बार कालेज परिसर में  कुछ छात्र किसी बात पर शोर कर रहे थे।

मनोरंजन बाबू उनके पास गए।

 उन्होंने छात्रों से भी कविता में बात कर  ली।

‘ हड़बड़ कइले, गड़गड़ होई,

बढ़-चढ़ बात करे ना कोई !’

इस पर वे हंसते हुए अपने -अपने क्लास में चले गए।

दरअसल उनकी नैतिक धाक का कमाल था।

 मनोरंजन बाबू ने इलाहाबाद विश्व विद्यालय में  एम.ए.अंग्रेजी में टाॅप किया था। 

मदन मोहन मालवीय उन्हें बी.एच.यू. में ले गए।

 वहां कुछ दिनों तक उन्होंने अंग्रेजी पढ़ाई।

 बाद में राजेंद्र कालेज में प्राचार्य होकर आ गए।

असहयोग आंदोलन के समय मनोरंजन बाबू ने ‘फिरंगिया’ नाम से  देशभक्ति का गीत लिखा।

बाद में वह गीत स्वतंत्रता सेनानियों की जुबान पर था।

 एक शिक्षक,एक प्रशासक व एक साहित्यकार के रूप में उन्होंने अपना एक विशेष स्थान बनाया था।

हालांकि उनके प्रशंसकों को यह अफसोस रहा कि उन्होंने अपनी प्रशासनिक जिम्मेदारियों में व्यस्त रहने के कारण अधिक लेखन नहीं किया।

जबकि उनमें लेखन प्रतिभा अद्भुत थी।

हालांकि उन्होंने कुछ पुस्तकें लिखी थीं।

1942 में वे बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के मोतिहारी अधिवेशन के अध्यक्ष हुए थे। 

 वैसे राजेंद्र काॅलेज को एक बेहतर काॅलेज बनाने में उनका योगदान अतुलनीय रहा।

उन दिनों भी बिहार में ऐसे कम ही काॅलेज थे जहां आर्ट,साइंस और काॅमर्स तीनों की पढ़ाई होती थी।

राजेंद्र कालेज में भी ऐसा था।

राजेंद्र काॅलेज के विस्तृत परिसर और बड़े -बड़े क्लास रूम और समृद्ध प्रयोगशालाओं को तो मैंने एक छात्र के रूप में खुद भी देखा और उपयोग किया था। 

 मुझे भी इस बात का अफसोस रहा कि मैं उन्हें वहां काम करते नहीं देख सका था।

पर उनके नाम की सुगंध तब भी मौजूद थी।

फिलहाल देश प्रेम जगाने वाली उनकी ऐतिहासिक रचना ‘फिरंगिया’ यहां प्रस्तुत है।

संभव है कि मुझसे उसकी एक- दो पंक्तियां छूट गयी हों।--

--सुरेंद्र किशोर 

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      --फिरंगिया--

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 संुदर सुघर भूमि भारत के रहे रामा,

आज उहे भइल मलीन रे फिरंगिया।

अन्न-धन-जन -बल बुद्धि सब नास भइल,

कवनो  के ना रहल निसान रे फिरंगिया।

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जहवां थोड़े ही दिन पहिले होत रहे,

लाखों मन गल्ला और धान रे फिरंगिया।

उंहवे पर आज रामा मथवा पर हाथ धके,

बिलखी के रोवे ला, किसान रे फिरंगिया।

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घिउवा आ दूधवा के नदिया बहत जहां,

उहवां बहेला रक्तधार रे फिरंगिया।

जहवां के लोग सब खात ना अघात रहे,

रुपया से रहे मालामाल रे फिरंगिया।


उहें आज जेने जेने अखियां घुमा के देखीं,

तेने तेने देखबे कंगाल रे फिरंगिया।

हमनी के पसु से रे हालत खराब कइले,

पेटवा के बल रेंगवउले रे फिरंगिया।

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एको जो रोऊवा निरदोसिया के कलपी ते,

तोर नास होई जाई सुन रे फिरंगिया।

दुखिया के आह तोर देहिया के भसम कै देई,

जरि भुनि होई जइबे रे फिरंगिया।

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स्वाधीनता हमनी के नामो के रहल नाहीं,

अइसन कानून के बा जाल रे फिरंगिया।

प्रेस एैक्ट ,आम्र्स ऐक्ट,इंडिया डिफंेस एैक्ट,

सब मिली कइलस ई हाल रे फिरंगिया।

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भारत के छाती पर भारत के बचपन के,

बहल रक्तवा के धार रे फिरंगिया।

घरे लोग भूख मरे गेहुंआ विदेस जाए,

कइसन बा विधि के विधान रे फिरंगिया।

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मरदानापन अब तनिको रहल नाहीं,

ठकुरसुहाती बोले रे फिरंगिया।

रात दिन करेले खुसामद सहेबवा के,

सहेले विदेसिया के लात रे फिरंगिया।

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चेति जाउ,चेति जाउ भैया रे फिरंगिया तें,

छोड़ दे अधरम के पंथ रे फिरंगिया।

छोड़ के कुनीतियां सुनीतिया के बांह गहु,

भला तोर करी भगवान रे फिरंगिया।

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14 अगस्त 21

 


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