जेपी नड्डा अपने छात्र जीवन में पटना में थे।
वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में थे।
वे परिषद की गतिविधियों से संबंधित प्रेस विज्ञप्तियां
भी पटना के अखबारों के दफ्तरों में पहुंचाते थे।
मैं तब दैनिक ‘आज’ में मुख्य संवाददाता का काम देखता है।
इसलिए मैं प्रत्यक्षदर्शी हूं।
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उधर नरेंद्र मोदी कभी नई दिल्ली में अपनी पार्टी के प्रेस कंाफ्रेंस में आने वाले संवाददाताओं के लिए कुर्सियां भी सजा देते थे।
दोनों आज शीर्ष पदों पर हैं।
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इस देश में अब ऐसे कितने राजनीतिक दल हैं जिनके सरजमीनी कार्यकत्र्ता आज शीर्ष पदों पर पहुंचने की उम्मीद रखते हैं ?
वैसे कई दलों में तो एमपी-विधायक फंड के ठेकेदार ही कार्यकत्र्ता की भूमिका में हैं।
वैसे जन प्रतिनिधियों के लिए यह अनुकूल स्थिति है जो अपने परिजन को ही अपनी जगह टिकट दिलवाना चाहते हैं और दिलवाते भी हैं।
यदि उनके क्षेत्र में कोई अच्छी मंशा वाला कार्यकत्र्ता उभरेगा तो वह टिकट का दावेदार भी बन सकता है।
ऐसी स्थिति क्यों आने दिया जाए !!!
इसलिए अंगुली पर गिने जाने लायक जन प्रतिनिधि ही सांसद -विधायक फंड की समाप्ति के पक्ष में हैं।
जबकि, नरेंद्र मोदी सांसद फंड बंद करने के पक्ष में हैं।
पर नहीं कर पा रहे हैं।
नीतीश कुमार ने तो कुछ साल पहले विधायक फंड बंद भी कर दिया था।
पर फिर उन्हें शुरू करना पड़ा।
इन फंडों की अपार महिमा तो देखिए !
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--सुरेंद्र किशोर
9 अगस्त 21
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