स्कूली शिक्षा की गिरावट में ‘‘छड़ियों
की छुट्टी’’ का कितना योगदान ?
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---सुरेंद्र किशोर--
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बाइबिल का एक वाक्यांश या मुहाबरा है--
‘‘स्पेयर द रड स्प्वाॅयल द चाइल्ड।’’
यानी, ‘‘छड़ी को छुट्टी’’ दे देने से बच्चे बिगड़ जाते हैें।
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दुनिया में पहली बार शिक्षकों के हाथों में जब छड़िर्यां आइं थीं, तो वह संभवतः बाइबिल से ही प्रेरित होकर।
मैं सन 1962 तक स्कूली छात्र था।
मैंने प्राथमिक से लेकर हाई स्कूल तक शिक्षकों के हाथों में छड़ियां देखी थीं।
कुछ मोटी तो कुछ पतली !
वैसे सारे छड़ीधारी शिक्षकों को छड़ियों का इस्तेमाल करना नहीं पड़ता था।यदाकदा ही उसका इस्तेमाल होता था।
छड़ी फटकारने से ही काम चल जाए तो इस्तेमाल क्यों करना ?
पर ,छड़ी की झलक पाते ही हम ‘चटिया’ यानी विद्यार्थी अपनी स्लेट-पेंसिल-किताब -कापी की ओर आकर्षित हो जाते थे।
हल्ला -गुल्ला बंद हो जाता था।
’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’
कुछ साल पहले इस देश में खास बिहार में सरकार ने शिक्षकों को उनकी छड़ियों से महरूम कर दिया।
अब विद्यालयों में शिक्षा-परीक्षा का क्या हाल है ?
सब कहेंगे कि गिरावट आई है।
पांचवीं के छात्र तीसरी क्लास तक की भी जानकारी नहीं रखते।
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शासन को इस बात की पड़ताल करानी चाहिए कि गिरावट में ‘‘छड़ियों की छुट्टी’’ का कितना योगदान रहा है ?
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2 दिसंबर 21
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