शनिवार, 25 दिसंबर 2021

 अटल बिहारी वाजपेयी

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( 25 दिसंबर 1924--16 अगस्त 2018)

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अटलजी के साथ मीडिया का एक और अन्याय !

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 बांग्ला देश युद्ध के समय इस देश के प्रेस ने अटल बिहारी वाजपेयी के मुंह में इंदिरा गांधी के लिए ‘दुर्गा’ शब्द डाल दिया था।

   जबकि, दुर्गा शब्द का उच्चारण आंध्र के एक कांग्रेसी एम.पी.ने लोक सभा में किया था।

सन 2002 में अमरीकी मैगजिन ‘टाइम’ ने लिख दिया कि बैठकों में प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सो जाते हैं।

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  पहले आम तौर पर यह माना जाता था,मै भी मानता था कि ‘टाइम’ एक बहुत ही जिम्मेदार पत्रिका है।

  कोई भी बात वह पत्रिका ठोक- बजा कर लिखती है।

उसका यह दावा भी था कि कोई भी स्टोरी करने के लिए पहले पत्रिका अपने संवाददाता-छायाकार की टीम भेजती है।

  उस टीम के लौटने के बाद वह दूसरी टीम उसकी पुष्टि के  लिए भेजती है।

  पर, उसका दावा बार -बार गलत निकला।

इसके कई अन्य उदाहरण सामने आए।

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साठ के दशक में गलत खबर से खिन्न डा.राम मनोहर लोहिया 

ने ‘टाइम’ पर मानहानि का मुकदमा कर दिया था। 

  उन्होंने दस पैसे के हर्जाने की कोर्ट से मांग की थी।

  याद रहे कि फूल पुर लोक सभा उप चुनाव के संबंध ‘टाइम’ ने निराधार खबर छापी थी।

‘टाइम’( 4 दिसंबर 1964) ने अन्य बातों के अलावा यह भी लिख दिया था 

कि ‘ डा.लोहिया नेहरू परिवार के आजीवन शत्रु हैं।’

  भारत की राजनीति के बारे में ‘टाइम’ की छिछली जानकारी का ही यह नतीजा था।

दरअसल समाजवादी नेता डा.लोहिया जवाहर लाल नेहरू की नीतियों का विरोध करते थे न कि वे उनके आजीवन शत्रु थे।

एक बार डा.लोहिया ने अपने मित्रों से कहा था कि ‘‘यदि मैं बीमार पड़ूंगा तो मेरी सबसे अच्छी सेवा- शुश्रूषा जवाहर लाल नेहरू के घर में ही होगी।’’

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सन 2019 के लोक सभा चुनाव के ठीक पहले टाइम मैगजिन ने प्रधान मंत्री मोदी के बारे में जो लेख लिखा, उसका शीर्षक था--‘‘इंडिया ’ज डिवाइडर इन चीफ’’

पर,जब लोस चुनाव में 303 सीटें मिल गईं तो टाइम ने अगले अंक में मनोज लदवा का एक लेख छापा जिसका आशय था--मोदी ने भारत को जिस तरह यूनाइट किया,वैसा पिछले कुछ दशकों में किसी अन्य प्रधान मंत्री ने नहीं किया।

याद रहे कि मोदी के शासनकाल में सांप्रदायिक दंगे पहले की  अपेक्षा बहुत ही कम हुए।

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याद रहे कि ‘डिवाइडर इन चीफ’ वाले लेख के  लेखक थे -आतिश तासिर।

वे पाकिस्तानी पिता और हिन्दुस्तानी महिला पत्रकार तवलीन सिंह के पुत्र हैं।

संभवतः वे लंदन में रहते हैं।

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   ऐसा नहीं कि सिर्फ भारतीय मीडिया गलतियां करता है।

  कई बार तो साधन की कमी के कारण भारतीय मीडिया को एक ही स्टोरी पर अधिक समय लगाना महंगा पड़ता है।

पर टाइम जैसी पत्रिका को साधनों की क्या कमी है ?

हर सप्ताह उसेे निकालने के लिए कंट्रीब्यूटर्स तथा करीब दो सौ स्टाफ जर्नलिस्ट होते हैं।

हां,कभी- कभी पत्रिका कीं मंशा गड़बड़ हो जाती है।

अन्यथा,लोहिया के बारे में वह पत्रिका यह बात नहीं लिखती--

 ‘‘लोहिया ने मतदाताओं से कहा कि विजयलक्ष्मी पंडित की सुन्दरता के जाल में न फंसें।

उनके अंदर केवल विष है।’

‘टाइम’ के अनुसार डा.लोहिया ने फुलपुर के मतदाताओं से  कहा कि श्रीमती पंडित की युवावस्था जैसी सुन्दरता इसलिए कायम है क्योंकि उन्होंने यूरोप में प्लास्टिक शल्य चिकित्सा करायी है।’’ याद रहे कि नेहरू के निधन से खाली हुई सीट से श्रीमती पंडित चुनाव लड़ रही थीं।

  ‘टाइम’ संवाददाता न तो फूलपुर गया था न ही कभी लोहिया से मिला था।

किसी अन्य व्यक्ति को भी उधृत नहीं किया था।

बैठकों में प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सो जाने की खबर को ‘टाइम’ ने किसी के हवाले से नहीं छापा ।

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पत्रकारिता का मूल मंत्र है कि जिस पर आरोप है,उस पर उस व्यक्ति का पक्ष भी भरसक साथ -साथ ही आ जाना चाहिए।

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25 दिसंबर 21 

 


     

   

 

 


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