क्यों न बाउंसर और देसी पहलवानों को विधायक और सासंद बनवाकर उनसे ही सदन में शांति कायम करवाई जाए ???
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--सुरेंद्र किशोर--
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इस देश की विधायिकाआंे में शांति बनाए रखने में यह लोकतांत्रिक सिस्टम पूरी तरह फेल हो गया है।
क्यों न अब यह काम बाउंसरों और देसी पहलवानों को सौंप दिया जाए ?
बाउंसरों व पहलवानों को सदन का मार्शल बनाकर नहीं बल्कि सदन का सदस्य बनवाकर।
इनके लिए अघोषित रूप से दस प्रतिशत सीटें
आरक्षित हो जाएं।हर सदन में हल्ला ब्रिगेड के सदस्यों की संख्या भी 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होती।
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अघोषित आरक्षण एक मामले में तो पहले से है।
जातिवादी-परिवारवादी दलों के सुप्रीमो के
परिजन के लिए अघोषित आरक्षण का कोटा बढ़ता जा रहा है।
अपवादों को छोड़कर जितने परिजन उपलब्ध व इच्छुक होते हैं,वे सब किसी न किसी सदन के सदस्य बना ही दिए जाते रहे हैं।
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दस प्रतिशत बाउंसर-पहलवान के आलावा अन्य दस प्रतिशत सीटें संसदीय मामलों के जानकार लोगों के लिए आरक्षित हांे।
ऐसा नहीं कि आज विभिन्न सदनों में वैसे जानकार लोग नहीं हैं।
जरूर हैं, पर ,उनकी संख्या बढ़े।
हां,यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि बाउंसर या पहलवान
आदतन अपराधी या चोर न हो।
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बाउंसरों -पहलवानों का काम यह होगा कि जैसे ही सदन में ‘हल्ला ब्रिगेड’ सदन का माहौल बिगाड़ना शुरू करे,वे उठकर उनकी निर्धारित सीटों पर उन्हें जबरन बैठा दिया करें।
उनके पास खड़े रहें।
पीठासन पदाधिकारी देशहित-लोकतंत्र हित में उन्हें यह ‘कत्र्तव्य’ निभाने दें।
सदन में जैसे ही ‘गुंडई’ शुरू हो , बाउंसर-पहलवान सदस्य सक्रिय हो जाएं।
यदि मैंने गंुडई शब्द का इस्तेमाल कर दिया तो क्या वह गलत है ?
इन दिनों देश के विभिन्न सदनों में अक्सर जिस तरह के अशोभनीय दृश्य उपस्थित होते रहते हैं,यदि वैसे दृश्य कोई चैक -चैराहे पर उपस्थित करे,तो आप उसे गुंडा कहेंगे या शरीफ आदमी ?
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8 दिसंबर 21
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