शनिवार, 18 दिसंबर 2021

 


कानोंकान

सुरेंद्र किशोर

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हर्ष फायरिंग पर विभिन्न अदालतों के फैसलों का अध्ययन करे सरकार  

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आए दिन हर्ष फायारिंग में निर्दोष लोगों की जानें जाती रहती हैं।

  हर्ष फायरिंग का एक मामला सन 2015 में दिल्ली अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश मनोज जैन की अदालत में आया था।अदालत ने दोषी व्यक्ति को सजा देते हुए कहा था कि ‘‘समय आ गया है कि सरकार शस्त्रों के लाइसेंस देने की प्रक्रिया कड़ी करे।

साथ ही एक मजबूत तंत्र विकसित करे ताकि यह सुनिश्चित हो कि इन लाइसेंसों का दुरुपयोग ना हो।’’  

  अदालत ने यह भी कहा था कि हर्ष फायरिंग जब राष्ट्रीय राजधानी में हो रही है तो ग्रामीण और दूर दराज के इलाकों के बड़े हिस्सों में यह निश्चित रूप से होगा।सन 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने भी हर्ष फायरिंग के खिलाफ अपनी राय जाहिर की थी।

इन सबके बावजूद हर्ष फायरिंग और उनमें हो रही हत्याएं नहीं रुक रही हैं।

ऐसे में एक सवाल उठना मौजू है। शासन जिन्हें आग्नेयास्त्र का लाइसेंस देता है,क्या उनकी कोई जांच होती है ?

खासकर यह जांच कि उस व्यक्ति शस्त्र चलाने आता भी है या नहीं ?

क्या ऐसा कोई नियम भी है ?

यदि है तो लगता है कि उसका पालन नहीं होता।

यदि नियम नहीं है तो ऐसा नियम बनना चाहिए।

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  त्रिकोणीय बनती देश की राजनीति

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लोक सभा के अगले चुनाव में अभी देर है।पर मोर्चेबंदी अभी से शुरू है।

उस चुनाव को लेकर सर्वाधिक हड़बड़ी में ममता बनर्जी हैं।

संकेत साफ हैं।ममता चाहती हैं कि प्रतिपक्ष उनके ही नेतृत्व में 2024 में नरेंद्र मोदी का मुकाबला करे।

पर,यह संभव होता प्रतीत नहीं हो रहा है।

 कांग्रेस को ममता का नेतृत्व मंजूर नहीं है।उधर ममता को कांग्रेस का नेतृत्व पसंद नहीं है।

 यानी,बीच में कोई राजनीतिक चमत्कार नहीं हुआ तो अगला लोक सभा चुनाव त्रिकोणात्मक होगा।

इससे सबसे अधिक प्रसन्न कौन होगा ?

जाहिर है कि राजग और उसके नेता नरेंद्र मोदी।

 ममता बनर्जी की जिद के कारण अगले लोक सभा चुनाव का मुकाबला राष्ट्रीय स्तर पर त्रिकोणात्मक होने की संभावना 

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भूली बिसरी याद

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दिसंबर का महीना कई मामलों में महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक है।

बंगला देश मुक्ति युद्ध की समाप्ति के बाद 16 दिसंबर, 1971 को 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने ढाका में आत्म समर्पण किया।

  देश के प्रथम राष्ट्रपति डा.राजेंद्र प्रसाद का 3 दिसंबर, 1884 को हुआ था।

कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर, 1885 को हुई थी।

मशहूर गणितज्ञ एस रामानुजन का जन्म दिसंबर में हुआ था।

राजनेता और सामाजिक कार्यकत्र्ता ई.वी.रामास्वामी पेरियार 

की पुण्य तिथि दिसंबर में ही है। 

पूर्व प्रधान मंत्री चैधरी चरण सिंह और पत्रकार-लेखक बनारसीदास चतंर्वेदी का जन्म दिसंबर में हुआ था।

राम वृक्ष बेनीपुरी का जन्म दिसंबर में हुआ तो मैथिली शरण गुप्त का निधन इसी महीने हुआ।स्टालिन,माओ और अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म दिसंबर में हुआ।

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ऐसे हो वाहनों का इस्तेमाल 

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आम तौर पर एक ही विमान में राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री एक साथ एक जगह से दूसरी जगह नहीं जाते।

राज्यपाल और मुख्य मंत्री भी एक साथ एक ही वाहन में यात्रा

नहीं करते।

  पर जिस देश में हर साल सड़क दुर्घटनाओं में करीब डेढ़ लाख लोगों की जान जाती हो,वहां साधन वाले लोग एक सावधानी बरत सकते हैं।

 वे परिवार के सभी महत्वूपर्ण सदस्य एक ही गाड़ी में बैठकर सफर न करंे।

साथ ही सफर की शुरुआत करते समय यह बात सुनिश्चित कर लें कि उनके ड्रायवर ने पिछली रात अच्छी नींद ली है या नहीं।

 हाल में सी.डी.एस.बिपिन रावत की हेलिकाॅप्टर दुर्घटना में मौत हो गई।उनके साथ कई अन्य बहुमूल्य जानें चली गईं।

 भविष्य में महत्वपूर्ण हस्तियों को अलग -अलग हेलिकाप्टर में सफर करने की सुविधा  मिलनी चाहिए।

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बाहुबलियों से मुक्ति कैसे मिले

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उत्तर प्रदेश के विवादास्पद नेता अजय मिश्र टेनी को न तो मीडियाकर्मियों की प्रतिष्ठा का ध्यान रहा और न ही अपने पद की गरिमा का ख्याल।

दरअसल बाहुबलियों के साथ यह समस्या कोई नई नहीं है।

बाहुबलियों से लगभग पूरे देश की राजनीति भरी पड़ी है। 

इस देश के ऐसे बाहुबली नेता आए दिन अपनी हरकतों से अपनी पार्टी को भी शर्मिंदा करते रहे हैं।

 क्या इस देश की राजनीति ऐसे बाहुबलियों से मुक्ति नहीं पा सकती ?

जरूर पा सकती है।पर उसके लिए दलों के बीच आम सहमति 

की आवश्यकता पड़ेगी जिसका इन दिनों राजनीति में भारी अभाव है।

  वैसे सदिच्छा रखने में हर्ज ही क्या है ?

समय- समय पर सरकार दल व समाज को परेशान करने वाले वैसे खूंखार बाहुबली  की संख्या देश की विधायिकाओं में दो-तीन प्रतिशत से अधिक नहीं है।वे अपने चुनाव क्षेत्रों में 

 भी लोकप्रिय हैं।हालांकि उन्हें 50 प्रतिशत से  कम ही वोट मिलते हैं।कोई दल ऐसे बाहुबलियों को टिकट न दे।

यदि वह निर्दलीय लढड़ता है तो सभ्ी दल मिलकर उसके खिलाफ कोई एक उम्मीदवार खड़ा करे।

फिर तो उसकी हार निश्चित है।कुछ चुनाव हारने के बाद उसकी प्रभाव भी अपने क्षेत्र में कम हो जाएगा।


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और अंत में

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बिहार में टांसमिशन व डिस्ट्रिब्यूशन में करीब एक तिहाई बिजली का ‘लोप’ हो जाता है।

 24 नवंबर 2005 से पहले बिहार में बिजली की दैनिक खपत करीब सात सौ मेगावाट थी।

अब खपत बढ़कर 6627

मेगावाट हो गई है।

अधिक खपत यानी अधिक घाटा।

इसे कम करने के लिए बिहार सरकार ने स्मार्ट प्री पेड मीटर लगाने का काम शुरू किया है।पर ऐसे मीटर का जहां -तहां किसी न किसी बहाने विरोध हो रहा है।

विरोध करने वालों की मंशा समझ लीजिए। 

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प्रभात खबर पटना -17 दिसंबर 21


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