शनिवार, 13 अप्रैल 2024

 13 अप्रैल 1919

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जालियांवाला बाग नर संहार से क्षुब्ध जवाहरलाल 

नेहरू अपना आरामदायक जीवन त्याग कर 

आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे 

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सुरेंद्र किशोर

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    जालियांवाला बाग नर संहार ने नेहरू परिवार की जीवन-शैली बदल दी थी।

 वह परिवार अंग्रेजों के खिलाफ अभियान में शामिल हो गया।

13 अप्रैल, 1919 को अंग्रेजों ने 319 लोगों को मार डाला था।

यह संख्या सरकारी है।गैर सरकारी सूत्रों के अनुसार मृतकों की संख्या इससे अधिक थी।

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  रौलट एक्ट के विरोध में गांधी के उठ खड़ा होने की खबर समाचार पत्रों में पढ़कर युवा जवाहर लाल नेहरू जरूर राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल होना चाहते थे।पर, उनके पिता मोतीलाल नेहरू का तब इस बात पर विश्वास नहीं था कि मुट्ठी भर लोगों के जेल चले जाने से देश का कोई भला हो सकता है।

    उधर जवाहर लाल, महात्मा गांधी के साथ जुड़ने को उतावले थे।

इस सवाल पर मोतीलाल नेहरू और जवाहर लाल नेहरू के बीच अक्सर बहस होती थी।

 जवाहर लाल की बहन कृष्णा हठी सिंग ने लिखा है कि ‘‘इससे हमारे घर की शांति ही भंग हो गई थी।’’

 अपनी पुस्तक ‘इंदु से प्रधान मंत्री’ में कृष्णा ने लिखा है कि ‘‘हर स्थिति में से रास्ता निकालने में कुशल मेरे पिता जी ने आखिर इसका हल भी खोज ही लिया।उन्होंने गांधी जी को ही इलाहाबाद बुलाया।इस तरह गांधी जी हमारे यहां पहली बार आए,और तब उनका और नेहरू परिवार का पारस्परिक स्नेह क्रमशः गाढ़ा होता गया।’’

    ‘लंबी चर्चाओं के दौरान पिता जी और गांधी जी ने भारत की समस्याओं के अपने -अपने हल प्रस्तुत किए।लेकिन उनकी चर्चा जवाहर पर केंद्रित हो गई।क्योंकि पिता जी किसी ऐसे अकाट्य तर्क की खोज में थे जिससे जवाहर को सत्याग्रह सभा में शामिल होने से रोका जा सके। 

गांधी जी बिलकुल ही नहीं चाहते थे कि इस सवाल को लेकर पिता-पुत्र में मन मुटाव हो, इसलिए वह पिता जी की इस राय से सहमत हो गए कि जवाहर लाल को जल्दीबाजी में कोई फैसला नहीं करना चाहिए। 

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लेकिन गांधी जी की यह सलाह बेकार ही साबित हुई। क्योंकि घटनाक्रम ने ऐसा मोड़ लिया जिससे सब कुछ गड़बड़ा गया। वह लोमहर्षक घटना थी पंजाब के एक शहर अमृतसर में निहत्थे लोगों पर गोरी हुकूमत का खूनी हमला।’

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उसके बाद जवाहरलाल नेहरू आजादी की लड़ाई में कूद पड़े।

सत्ता पाने के बाद नेहरू ने देश का कितना भला किया या नहीं किया,यह इस लेख का विषय नहीं है।

पर 1919 में तो उन्होंने अपने भविष्य की परवाह नहीं ही की थी।

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    इस पृष्ठभूमि में आज की राजनीति पर गौर कीजिए।

कैसे -कैसे लोग राजनीतिक दलों में शामिल किये जा रहे हैं ?

कैसे- कैसे नेता चुनावी टिकट पा रहे हैं ?

टिकट कटने के बाद किस तरह अधिकतर नेता बिन जल मछली की तरह छटपटाने लग रहे हैं !

अपवादों को छोड़कर आज, सेवा के लिए नहीं बल्कि मेवा के लिए लोग राजनीति में जा रहे हैं।ऐसे लोगों से देश का कैसे भला होगा ?

जबकि आज देश के समक्ष कम चुनौतियां नहीं हैं।

देसी-विदेशी शक्तियां इस देश को तोड़ने के लिए दिन -रात काम कर रही हैं।वे हथियारबंद दस्ते तैयार कर रहे हैं।कई राजनीतिक नेता गण उन राष्ट्रविरोधियों का बेशर्मी से साथ दे रहे हैं।

ऐसे में यह अधिक जरूरी है कि राजनीति में अधिक से अधिक वैसे लोगों को लाया जाए, तरजीह दी जाएं जो बिकाउ न हों।

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13 अप्रैल 24


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