23 अप्रैल-वीर कंुवर सिंह
विजयोत्सव दिवस
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सुरेंद्र किशोर
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स्वतंत्रता सेनानी पंडित सुन्दर लाल की चर्चित पुस्तक ‘‘भारत में अंग्रेजी राज’’( द्वितीय खंड) में यह लिखा गया है कि अंग्रेज बहादुर वीर कुंवर सिंह से लगातार कितनी बार हारे !
सुन्दर लाल समकालीन लेखक थे।
इतिहास के किस अन्य पुस्तक में ऐसा विस्तृत विवरण मिलता है ?
नहीं मिलता।
क्योंकि आजादी के बाद के हमारे शासकों के निदेश पर इतिहासकारों ने महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी जैसे योद्धाओं को भी कम करके दिखाया।
जानकार लोग बताते हैं कि तब के शासकों को यह भय था कि वे योद्धा जैसे वे थे,वैसा दिखाने पर देश में हिन्दुत्व की भावना बढ़ेगी।
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पंडित सुन्दर लाल की किताब में पहले पढ़िए 23 अप्रैल 1858 के युद्ध में पराजित अंग्रेज सेना
के अफसर की रोमांचक व्यथा-कथा
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उस अंग्रेज सैनिक अफसर के शब्दों में,
‘‘वास्तव में, इसके बाद जो कुछ हुआ,उसे लिखते हुए मुझे अत्यंत लज्जा आती है।
लड़ाई का मैदान छोड़कर हमने जंगल में भागना शुरू किया।
शत्रु हमें बराबर पीछे से पीटता रहा।
हमारे सिपाही प्यास से मर रहे थे।
एक निकृष्ट गंदे छोेटे से पोखर को देखकर वे उसकी तरफ लपके।
इतने में कुंवर सिंह के सवारों ने हमें पीछे से आ दबाया।
इसके बाद हमारी जिल्लत की कोई हद न थी।
हमारी विपत्ति चरम सीमा को पहुंच गई।
हम से किसी में शर्म तक न रही।
जहां जिसको कुशल दिखाई दी,वह उसी ओर भागा।
अफसरों की आज्ञाओं की किसी ने परवाह नहीं की।
व्यवस्था और कवायद का अंत हो गया।
चारों ओर आहों, श्रापों और रोने के सिवा कुछ सुनाई न देता था।
मार्ग में अंग्रेजों के गिरोह के गिरोह मरे।
किसी को दवा मिल सकना असंभव था।
क्योंकि हमारे अस्पतालों पर कुंवर सिंह ने पहले ही कब्जा कर लिया था।
कुछ वहीं गिर कर मर गए ।
बाकी को शत्रु ने काट डाला।
हमारे कहार डोलियां रख -रख कर भाग गए।
सब घबराए हुए थे,सब डरे हुए थे।
सोलह हाथियों पर हमारे घायल साथी लदे हुए थे।
स्वयं जनरल लीगै्रण्ड की छाती में एक गोली लगी और वह मर गया।
हमारे सिपाही अपनी जान लेकर पांच मील से ऊपर दौड़ चुके थे।
उनमें अब बंदूक उठाने तक की शक्ति न रह गई थी।
सिखों को वहां की धूप की आदत थी।
उन्होंने हमसे हथियार छीन लिए और हमसे आगे भाग गए।
गोरों का किसी ने साथ न दिया।
199 गोरों में से 80 इस भयंकर संहार से जिन्दा बच सके।
हमारा इस जंगल में जाना ऐसा ही हुआ,जैसा पशुओं का कसाईखाने में जाना।
हम वहां केवल वध के लिए गए थे।’’
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इतिहास लेखक व्हाइट ने भी लिखा है कि
‘‘इस अवसर पर अंग्रेजों ने पूरी और बुरी से बुरी हार खाई।’’
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इससे पहले के युद्धों में अंग्रेजों
की लगातार पराजय के विवरण
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ईस्ट इंडिया कंपनी की फौजें कई युद्धों में जिस भारतीय राजा से हार गयी थी ,उस राजा का नाम था बाबू वीर कुंवर सिंह।
वीर कुंवर सिंह की याद में बिहार में बड़े पैमाने पर 23 अप्रैल को विजयोत्सव मनाया जाता है।
बिहार के जगदीशपुर के कंुवर सिंह जब अंग्रेजों से लड़ रहे थे, तब उनकी उम्र 80 साल थी।
यह बात 1857 की है।
याद रहे कि भोजपुर जिले के जगदीशपुर नामक पुरानी राजपूत रियासत के प्रधान को सम्राट् शाहजहां ने राजा की उपाधि दी थी।
मशहूर पुस्तक ‘भारत में अंग्रेजी राज’ के यशस्वी लेखक पंडित सुन्दर लाल ने उन युद्धों का विस्तार से विवरण लिखा है।
(अंग्रेजों के शासनकाल में ही यह पुस्तक लिखी गई थी।अंग्रेज सरकार ने इस किताब पर प्रतिबंध लगा दिया था।)
लेखक के अनुसार
‘जगदीश पुर के राजा कुंवर सिंह आसपास के इलाके में अत्यंत सर्वप्रिय थे।
कुवंर सिंह बिहार के क्रांतिकारियों का प्रमुख नेता और सन 57 के सबसे ज्वलंत व्यक्तियों में थे।
जिस समय दानापुर की क्रांतिकारी सेना जगदीशपुर पहंची, बूढ़े कुंवर सिंह ने तुरंत अपने महल से निकल कर शस्त्र उठाकर इस सेना का नेतृत्व संभाला।
कुंवर सिंह इस सेना सहित आरा पहुंचे।
बिहार में 1857 का संगठन अवध और दिल्ली जैसा तो न था,फिर भी उस प्रांत में क्रांति के कई बड़े -बड़े केंद्र थे।
पटना में जबर्दस्त केंद्र था जिसकी शाखाएं चारों ओर फैली थीं।
पटना के क्रांतिकारियों के मुख्य नेता पीर अली को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया।
पीर अली की मृत्यु के बाद दानापुर की देशी पलटनों ने स्वाधीनता का एलान कर दिया।
ये पलटनें जगदीश पुर की ओर बढ़ीं।
बूढ़े कुंवर सिंह आरा पहुंचे।
उन्होंने आरा में अंग्रेजी खजाने पर कब्जा कर लिया।
जेलखाने के कैदी रिहा कर दिए गए।
अंग्रेजी दफ्तरों को गिराकर बराबर कर दिया गया।
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आरा के बाग का संग्राम
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29 जुलाई को दानापुर के कप्तान डनवर के अधीन करीब 300 गोरे सिपाही और 100 सिख सैनिक आरा की ओर मदद के लिए चले।
आरा के निकट एक आम का बाग था।कुंवर सिंह ने अपने कुछ आदमी आम के वृक्षों की टहनियों में छिपा रखे थे।
रात का समय था।
जिस समय सेना ठीक वृक्षों के नीचे पहुंची,अंधेरे में ऊपर से गोलियां बरसनी शुरू हो गयीं।
सुबह तक 415 सैनिकों में से सिर्फ 50 जिंदा बचकर दाना पुर लौटे।
डनवर भी मारा गया था।
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बीबी गंज का संग्राम
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इसके बाद मेजर आयर एक बड़ी सेना और तोपों सहित आरा किले में घिरे अंग्रेजों की सहायता के लिए बढ़ा।
2 अगस्त को आरा के बीबी गंज में आयर और कुंवर सिंह की सेनाओं के बीच संग्राम हुआ।
इस बार आयर विजयी हुआ।
उसने 14 अगस्त को जगदीश पुर के महल पर भी कब्जा कर लिया।
कुंवर सिंह 12 सौ सैनिकों व अपने महल की स्त्रियों को साथ लेकर जगदीश पुर से निकल गए।
उन्होंने दूसरे स्थान पर जाकर अंग्रेजों के साथ अपना बल आजमाने का निश्चय किया।
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मिलमैन की पराजय
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18 मार्च, 1858 को दूसरे क्रांतिकारियों के साथ कुंवर सिंह आजमगढ़ से 25 मील दूर अतरौलिया में डेरा डाला।
मिलमैन के नेतृत्व में अंग्रेज सेना ने 22 मार्च 1858 को कुंवर सिंह से मुकाबला किया।मिलमैन हार कर भाग गया।
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डेम्स की पराजय
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28 मार्च को कर्नल डेम्स के नेतृत्व में एक बड़ी सेना ने कुंवर सिंह पर हमला किया।
इस युद्ध में भी कुंवर सिंह विजयी रहे।
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लार्ड केनिंग की घबदाहट
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कुंवर सिंह ने आजमगढ़ पर कब्जा किया।
किले को दूसरों के लिए छोड़कर कुंवर सिंह बनारस की तरफ बढ़े।
लार्ड केनिंग उस समय इलाहाबाद में था।
इतिहासकार मालेसन लिखता है कि बनारस पर कुंवर सिंह की चढ़ाई की खबर सुन कर कैनिंग घबरा गया।
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लार्ड मार्क की पराजय
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उन दिनों कंुवर सिंह जगदीश पुर से 100 मील दूर बनारस के उत्तर थे।
लखनऊ से भागे कई क्रांतिकारी कुंवर सिंह की सेना में आ मिले।
लार्ड कैनिंग ने लार्ड मारकर को सेना और तोपों के साथ कुंवर ंिसंह से लड़ने के लिए भेजा।
6 अप्रैल को लार्ड मारकर की सेना और कुंवर सिंह की सेना में संग्राम हुआ।
किसी ने उस युद्ध का विवरण इन शब्दों में लिखा है,‘
उस दिन 81 साल का बूढ़ा कुंवर सिंह अपने सफेद घोड़े पर सवार ठीक घमासान लड़ाई के अंदर बिजली की तरह इधर से उधर लपकता हुआ दिखाई दे रहा था।’
अंततः लार्ड मारकर हार गया।
उसे अपनी तोपों सहित पीछे हटना पड़ा।
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लगर्ड की पराजय
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कुंवर सिंह की अगली लड़ाई सेनापति लगर्ड के नेतृत्व वाली सेना से हुई।
कई अंग्रेज अफसर व सैनिक मारे गए।
कंपनी की सेना पीछे हट गयी।
कुंवर सिंह गंगा नदी की तरफ बढ़े।वे जगदीश पुर लौटना चाहते थे।
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डगलस की पराजय
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एक अन्य सेनापति डगलस के अधीन सेना कुंवर सिंह से लड़ने के लिए आगे बढ़ी।
नघई नामक गांव के निकट डगलस और कुंवर सिंह की सेनाओं में संग्राम हुआ।
अंततः डगलस हार गया।
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कुंवर सिंह गंगा की तरफ बढ़े
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कुंवर सिंह अपनी सेना के साथ गंगा की ओर बढ़े।
कुंवर सिंह गंगा पार करने लगे।बीच गंगा में थे।
अंग्रेजी सेना ने उनका पीछा किया।
एक अंग्रेज सैनिक ने गोली चलाई।गोली कुंवर सिंह को लगी।
गोली दाहिनी कलाई में लगी।
विष फैल जाने के डर से कुंवर सिंह ने बाएं हाथ से तलवार खींच कर अपने दाहिने हाथ को कुहनी पर से काट कर गंगा में फेंक दिया।
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जगदीश पुर में प्रवेश
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22 अप्रैल को कंुवर सिंह ने वापस जगदीश पुर में प्रवेश किया।
आरा की अंग्रेजी सेना 23 अप्रैल को लीग्रंैड के अधीन जगदीश पुर पर हमला किया।
इस युद्ध में भी कुंवर सिंह विजयी रहे।
पर घायल कुंवर सिंह की 26 अप्रैल, 1858 को मृत्यु हो गयी।
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कुंवर सिंह का चरित्र
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इतिहास लेखक के अनुसार ,
कुंवर सिंह का व्यक्तिगत चरित्र अत्यंत पवित्र था।
उनका जीवन परहेजकारी का था।
उनके राज में कोई मनुष्य इस डर से कि कुंवर सिंह देख न लंे, खुले तौर पर तंबाकू तक नहीं पीता था।
उनकी सारी प्रजा उनका बड़ा आदर करती थी और उनसे प्रेम करती थी।
युद्ध कौशल में वे अपने समय में अद्वितीय थे।
इतिहास लेखक होम्स ने लिखा है कि ‘‘उस बूढ़े राजपूत की,जो ब्रिटिश सत्ता के विरूद्ध इतनी बहादुरी और आन से लड़ा, 26 अप्रैल, 1858 को मृत्यु हुई।’’
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23 अप्रैल 24
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