16 अप्रैल 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने ठीक ही कहा --
‘‘बैलेट से चुनाव में क्या होता था,आप भूल गए होंगे पर हमें याद है।’’
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सुरेंद्र किशोर
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सुप्रीम कोर्ट की बात की पुष्टि करेगी सन 1999 की यह खबर।
(हिन्दुस्तान में छपी उस खबर की स्कैन काॅपी यहां दी जा रही है।)
वैसे यह तो एक नमूना मात्र है।
उन दिनों जब भी मतदान होता था,दूसरे दिन अखबारों में ऐसी ही भयावह खबरें छपती थीं।
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26 सितंबर, 1999 के दैनिक हिन्दुस्तान,पटना के पहले पेज पर छपी खबर का शीर्षक है--
‘‘जमकर बूथ कब्जा और मत पत्रों की लूट के बीच नौ मरे’’
बिहार के 19 संसदीय क्षेत्रों में हुए दूसरे चरण के मतदान में हिंसा की घटना पहले चरण के मुकाबले कम रही।
लेकिन बूथ कब्जा ,मत पत्रों की छपाई(यानी बैलेट पेपर्स छीन कर उन पर अपनी पसंद की पार्टी के पक्ष में ठप्पे लगाने की घटनाएं )की खबरें प्राय सभी स्थानों से प्राप्त हुई है।’’
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जाहिर है कि मतपत्रों के जरिए मतदान की उस व्यवस्था के कारण ही इतने बड़े पैमाने पर धांधली हुआ करती थी।
ऐसी ही धांधलियों को रोकने के लिए ही इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों के जरिए मतदान का प्रावधान शुरू किया गया।
उसके बाद कितना फर्क आया है,यह बताने की जरूरत नहीं।
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पर,अब कई दल यह मांग कर रहे हैं कि फिर से मतपत्रों के जरिए ही मतदान हो।
जाहिर है कि इस मांग के पीछे की मंशा क्या है।
वे फिर से उन्हीं धांधलियों को दुहरा कर चुनाव जीतना चाहते हैं।
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हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मांग को ठुकरा कर शांतिप्रिय मतदाताओं के पक्ष में निर्णय किया है।
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17 अप्रैल 24
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