कई दशक पहले की बात है।
घुसपैठियों की यहां बढ़ती संख्या से उपजी समस्याओं पर तब एक निजी टी.वी.चैनल पर गरमा गरम बहस चल रही थी।
देश के पूर्व विदेश सचिव मुचकुंद दुबे ओर शिवसेना के राज्य सभा सदस्य संजय निरुपम चर्चा में आमने -सामने थे।
मैं भी वह डिबेट सुन रहा था।
इस समस्या पर ‘‘नेहरू युग की नीति की लाइन’’ पर बोलते हुए दुबे जी
ने कहा कि यदि हम अपनी सीमाओं पर बाड़ लगाएंगे यानी पक्की घेराबंदी करेंगे तो दुनिया में भारत की छवि खराब होगी।
उस पर संजय निरुपम ने दुबे जी से सवाल किया--आप भारत के विदेश सचिव थे या बांग्ला देश के ?
शालीन दुबे जी चुप रह गये।
इसमें दुबे जी की भला क्या गलती थी ?
पचास के दशक में दुबे जी विदेश सेवा के लिए चुने गये थे।
तब भारत सरकार की वही नीति थी।
वे ढाका में भारत के उच्चायुक्त रह चुके थे।
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इस गैर जिम्मेदाराना नीति का हाल तक मजबूती से पालन होता गया।
नतीजतन सन 2017 तक हमारे देश में करीब 5 करोड़ बांग्लादेशी-रोहिंग्या घुसपैठिए भारत के ही वोट लोलुप नेताओं व भ्रष्ट सरकारी अफसरों-कर्मचारियों की मदद से जहां तहां बस चुके हैं।बस रहे हैं।
उनके कारण इस देश के कई जिलों व इलाकों में आबादी का अनुपात बदल चुका है।
अब तो घुसपैठियों की यह संख्या और भी बढ़ गयी है।
आज घुसपैठियों के सबसे बड़े मददगार पश्चिम बंगाल के शासक हैं।आश्चर्य है कि सीमा पर
तैनात अर्धसैनिक बलों को भी लगभग निष्क्रिय कर दिया गया है।करीब 10-12 हजार रुपए में ही घुसपैठियों के सारे जरूरी सरकारी कागजात बन जाते हैं।
शायद इस चुनाव के नतीजे आ जाने के बाद कोई बड़ी कार्रवाई हो।
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22 अप्रैल 24
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