एक परिवार से एक ही टिकट
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सुरेंद्र किशोर
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करीब दो साल पहले उत्तर प्रदेश विधान
सभा का चुनाव हुआ।
उस चुनाव में भाजपा नेतृत्व ने किसी ऐसे भाजपा नेता के परिजन को टिकट नहीं दिया जो नेता खुद पहले से किसी न किसी सदन के सदस्य थे।
इस तरह कई के टिकट कट गये।
पार्टी में असंतोष फैला तो प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जिन्हें टिकट नहीं मिला है,उस फैसले के लिए मैं जिम्मेदार हूं।
यानी, किसी और पर गुस्सा मत कीजिए।
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किसी ने सवाल किया--राजनाथ सिंह के पुत्र को तो टिकट मिल गया।
जवाब आया कि इस नियम के लागू होने से पहले से जो विधायक थे,उन्हें अपवाद माना गया।
वैसे यदि अपवाद न माना जाता तो बेहतर होता।
पर, इतना तो मानिएगा कि परिवारवाद-वंशवाद के राजनीतिक समुद्र में इस देश में टापू की तरह एक पार्टी ऐसी भी मौजूद है जो अब एक परिवार से एक ही व्यक्ति को सदन मंे पहुंचा रही है।चाहे कोई खुश रहे या नाराज !
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यदि भाजपा कभी अपने ही इस नियम को तोड़े तो जरूर लोगों को बताइएगा।
क्योंकि नियम बनाना तो आसान है,पर उस पर कायम रहना बड़ा मुश्किल है।
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इस नियम को आज कितने अन्य दल अपनाने को तैयार हैं ?
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इसके विपरीत इस देश में ऐसे-ऐसे परिवारवादी -वंशवादी राजनीतिक दल हैं जिनके सुप्रीमो के परिवार का जो भी सदस्य सदन में जाना चाहता है,उसके लिए राह बना दी जाती है।
इस परिवारवाद के कारण ही कांग्रेस की हालत आज सबसे खराब है।
ऐसे अन्य दलों का भी देर -सबेर वही हश्र होने वाला है।
समय रहते अपने राजनीतिक विरोधी से कम से कम एक सबक तो सीख लो।
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13 अप्रैल 24
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