मोदी व भाजपा को उनके विरोधियों ने अपनी
अदूरदर्शिता के कारण अधिक ताकत पहुंचाई
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सुरेंद्र किशोर
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मशहूर चुनाव विश्लेषक संजय कुमार ने लिखा है कि
‘‘चुनाव में राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व अब केंद्रीय मुद्दा बन गए हैं।’’
(दैनिक भास्कर--19 अप्रैल,2024)
हालांकि उन्होंने महंगी और बेरोजगारी को भी अहम मुद्दा माना है, लेकिन केंद्रीय मुद्दा नहीं।
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लेखक के अनुसार, ‘‘सी.एस.डी.एस.-लोकनीति के चुनाव पूर्व सर्वेक्षण से निष्कर्ष निकलता है कि भारतीय जनता पार्टी के लिए बड़े पैमाने पर वोट खींचने वाला फैक्टर आज पार्टी की छवि नहीं,बल्कि उसका शीर्ष नेतृत्व यानी मोदी फैक्टर बन चुका है।’’
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इस अवसर पर मैं एक पुराना वाकया दुहरा दूं।
1990-91 के मंडल आरक्षण विवाद के दौरान लालू प्रसाद सामाजिक न्याय के हीरो बनकर उभरे थे।
उनके हीरों बनने में खुद उनका जितना योगदान था,उससे काफी अधिक योगदान तब के आरक्षण विरोधियों का था।
बाद के वर्षों में यदि लालू प्रसाद ने पैसा-परिवार को लेकर संयम बरता होता तो वे पिछड़ों के नेता के साथ-साथ उनके मसीहा भी बन गये होते।
आज तो वे पिछड़ों में भी तब की अपेक्षा एक छोटे समूह के नेता रह गये हैं।
याद रहे कि मंडल आरक्षण, केंद्र की वी.पी.सिंह सरकार का न सिर्फ संविधान सम्मत कदम था,बल्कि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भीं उस पर मुहर लगा दी।
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आजादी के तत्काल बाद के वर्षों में कांग्रेस को बिहार में भी जब -जब पूर्ण बहुमत मिला,तब -तब उसने सिर्फ सवर्णों को ही मुख्य मंत्री बनाया।
उस पर किसी सवर्ण नेता या बुद्धिजीवी ने कभी आवाज उठाई ?
हां,आज जब 1990 से लगातार पिछड़ी जातियों के नेता ही बिहार के मुख्य मंत्री बन रहे हैं तो उन्हंे उस पर एतराज हो रहा है।
अरे भाई,जो आपने बोया है,वही तो काट रहे हैं।
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अब आप देश की मौजूदा स्थिति की समीक्षा करिए।
हिन्दुत्व और सनातन विरोधी राजनीतिक दलों और शक्तियों ने भाजपा व उसके नेता नरेंद्र मोदी को अनजाने में हीरो बना दिया है।(मोदी की ईमानदार छवि भी लोगों को आकर्षित करती है।)
जिस राम मंदिर के पक्ष में अंततः सुप्रीम कोर्ट का भी निर्णय आया,उस मंदिर के खिलाफ
अनेक भाजपा-राजग विरोधी दलों ने दशकों तक न जाने कैसे -कैसे अभियान चलाये !
वह सब मुस्लिम वोट को खुश करने के लिए हुआ।
इस विरोध के खिलाफ बड़े हिन्दू समूह की गोलबंदी होनी ही थी।सो हुई।
जिस तरह 90 के दशक में पिछड़ों की 52 प्रतिशत आबादी के साथ हो रहे न्याय को कुछ लोगों ने बर्दाश्त नहीं किया ,उसी तरह देश की कुल आबादी के करीब अस्सी प्रतिशत हिन्दुओं की भावना का
राजग विरोधी दलों ने ध्यान नहीं रखा।
ऐसा उन लोगों ने अल्पसंख्यक वोट के लोभ में किया।उसका परिणाम तो भुगतना ही पड़ेगा।
आज राहुल गांधी नायनाड में किसके भरोस चुनाव लड़ रहे हैं ?
एस.डी.पी.आई.के भरोसे।
एस.डी.पी.आई.क्या है ?
यह पी.एफ.आई.का राजनीतिक विंग है।
पी.एफ.आई.क्या है ?
यह प्रतिबंधित संगठन है।
प्रतिबंधित क्यों है ?
क्योंकि उसके पास जो भूमिगत साहित्य मिला है,उसके अनुसार वह संगठन हथियारों के बल पर 2047 तक भारत को इस्लामिक देश बना देने के लिए दिन रात प्रयत्नशील है।
यह सब अब छिपी हुई बात नहीं है।
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देश की सीमाओं को सुरक्षित रखना,घुसपैठियों को बाहर ढकेलना,जेहादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करना हर राष्ट्रवादी देशवासी का कर्तव्य है।
दुनिया के अन्य सारे देशों के लोग अपने जरूरत पड़ने पर ऐसा ही करते रहे हैं।इन दिनों चीन भी कर रहा है।
पर वोट बैंक और दूसरे लोभ में भाजपा को छोड़कर इस देश के लगभग सभी अन्य दलों ने राष्ट्र की सुरक्षा का यह काम सिर्फ भाजपा के जिम्मे छोड़ दिया।
ऐेसे में इस देश के राष्ट्रवादी लोगों का समर्थन भाजपा व उसके सहयोगी दलों को चुनाव में नहीं मिलेगा तो क्या वोट बैंक के सौदागरों को मिलेगा ?
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आज सी ए ए -एन आर सी-यू सी सी का समर्थन राष्ट्रवाद है।
आज घुसपैठियों का विरोध राष्ट्रवाद है।
इस बार का लोक सभा चुनाव रिजल्ट बता देगा कि अधिकतर मतदाताओं ने किसे राष्ट्रवादी माना और किसे नहीं माना।
यदि चीन सरकार अपने देश के जेहादी उइगर मुसलमानों के खिलाफ अभूतपूर्व सख्ती बरत रही है तो वह अपनी राष्ट्रवादी
भूमिका ही तो निभा रही है।
पर,अपने देश के वैसे लोग अपने यहां ऐसे मामले में क्या कर रहे हैं जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का अक्सर गुणगान करते रहते हैं ?
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कुल मिलाकर स्थिति यह है कि मोदी को महाबली बनाने में खुद मोदी व भाजपा का जितना बड़ा हाथ है,उससे कई गुणा बड़ा योगदान वोट बैंक के सौदागरों की गतिविधियों व रणनीतियों का है।
जिस तरह मंडल आरक्षण के विरोधियों में से अनेक लोग बाद में अपने विरोध के निर्णय पर पछताए,उसी तरह कुछ खास वोट के लिए राष्ट्र के हितों का बलिदान करने वाले दल इस लोक सभा चुनाव का रिजल्ट आ जाने के बाद संभवतः पछताएंगे।
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19 अप्रैल 24
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