एक अखबार समूह का
आर्थिक प्रबंधन ऐसा भी था
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कई दशक पहले की बात है।
एक अखबार समूह के मालिक को लगा कि
यदि प्रेस की स्वतंत्रता बनाए रखनी है तो
अखबार के घाटे को पाटने के लिए आय का
वैकल्पिक स्रोत भी बनाना पड़ेगा।
क्योंकि सिर्फ सरकारी विज्ञापनों के भरोसे अखबार नहीं
निकाला जा सकता है।
कई बार कुछ स्वतंत्र अखबारों को कुछ सरकारें ‘‘अभियानी मीडिया’’कहने लगती हैं।
हालांकि अभियानियों की एक अलग प्रजाति आज भी है।
फिर उसे सरकारी विज्ञापन नाम मात्र का ही मिलता है।
या, नहीं मिलता रहा है।
वैसे अभियानी अखबारों को सरकार से उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए।
हां, वह आय का वैकल्पिक स्रोत तो खड़ा कर सकता है।
खैर, उसकी बातें जिनकी चर्चा मैंने शुरू की थी।
इसीलिए उस मालिक ने देश के कुछ बड़े नगरों में अपनी बहुमंजिली इमारतें बनवाईं।
इमारत के कुछ स्थानों में अखबार के प्रेस व आॅफिस वगैरह रहे।
बाकी को किराए पर उठा दिया ।
किराए के पैसों से अखबार का घाटा पूरा होने लगा।
हालांकि अखबार में आज जैसी शाहखर्ची नहीं थी।
मालिक गोयनका अपनी फियट के खुद ही ड्रायवर थे।
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18 अप्रैल 24
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