संवैधानिक प्रावधानों की रक्षा के लिए
संविधान में संशोधन !
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संविधान के अनुच्छेद-356 की प्रासंगिकता बनाये रखने के लिए यह जरूरी है कि राष्ट्रपति शासन की संपुष्टि राज्य सभा से भी कराने की बाध्यता न रहे
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सुरेंद्र किशोर
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इस देश के किसी प्रदेश में यदि संवैधानिक तंत्र विफल हो जाए ,तो क्या होगा ?
यदि केंद्रीय मंत्रिमंडल को संसद के दोनों सदनों में बहुमत हासिल नहीं हैं तो केंद्र सरकार
संबंधित राज्य में चाहते हुए भी राष्ट्रपति शासन लागू नहीं कर सकती।
यानी, संविधान के अनुच्छेद-356 की मौजूदगी के बावजूद एक बड़े भूभाग में संविधान निरर्थक साबित होगा।
यानी वहां अराजकता छा जाएगी।
अपने देश के कुछ राज्यों में ऐसी नौबत आने वाली है।
एक हद तक आ भी चुकी है।मौजूदा मोदी सरकार को राज्य सभा में बहुमत हासिल नहीं है।
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संभवतः संविधान निर्माताओं ने इस बात की कल्पना ही नहीं की थी कि इस देश में ऐसा समय भी आएगा जब किसी दल को लोक सभा में तो बहुमत रहेगा ,उसकी सरकार रहेगी,पर राज्य सभा में वह अल्पमत में रहेगा।
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सन 1999 में केंद्र सरकार ने बिहार में राष्ट्रपति लागू कर दिया।पर, राज्य सभा से उसका अनुमोदन नहीं हुआ तो राज्य मंत्रिमंडल पुनर्जीवित हो उठा।
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निदान क्या है ?
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राष्ट्रहित के महत्वपूर्ण मामले को लेकर कोई निर्णय हो तो उसका अनुमोदन राज्य सभा से प्राप्त करने की बाध्यता समाप्त कर दी जानी चाहिए।
इस देश के जिन राज्यों में विधान परिषदें नहीं हैं ,वहां भी काम तो चल ही रहा है।
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इसके लिए संविधान में संशोधन एक न एक दिन करना ही पड़ेगा ताकि संविधान के अनुच्छेद-356 को निरर्थक न होने दिया जाये।
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16 अप्रैल 24
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