मंगलवार, 30 अप्रैल 2024

 शालीन पत्रकार मोहन बाबू को श्रद्धांजलि

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(1924--2007)

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सुरेंद्र किशोर

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पी.टी.आई.,पटना के ब्यूरो प्रमुख रहे के. मोहन उर्फ मोहन बाबू उन थोड़े से पत्रकारों में थे जिनके पास बैठकर मैंनें पत्रकारिता का क ख ग घ सीखा।

   ऐसे अन्य वरिष्ठ पत्रकारों में यू.एन.आई.,पटना के ब्यूरो प्रमुख डी.एन.झा,दैनिक ‘आज’ के पारसनाथ सिंह  और पी.टी.आई.के ही सुविख्यात ब्यूरो चीफ एस.के. घोष उर्फ मंटू दा शामिल थे।आर्यावर्त के वरिष्ठ पत्रकार रामजी मिश्र मनोहर 

जब-जब पारस बाबू से मिलने ‘आज’ आॅफिस आते थे तो हमें कुछ न कुछ सिखा जाते थे।

मनोहर जी ने एक बार मुझसे कहा था कि एक ही आइटम में आप बार -बार ‘उन्होंने कहा’, ‘उन्होंने कहा’ मत लिखिए।मुझे अच्छी सीख मिल गयी।

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जिम्मेदार व अनुभवी पत्रकारों के पास बैठकर कुछ सीखने का प्रयास मैंने तभी शुरू कर दिया था जब मैं नई दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक ‘प्रतिपक्ष’ का बिहार संवाददाता था।

सन 1977 में जब मैं मुख्य धारा की पत्रकारिता में आया, तब तो ऐसे बड़े पत्रकारों से मिलना-जुलना बढ़ गया।

मैं हमेशा उनसे आदर के साथ बातें करता था।इसलिए भी वे मुझे पसंद करते थे।

  न्यूज एजेंसियों के दफ्तरों में मैं इसलिए बैठता था क्योंकि एजेंसियां ठोक बजा कर खबरें देती हैं।

अफवाहों के आधार नहीं,सुनी-सुनाई बातें और कोई अभियानी पत्रकारिता नहीं।यानी वहां से पेशेवर पत्रकारिता सीखने का अवसर मिलता है।

मोहन बाबू कम बोलने वाले एक गंभीर पत्रकार थे।किसी नेता या दल से उनका कोई लगाव नहीं देखा।पेशेवर पत्रकार थे।

पत्रकारिता को लेकर पेशेवर शब्द सम्मानित शब्द माना जाता है।

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एस.के.घोष को मुख्य मंत्री अब्दुल गफूर ने बिहार विधान परिषद का सदस्य मनोनीत कराया था,फिर भी मंटू दा मुझे बताते थे कि प्रतिपक्ष के लिए तुम्हें बिहार से क्या-क्या लिखना चाहिए।

प्रतिपक्ष के प्रधान संपादक जार्ज फर्नांडिस को मंटू दा पसंद करते थे।  

 वे कहते थे कि यह खबर जार्ज की पत्रिका ही छाप सकती है।

  वैसे सपा नेता जार्ज भले उसके प्रधान संपादक थे,पर प्रतिपक्ष जार्ज की पार्टी का मुखपत्र

नहीं था।

उसे ब्लिट्ज और दिनमान का मिश्रण कहा जाता था।

प्रतिपक्ष में कवि कमलेश शुक्ल,गिरधर राठी,मंगलेश डबराल,एन.के. सिंह जैसे पत्रकार काम करते थे।

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मोहन बाबू के परिजन ने उनकी जन्म सदी के अवसर पर 

उन्हें सार्वजनिक रूप से याद कर उनके गरिमामय व्यक्तित्व को सच्ची श्रद्धांजलि दी है।

उनकी याद के साथ मुझे दो बातें याद आती हैं।

वरीय पत्रकारों को नये पत्रकारों से साथ स्नेहमय व्यवहार करना चाहिए यदि वह उनसे कुछ सीखने की कोशिश करता हो।

साथ ही, नये पत्रकारों को भी चाहिए कि वे अच्छी मंशा वाले वरीय पत्रकारों के पास बैठकर शिष्यवत कुछ सीख लें।

आज की पत्रकारिता में इन दोनों बातों का अब अभाव हो चला है।

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30 अप्रैल 24 


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