आम चुनाव भीषण गर्मी के बदले
अपेक्षाकृत ठंडे दिनों में ही होने चाहिए
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50 और 60 के दशकों के हमारे नेता
कम से कम इस मामले में होशियार थे
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सुरेंद्र किशोर
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इस देश में प्रथम आम चुनाव के लिए 25 अक्तूबर, 1951 से 21 फरवरी, 1952 तक विभिन्न तारीखों पर वोट डाले गये थे।
कल्पना कीजिए तब कितना सुहाना मौसम रहा होगा !
हमारे तब के नेताओं ने भीषण गर्मी में चुनाव नहीं कराए।
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दूसरा आम चुनाव भी 24 फरवरी, 1957 से 14 मार्च, 1957 तक हुआ।
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यानी, तब भी भीषण गर्मी का समय नहीं था।
पर आज भीषणत्तम गर्मी में चुनाव हो रहे हैं।
यह बाद की पीढ़ी के नेताओं की अदूरदर्शिता के कारण हो रहा है।
इस बार बेचारे कई वोटर मतदान नंहीं कर पा रहे हैं।
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पहली गलती प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने की।
उन्होंने लोक सभा चुनाव 1972 की जगह 1971 में ही करा दिए।
यानी समय से पहले ही करा दिए।
इससे लोक सभा और विधान सभा चुनाव अलग -अलग समय पर होने लगे।
1967 तक एक ही साथ हुए थे।
1967 तक के हमारे नेता कम से कम इस मामले में दूरदर्शी थे।
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दूसरी गलती प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सन 2004 में की।
उन्होंने लोक सभा चुनाव की तारीख बदल
दी।
सन 1999 में लोक सभा चुनाव 5 सितंबर से 10 अक्तूबर तक हुए थे।
2004 में भी कायदे से सितंबर-अक्तूबर में चुनाव होने थे।
पर प्रधान मंत्री वाजपेयी ने फील गुड और इंडिया साइनिंग के नशे में आकर कई महीने पहले ही चुनाव करा दिए।
2004 में भीषण गर्मी के दिनों में चुनाव हुए थे।अब हर बार उसी समय लोस चुनाव हो रहे हैं।
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अगली सरकार किसी न किसी उपाय से गर्मी के महीनों के बदले पहले की ही तरह ठंडे मौसम में चुनाव कराने का प्रबंध करे।
अधिक उम्मीद है कि
मोदी जी ही फिर प्रधान मंत्री बनेंगे।
मोदी है तो यह काम भी मुमकिन है।
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मोदी ने अपने शासन काल में अब तक कई गलतियां सुधारी हैं।
मोदी जी,दो और गलतियों को सबसे पहले सुधारिए, भले इसके लिए संविधान में संशोधन ही क्यों न करना पड़े।
यानी दोनों चुनाव यानी लोस-विधान सभा चुनाव फिर से एक साथ कराइए।साथ ही 1957 में चुनाव की जो तारीखें थीं,उन्हीं तारीखों पर फिर से चुनाव कराइए।
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27 अप्रैल 24
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