क्रांतिकारी योगेंद्र शुक्ल के शिष्य मुनीश्वर बाबू में
सत्ता में आने के बाद भी कोई भटकाव नहीं आया
--सुरेंद्र किशोर--
मुनीश्वर प्रसाद सिंह पर एक लेख अभी -अभी मैंने अपने फेसबुक वाॅल
पर शेयर किया है।
लेख बहुत अच्छा है।
सिर्फ एक तथ्यात्मक भूल है।
मुनीश्वर बाबू 1962 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से विधायक बने थे न कि संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से।
खैर, पिछले पांच दशकों में मैंने अनेक नए-पुराने हथियारबंद
क्रांतिकारियों के बारे में जाना-सुना-पढ़ा है।
उनमें से अनेक लोग मंत्री, विधायक या सांसद बन जाने के बाद बदल गए।
ईमान डोल गया।
पर दिवंगत मुनीश्वर बाबू अलग ढंग के थे।उन थोड़े लोगों में थे जो कभी नहीं बदले।
उनके सिंचाई मंत्री के कार्यकाल के दो उदाहरण यहां प्रस्तुत हैं।
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1.-दैनिक ‘आज’ का प्रकाशन पटना से शुरू हो रहा था।
दैनिक ‘आज’ ने सिंचाई व बिजली मंत्री मुनीश्वर बाबू से संपर्क किया।
मशीन के लिए बिजली का कनेक्शन लेना है।
ऐसे कनेक्शन के लिए लटकाना -शुकराना-नजराना आदि की परपंरा रही है।
किंतु ‘आज’ का यह काम मुनीश्वर बाबू के कारण रिकाॅर्ड समय में बिना किसी नजराना के हो गया।
मैं उन दिनों ‘आज’ में ही था।
उस पर ‘आज’ के प्रबंधक निदेशक ने कहा था कि किसी अन्य संस्करण में यह काम इतनी जल्दी और इतनी आसानी से कहीं और नहीं हुआ था।
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2.-‘जनता परिवार’ की बहुत बड़ी हस्ती ने एक विवादास्पद ठेकेदार के पक्ष में मुख्य मंत्री कर्पूरी ठाकुर को लिखा था।
उस ठेकेदार पर बिहार सरकार के करोड़ों रुपए बाकी थे।
साठ के दशक की बिहार सरकार से भारी एडवांस लेकर उसने काम पूरा नहीं किया था।
बिहार सरकार कह रही थी कि सरकार का ही उस पर छह करोड़ रुपए बाकी है।
मामला कोर्ट में था।
ठेकेदार टिब्यूनल का गठन चाहता था।
ट्रिब्यूनल में उसका काम ‘आसान’ हो जाता।
उस बहुत बड़ी हस्ती की बात मान कर कर्पूरी ठाकुर ने उस मामले को ट्रिब्यूनल में दे देने का आदेश दे दिया।
क्योंकि कर्पूरी जी उस हस्ती की बात टाल ही नहीं सकते थे।
खैर, तत्कालीन सिंचाई मंत्री सच्चिदानंद सिंह भी कर्पूरी जी का आदेश टाल नहीं सकते थे।
ट्रिब्यूनल में दे देने का आदेश हो गया।
इस बीच सरकार बदल गई ।
राम सुंदर दास मुख्य मंत्री बने और मुनीश्वर बाबू सिंचाई मंत्री।
मुनीश्वर बाबू ने जब वह फाइल देखी तो वे ठेकेदार का स्वार्थ समझ गए।
उन्होंने आदेश दिया कि यह मामला किसी भी हालत में ट्रिब्यूनल में नहीं जाएगा।
जबकि, मुनीश्वर बाबू भी जनता परिवार की उस हस्ती का कम आदर नहीं करते थे।
पर उन्होंने उस हस्ती के बदले राज्यहित को देखा।
उसके बाद जगन्नाथ मिश्र मुख्य मंत्री बन गए।
उन्होंने क्या किया ,आप जरा अंदाज लगाइए !
वही किया जिससे उस ठेकेदार को नाजायज तरीके से छह करोड़ रुपए मिल जाए।
मिल भी गए जिसका वह हकदार नहीं था।
उस मामले की पूरी फाइल की फोटोकाॅपी अब भी मेरे संदर्भालय में है।
मैंने उस पर जनसत्ता में विस्तार से लिखा था।
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अंत में
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मुनीश्वर बाबू बाद के दिनों में विधायक नहीं रहे तो इस कारण कि वे बाहुबलियों के खिलाफ अपनी जातीय बाहुबली जमात तैयार करने के पक्ष में कत्तई नहीं थे।
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