मंगलवार, 11 अगस्त 2020

 रवीन्द्रनाथ टैगोर के दामाद ने भी दहेज मांगा था।

न देने पर शादी न करने की धमकी भी दे दी थी।

मुजफ्फरपुर में हुई थी उनकी पुत्री की शादी

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इस संबंध में मेरी एक रपट 15 नवंबर, 1982 के 

नवभारत टाइम्स (नई दिल्ली ) में छपी थी।

राजेंद्र माथुर तब नभाटा के संपादक थे।

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  नई पीढ़ी के पाठकों के लिए उसे यहां प्रस्तुत है।

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रविबाबू के दामाद ने भी दहेज मांगा था

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विश्वकवि स्वर्गीय रवींद्रनाथ ठाकुर को दहेज प्रथा के कारण किस तरह मानसिक क्लेश झेलना पड़ा था,उसका प्रमाण

हाल ही में प्रकाश में आया है।

   लेखक और शोधकत्र्ता श्री सुबल गांगुली ने अपने शोध कार्य के दौरान रवींद्रनाथ टैगोर के बारे में जो कुछ तथ्य एकत्र किये हैं, उनमें 1 जून, 1901 को भावी दामाद के नाम विश्व कवि का वह टेलीग्राम भी है,जिससे उनकी चिन्ता और व्यग्रता का पता चलता है।

  रवि बाबू की सबसे बड़ी लड़की माधुरी लता की शादी 1901 में मुजफ्फरपुर ( बिहार ) में हुई थी।

किन्तु उससे पूर्व भावी दामाद ने यह कह कर शादी करने से इनकार कर दिया था कि वे बीस हजार रुपए से कम दहेज न लेंगे।

श्री गांगुली के अनुसार दस हजार रुपए में शादी तय हुई थी।

  16 जून 1901 को वह शादी हुई थी।

(अंततः दस हजार रुपए ही देने पड़े थे।)

स्व. टैगोर अपनी लड़की को ससुराल पहुंचाने के क्रम में जुलाइर्, 1901 के प्रथम सप्ताह में मुजफ्फरपुर पहुंचे।

  श्री गांगुली ने अपने शोध कार्य के दौरान यह भी पता लगाया है कि मुजफ्फरपुर में विश्व कवि का सार्वजनिक अभिनंदन किया गया था।

उनके जीवन का यह पहला सार्वजनिक अभिनंदन था।

 मुजफ्फरपुर के आठ गणमान्य व्यक्तियों की ओर से उन्हें 

मुखर्जी सेमिनरी के एक कक्ष में सम्मान पत्र समर्पित किया गया था।

 उस सम्मान पत्र से यह भी परिलक्षित होता है कि महान मैथिली कवि विद्यापति उस समय तक अल्पज्ञात कवि थे।

 सम्मान पत्र में लिखा गया है कि ‘यद्यपि विद्यापति इसी मिट्टी के बंगला साहित्य के कवि थे तथापि इस राज्य के लोग उन्हें या उनकी कविताओं को नहीं जानते थे।’

कवि टैगोर 18 जुलाई, 1901 को कलकत्ता वापस चले गये थे।

 शोधकत्र्ता के अनुसार कवि टैगोर पुनः मई, 1904 में मुजफ्फर पुर आये थे।

उन्होंने यहां काफी समय व्यतीत किया।

उन्होंने ‘नौका डूबी’ नामक उपन्यास की रचना मुजफ्फरपुर में ही की थी।

मुजफ्फरपुर के जिस मकान में रहते थे,उसे एक व्यापारी ने खरीद लिया है।

स्वर्गीय टैगोर की स्मृति में बिहार के प्रमण्डलीय मुख्यालय मुजफ्फरपुर में सड़क का नामकरण भी किया गया है।

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10 अगस्त 20







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