मंगलवार, 18 अगस्त 2020

सुप्रीम कोर्ट की साख-प्रतिष्ठा की रक्षा लोकतंत्र के लिए अत्यंत जरूरी

यदि अवमानना के कसूरवार को उसके कसूर के अनुपात में तौलकर भरपूर सजा नहीं दी गई 

तो सुप्रीम कोर्ट की अवमानना करने वालों की इस देश में बाढ़ आ जाएगी। ऐसे कई अन्य लोग भी इस देश में सक्रिय हैं जो संस्थाओं की साख को नष्ट करने की कोशिश में सदा लगे रहते हैं।


कुछ देसी-विदेशी शक्तियों की तो यही कार्यनीति रही है कि यदि इस ‘‘धर्मशालानुमा’’ देश को बाहर से नष्ट नहीं कर सको तो इसे भीतर से नष्ट करो।  


यदि ताजा मामले में भरपूर न्याय नहीं हुआ तो उससे सबसे बड़ी अदालत के बारे में आम लोगों में गलत संदेश जाएगा। जैसा भी हो, आज सुप्रीम कोर्ट की भूमिका लोकतंत्र के अन्य स्तम्भों से बेहतर है। इसीलिए आज लोगों की आस्था का आखिरी स्थल भी वही है।


हाल में सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह राम मंदिर के मामले को सुलझाया है, उससे अनेक लोगों की, कहिए अधिकतर लोगों की आस्था और भी बढ़ी है। कल्पना कीजिए कि सदियों से चले आ रहे अयोध्या राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद अगली कुछ और सदियों तक चलता रहता तो उस कारण कितने लोगों की जानें जातीं ?


मीर बाकी द्वारा राम मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाए जाने के बाद हजारों लोगों की जानें तो पहले ही जा चुकी हैं। क्या आप नहीं मानेंगे कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद अब आगे वैसी हिंसा की आशंका नहीं है ? कुछ जेहादी मानसिकता वालों को छोड़कर इस देश के आम मुसलमानों ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को मन से या बेमन से स्वीकार कर ही लिया है। इसकी सराहना होनी चाहिए।

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--सुरेंद्र किशोर--18 अगस्त 2020

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