खेल कौशल के बाद जिस दूसरे सर्वाधिक महत्वपूर्ण गुण ने एम.एस. धोनी को शिखर पर पहुंचाया, वह है उनके स्वभाव की शीतलता। यानी ‘मिस्टर कूल।’ उससे प्रबंधनकला में बेहतरी आती है।
तीसरी महत्वपूर्ण बात है, अपने सहकर्मियों के साथ न्यायपूर्ण व शालीन व्यवहार। एन.आर. नारायण मूर्ति ने आज के ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में लिखा है कि काॅरपोरेट इंडिया धोनी के मैच देखकर उनके नेतृत्व कौशल के बारे में बहुत कुछ सीख सकता है।
मैं एक राजनीतिक कार्यकर्ता की हैसियत से कर्पूरी ठाकुर का कभी निजी सचिव था। वैसे तो मैं उन्हें सन 1967 से ही जानता था, किंतु 1972-73 में करीब डेढ़ साल तक करीब रहने का मौका मिला। तब वे बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता थे। मेरा मानना है कि कर्पूरी जी की सफलता में उनकी विनम्रता का करीब 25 प्रतिशत योगदान था।
धोनी भी कर्पूरी जी जैसी मामूली पृष्ठभूमि से ही ऊपर उठे थे। व्यक्तिगत व्यवहार में कर्पूरी जी अपने पुत्र और नौकर को छोड़कर कभी किसी को ‘तुम’ नहीं कहते थे। सबको ‘आप’। कभी नाहक ऐसी बात नहीं करते थे जिससे सामने वाले को बुरा लगे।
यदि सामने के किसी व्यक्ति को आप बात -बात में अपने से छोटा साबित करने की कोशिश करेंगे तो फिर वह आपसे कभी मिलना भी नहीं चाहेगा। इससे उलट करके जरा देखिए! लोग आपसे बातचीत के लिए लालायित रहेंगे।
बाकी बातें तो बाद में फाॅलो करती हैं।
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नारायण मूर्ति ने तो कारपोरेट भारत के बारे में कहा है। मैं तो सामान्य जनजीवन के बारे में कह रहा हूं। हम यदि व्यक्तिगत व्यवहार-बातचीत में शालीनता बरतें तो उसका लाभ ही लाभ है। बढ़ते रोड रेज वाले इस देश में ‘मिस्टर कूल’ की संख्या बढ़ाने की सख्त जरूरत है।
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--सुरेंद्र किशोर--17 अगस्त 2020
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