पूर्व राज्य सभा सांसद अमर सिंह नहीं रहे
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‘‘ अमर सिंह नहीं होते तो मैं मुम्बई में
टैक्सी चला रहा होता-अमिताभ बच्चन’’
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अमर सिंह नहीं रहे।
एक जमाने में अनिल अम्बानी, अमर सिंह और अमिताभ बच्चन की गहरी दोस्ती थी।
समय के साथ अलग हो गए।
बीच में अमर व बच्चन के बीच आई कटुता भीषण थी।
अमर ने बच्चन के लिए कटु वचन बोले थे।
अमर ने उस पर बाद में पश्चाताप भी किया था।
इस साल बच्चन ने अमर सिंह के पिता की बरखी पर उन्हें शोक संदेश भेजा।
फिर भी पहले वाली आपसी मधुरता न लौट पाई।
बहुत पहले यह खबर आई थी कि अमिताभ बच्चन जब भीषण आर्थिक संकट में थे तो अमर सिंह उनके बहुत काम आए थे।
पर जिस तरह दुश्मनी स्थायी नहीं होती ,उसी तरह दोस्ती भी।
अमिताभ बच्चन की चर्चा होने पर द संडे एक्सप्रेस से बातचीत में 2016 में अमर सिंह ने कहा था कि जो मेरे साथ नहीं है,उसे मैं भूल जाता हूं।
जो समय बीत जाता है,वह वापस नहीं आता।
मैंने अपने जीवन के 20 साल बच्चन परिवार को दिए।
अपनी बेटियों से अधिक उनके बच्चांे का ध्यान रखा।
जब उनका जहाज डूब रहा था, घर नीलाम हो रहा था ,वैसे गाढ़े वक्त में मैंने उनका साथ दिया था।
अमिताभ ने स्वीकारा भी था कि
‘‘यदि अमर सिंह नहीं होते तो मैं मुम्बई में टैक्सी चला रहा होता।’’
( द संडे एक्सप्रेस -9 अक्तूबर 2016 )
खैर, अमिताभ-अमर की दोस्ती और अलगाव के बारे में हमारे पास फिलहाल अमिताभ का पक्ष नहीं है।
इसलिए अधिक कुछ नहीं कहना।
अमर कथा मैंने इसलिए लिखी कि लोग जानें कि दोस्ती को
स्थायी नहीं मान लेना चाहिए,यदि उसे ठीक से निभाने आपको नहीं आता।
किसी ने ठीक ही कहा है कि
‘‘दोस्ती की डोर में प्यार का मांझा लगातार लगाते रहना होता है।
तभी उसमें स्थायित्व आता है।’’
पता नहीं, मांझा किसने कम लगाया ?
अमिताभ ने या
अमर ने ?
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--सुरेंद्र किशोर--1 अगस्त 20
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‘‘ अमर सिंह नहीं होते तो मैं मुम्बई में
टैक्सी चला रहा होता-अमिताभ बच्चन’’
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अमर सिंह नहीं रहे।
एक जमाने में अनिल अम्बानी, अमर सिंह और अमिताभ बच्चन की गहरी दोस्ती थी।
समय के साथ अलग हो गए।
बीच में अमर व बच्चन के बीच आई कटुता भीषण थी।
अमर ने बच्चन के लिए कटु वचन बोले थे।
अमर ने उस पर बाद में पश्चाताप भी किया था।
इस साल बच्चन ने अमर सिंह के पिता की बरखी पर उन्हें शोक संदेश भेजा।
फिर भी पहले वाली आपसी मधुरता न लौट पाई।
बहुत पहले यह खबर आई थी कि अमिताभ बच्चन जब भीषण आर्थिक संकट में थे तो अमर सिंह उनके बहुत काम आए थे।
पर जिस तरह दुश्मनी स्थायी नहीं होती ,उसी तरह दोस्ती भी।
अमिताभ बच्चन की चर्चा होने पर द संडे एक्सप्रेस से बातचीत में 2016 में अमर सिंह ने कहा था कि जो मेरे साथ नहीं है,उसे मैं भूल जाता हूं।
जो समय बीत जाता है,वह वापस नहीं आता।
मैंने अपने जीवन के 20 साल बच्चन परिवार को दिए।
अपनी बेटियों से अधिक उनके बच्चांे का ध्यान रखा।
जब उनका जहाज डूब रहा था, घर नीलाम हो रहा था ,वैसे गाढ़े वक्त में मैंने उनका साथ दिया था।
अमिताभ ने स्वीकारा भी था कि
‘‘यदि अमर सिंह नहीं होते तो मैं मुम्बई में टैक्सी चला रहा होता।’’
( द संडे एक्सप्रेस -9 अक्तूबर 2016 )
खैर, अमिताभ-अमर की दोस्ती और अलगाव के बारे में हमारे पास फिलहाल अमिताभ का पक्ष नहीं है।
इसलिए अधिक कुछ नहीं कहना।
अमर कथा मैंने इसलिए लिखी कि लोग जानें कि दोस्ती को
स्थायी नहीं मान लेना चाहिए,यदि उसे ठीक से निभाने आपको नहीं आता।
किसी ने ठीक ही कहा है कि
‘‘दोस्ती की डोर में प्यार का मांझा लगातार लगाते रहना होता है।
तभी उसमें स्थायित्व आता है।’’
पता नहीं, मांझा किसने कम लगाया ?
अमिताभ ने या
अमर ने ?
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--सुरेंद्र किशोर--1 अगस्त 20
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