सोमवार, 3 अगस्त 2020

बढ़ते आकर्षण के बीच जैविक खेती को अधिक सरकारी मदद की दरकार--सुरेंद्र किशोर



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पढ़े-लिखे फिल्म अभिनेता दिवंगत सुशांत सिंह राजपूत जैविक खेती करने के लिए केरल जाना चाहते थे।
पर, उन्हें नहीं जाने दिया गया था।
  इससे इस बात का भी पता चलता है कि इस देश के जागरूक लोग जैविक खेती की ओर तेजी से आकर्षित हो रहे हैं।वे रासायनिक खाद के खतरनाक असर को जान चुके हैं। 
रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं से बढ़ते  कुप्रभाव के कारण जैविक खेती मजबूरी बनती जा रही है।
हाल की खबर के अनुसार पशुओं के शरीर में भी कीटनाशक दवाओं का कुप्रभाव देखा जा रहा है।
नतीजतन दूध में भी उसका अंश आ रहा है।
हाल में बंगलुरू से यह खबर आई कि एक व्यक्ति ने शुद्ध दूध प्राप्त करने के लिए अपने मकान की छठी मंजिल पर गाय पाल रखा था।
पुलिस को पता चला तो गाय जब्त की गई।
याद रहे कि बंगलुरू के उस इलाके में गोपालन  वर्जित है।
इससे शुद्ध दूध की भारी कमी की समस्या का भी पता चलता है।
याद रहे कि रासायनिक खाद व कीटनाशक दवाओं से न सिर्फ कैंसर का प्रकोप बढ़ा है बल्कि खेत भी खराब हो रहे हैं।
देश के कई हिस्सों में खेत खराब होने के साथ -साथ भूजल भी जहरीला और कैंसर कारक हो रहा है। 
   केंद्र व राज्य सरकारों का जैविक खेती की ओर  पहले की अपेक्षा इधर अधिक ध्यान गया है।
इस दिशा में कई महत्वपूर्ण काम भी हुए हैं।किंतु जरूरत के अनुपात में वे काफी कम हैं।
निजी प्रयास इस दिशा में महत्वपूर्ण साबित हो रहे है।
कोरोना महामारी के कारण महा नगरों से वैसे कई लोगों ने गांवों की ओर रुख किया है जिनके पास अपनी पुश्तैनी जमीन उपलब्ध हंै।
उनमें से अनेक लोग जैविक व औषधीय खेती की ओर उन्मुख हुए हैं।
जैविक -औषधीय खेती में सामान्य खेती की अपेक्षा अधिक मुनाफा  भी है।
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   जैविक सामग्री  आॅनलाइन उपलब्ध
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पटना व आसपास के इलाकों में जैविक खाद्य व भोज्य पदार्थ अब आॅनलाइन भी उपलब्ध हैं।
मैंने हाल में चने का सत्तू मंगवाया ।
आटा-चावल मंगवाने वाला हूं।
 अन्य कई सामग्री भी आॅनलाइन उपलब्ध हैं।
स्वास्थ्य रक्षा के लिए यह जरूरी है।
हालांकि जैविक सामग्री महंगी है।
चने का सत्तू  बाजार में 160 रुपए किलो बिक रहा है।पर जैविक सत्तू का दाम करीब 300 रुपए प्रति किलो पड़ रहा है।
ऐसे में जैविक खेती को सरकारी सब्सिडी की जरूरत पड़ेगी,यदि उसका अधिक प्रचार-प्रसार करना है।
जैविक खाद्य व भोज्य पदार्थ के स्वाद हमें गांव के दिनों की याद दिला देते हैं।
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  बिहार की राजनीति के ओवैसी घटक
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वैसे तो बिहार विधान सभा का अगला चुनाव मुख्यतः दो गठबंधनों के बीच ही लड़ा जाएगा।
अधिकतर सीटों पर सीधा मुकाबला होगा।ऐसा पहले भी होता रहा है।
  किंतु इस बार कुल 243 में से  कुछ सीटों पर ओवैसी की पार्टी इस मुकाबले को त्रिकोणीय बना सकती है।
गत साल एक त्रिकोणीय मुकाबले में किशनगंज विधान सभा क्षेत्र के चुनाव में ए.आईएम.आई.एम.को विजय मिल गई ।
  मुस्लिम बहुल किशनगंज लोक सभा क्षेत्र में 2019 में  कांग्रेस की जीत हो गई थी।
पर वहां भी असद्द्दीन ओवैसी की पार्टी के उम्मीदवार को  2 लाख 95 हजार मत मिल गए।
   इससे ओवैसी का मनोबल बढ़ा है।
ओवैसी ने घोषणा कर रखी है कि हमारी पार्टी बिहार विधान सभा के 32 क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार खड़ा कराएगी।
जाहिर है कि वे वैसे क्षेत्र होंगे जहां अन्य क्षेत्रों के मुकाबले अपेक्षाकृत अधिक अल्पसंख्यक आबादी है।
  राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन के भीतर के मतभेद भले इस बीच निपट जाएं,किंतु ओवैसी की पार्टी सीमित क्षेत्रों मेें ही सही, महागंठबंधन का खेल बिगाड़ सकती है।
वैसे हैदराबाद में जन्मी इस पार्टी को  बिहार में कोई महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल होने की उम्मीद कम ही है।
  पर, सवाल यह है कि क्या ओवैसी महागठबंधन से तालमेल करेंगे ?
लगता तो नहीं है।
क्योंकि उनकी महत्वाकांक्षा एन.डी.ए.को हराने की अपेक्षा अपनी खुद की सीटें बढ़ाने की है।
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 भारी वाहनों से सड़कों का नुकसान   
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भारी वाहनों के कमजोर सड़कों और पुलों से गुजरने का क्या नतीजा होता है ?
नतीजा सब जानते हैं।
सड़कें और पुल समय से पहले टूट जाते हैं।
उनके पुनर्निर्माण पर भारी खर्च आता है।
संभवतः इस क्षति का राष्ट्रीय स्तर पर कोई आकलन नहीं हुआ है।
 यदि आकलन हो तो चैंकाने वाले आंकड़े मिल सकते हैं।
  यदि क्षति की राशि में से एक तिहाई पैसे भी निजी गार्ड पर खर्च किया जाए तो सड़कों-पुलों की रक्षा बेहतर तरीके से हो सकती है।
 अब यह सर्वज्ञात तथ्य है कि अधिकांश पुलिस फोर्स की बड़े निजी वाहनों से मिलीभगत रहती है।
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  और अंत में
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 अयोध्या में अगले माह राम मंदिर का शिलान्यास हो जाएगा।
लोगबाग उम्मीद कर रहे हैं कि इस मंदिर का प्रबंधन देर-सवेर वहां एक ऐसे मेडिकल काॅलेज की स्थापना करेगा जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देगा।
कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि में योग्य व प्रतिबद्ध डाक्टरों की भारी कमी देश में भी महसूस की गई है।
वह कमी दूर करने में क्यों न प्रस्तावित राम मंदिर
का भी योगदान हो !
दक्षिण भारत में कई मेडिकल काॅलेज वहां मंदिरों से संबद्ध रहे हैं।   
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31 जुलाई 20

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