1975 के आपातकाल को असंवैधानिक घोषित करने की सुप्रीम कोर्ट से गुहार -सुरेंद्र किशोर
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क्या सुप्रीम कोर्ट आपातकाल यानी इमरजेंसी (1975-77)की घोषणा को असंवैधानिक घोषित कर सकता है ?
क्या ऐसा वह करेगा ?
यह तो उसके निर्णय से ही पता चलेगा।
किंतु इमरजेंसी में हुई एक अभूतपूर्व ज्यादती को लेकर सन 2011 का सुप्रीम कोर्ट का अपना ही निर्णय ताजा गठित खंडपीठ के सामने होगा।
2011 के जजमेंट की पृष्ठभूमि में
ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि वह उसे असंवैधानिक घोषित कर दे।
इस संबंध में 94 साल की वीरा सरीन ने हाल में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
उन्होंने आपातकाल में बहुत अत्याचार व दुख झेले।
वह चाहती हैं कि इमर्जेंसी को असंवैधानिक घोषित किया जाए।
उनकी याचिका पर विचार करने के लिए एस.के. कौल की अध्यक्षता में गठित बेंच राजी हो गया है।
अदालत ने इस पर केंद्र सरकार की राय मांगी है।
याद रहे कि आपातकाल में एटार्नी जनरल नीरेन डे ने सुप्रीम कोर्ट में कह साफ-साफ कह दिया था कि ‘‘यदि स्टेट आज किसी की जान भी ले ले तो भी उसके खिलाफ कोई व्यक्ति कोर्ट की शरण नहीं ले सकता।क्योंकि ऐसे मामलों को सुनने के कोर्ट के अधिकार को स्थगित कर दिया गया है।’’
सुप्रीम कोर्ट ने तब नीरेन डे की बात पर अपनी मुहर लगा दी थी।
पर कई साल बाद यानी सन 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि इस कोर्ट का तब का फैसला गलत था।
देश में आपातकाल के दौरान इस कोर्ट से भी नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ था।
आपातकाल के करीब 35 साल बाद सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूत्र्ति आफताब आलम और जस्टिस अशोक कुमार गांगुली के बेंच ने उस समय की अदालती भूल को स्वीकार किया।
अब सवाल है कि जो आपातकाल आम लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन करने वाला था,उसे ही तो असंवैधानिक घोषित करने की मांग की जा रही है।
यदि असंवैधानिक घोषित हो गया तो पीड़ितों व उनके परिजन को मुआवजा मिलनी चाहिए।
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बिहार ने सर्वाधिक झेला
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बिहार के सर्वाधिक लोगों ने आपातकाल में यातनाएं झेली थीं।
हालांकि पूरे देश को जेल में परिणत कर दिया गया था।
जयप्रकाश नारायण के साथ अंग्रेज राज की अपेक्षा अधिक क्रूूरता के साथ व्यवहार इमरजेंसी में किया गया।
तब के छात्र नेता नीतीश कुमार को बंदूक दिखाकर गिरफ्तार किया गया था।
इन पंक्तियों के लेखक को मेघालय में जाकर भूमिगत होना पड़ा था।
बिहार सरकार ने तो जेपी सेनानियों के लिए पेंशन का प्रावधान किया है।
पर कुछ अन्य कांग्रेस शासित राज्य सरकारों ने पहले से जारी ऐसी पेंशन को बंद कर दिया।यदि बिहार में इस बार गैर राजग सरकार बन जाती तो यहां भी पेंशन बंद की जा सकती थी।
क्योंकि कांग्रेस ने हाल में उद्धव ठाकरे सरकार से भी बंद करवा दी।
मध्य प्रदेश व राजस्थान में हाल में जब कांग्रेस सरकारें बनीं तो वहां भी बंद करवा दिया।पता नहीं,शिवराज सिंह सरकार ने उसे फिर से चालू करवाया या नहीं।
क्या राज्यों में जब- जब सरकारें बदलेंगी तब- तब पेंशन बंद हो जाएगी ?
इसलिए जरूरी है कि पेंशन केंद्र सरकार भी शुरू करे।
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पीठासीन पदाधिकारी सम्मेलन
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लोक सभा के स्पीकर ओम बिड़ला ने कर्नाटका विधान परिषद के उप सभापति एस.एल.धर्म गौड़ा की आत्म हत्या की घटना की निष्पक्ष जांच की मांग की है।
याद रहे कि विधान परिषद में कुछ सदस्यों ने धर्म
गौड़ा को चलते सत्र में अभूतपूर्व ढंग से अपमानित किया था।
गत 12 दिसंबर, 2020 की उस शर्मनाक घटना से क्षुब्ध होकर उन्होंने ट्रेन से कटकर अपनी जान दे दी ।
इस संदर्भ में माननीय ओम बिड़ला की ंिचंता वाजिब है।
उससे पहले गत साल राज्य सभा के उप सभापति हरिवंश को प्रतिपक्षी सदस्यों ने अभूतपूर्व ढंग से अपमानित किया था।
दरअसल देश की विधायिका में बढ़ती अराजकता को देखते हुए देश के पीठासीन पदाधिकारियों का विशेष सम्मेलन बलाया जाना चाहिए।उसमें यह विचार हो कि क्या विधायिकाओं में आए दिन जो शर्मनाक दृश्य उपस्थित होते रहते हैं,उसे समाप्त करने के ठोस व कारगर उपाय नहीं हो सकते हैं ?
याद रहे कि जब टी.वी.पर किसी विधायिका में हंगामे का दृश्य जब आने लगता है तो कई लोग चैनल बदल देते हैं।
क्योंकि वह सब देख कर आमलोगों को तो शर्म आती है।क्या उन्हें आती है ?
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और अंत में
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बिहार सरकार ने नल जल योजना के 138 ठेकेदारों और एजेंसियों को काली सूची में डालने का निर्णय किया है।
इस खबर के बाद मुझे इससे संबंधित एक बात याद आई।
मेरे एक परिचित, जो झारखंड में ठेकेदारी करते हैं,
बिहार में ठेकेदारी लेने आए थे।
जब उन्हें पता चला कि रिश्वत की दर झारखंड की अपेक्षा बिहार में अधिक है तो वे लौट गए।
इधर बिहार के कई स्थानों से यह खबर आती रही है कि नल जल योजना में जितना भ्रष्टाचार हुआ है, उतना शायद ही किसी अन्य निर्माण योजना में हुआ हो !
यदि इस योजना में लूट मचाने वाले सारे संबंधित लोगों को कठोर सजा देने -दिलाने का प्रबंध हो जाए तो उसका सुपरिणाम अन्य महकमों पर भी पड़ सकता है।
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1 जनवरी 21 के प्रभात खबर,पटना में प्रकाशित मेरे साप्ताहिक काॅलम ‘कानोंकान’ से।
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