बुधवार, 6 जनवरी 2021

 जय हो जग में जले जहां भी 

नमन पुनीत अनल को ......।

         --  दिनकर

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विधायक फंड में भ्रष्टाचार के खिलाफ 

माले की पहल सराहनीय

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फंड के आॅडिट में कारगर होगी 

‘टिस’ के विद्यार्थियों की मदद 

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    --सुरेंद्र किशोर--

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आज के ‘प्रभात खबर’ पटना में प्रकाशित एक महत्वपूर्ण समाचार का शीर्षक है-

‘‘माले विधायकों के फंड का आॅडिट करेगी पार्टी।’’

मेरी समझ से राजनीति व प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार को कम करने व विकास का अधिक लाभ लोगों तक पहुंचाने के लिए इससे बेहतर पहल नहीं हो सकती है।

नब्बे के दशक में माले के ही बगोदर से विधायक महेंद्र सिंह ने विधायकों के जाली टी.ए.-डी.ए. बिल के खिलाफ अभियान चलाया था।

पर, दुर्भाग्यवश जालसाजों के समक्ष वे बिलकुल अकेला पड़ गए थे।उस समय उनकी पार्टी से भी उन्हें मदद मिली,ऐसी कोई सूचना नहीं है।

नतीजतन वे भ्रष्टाचार की उस जकड़न को तोड़ नहीं पाए ।

अब शायद इस बार माले के सभी 12 विधायक, विधायक फंड के भ्रष्टाचार के खिलाफ पार्टी के अभियान में साथ देंगे,ऐसी उम्मीद है। 

  मेरा यह भी मानना है कि माले जैसा संगठित दल यह काम कर सकता है।वही कर सकता है।

 यदि वह मुम्बई के ‘टिस’ के विद्यार्थियों की मदद ले तो  आॅडिट ठीकठाक होगा।

मुजफ्फरपुर के शेल्टर होम घोटाले की आरंम्भिक जांच

बिहार सरकार ने टाटा समाज विज्ञान संस्थान यानी टिस  के विद्यार्थियों से ही करवाई थी।

  तभी भीषण गड़बड़ियों का पता चल सका था।

 किसी और से करवाई होती तो आसानी से लीपापोती हो गई होती ।

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सांसद विधायक फंड में भारी कमीशनखोरी कायम रखने में इस देश की राजनीति के अधिकतर लोगों  का भारी निहितस्वार्थ है।

विधायकों -सांसदों में अत्यंत अपवाद स्वरूप लोग ही बचे हैं जो कमीशनखोरी के भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं और खुद उससे दूर हैं।

  इन ताकतवर कमीशनखोरों को न तो प्रधान मंत्री के रूप अटल बिहारी वाजपेयी चाहते हुए भी पराजित कर सके और न मन मोहन सिंह।

नीतीश कुमार पर तो इतना दबाव पड़ा कि विधायक फंड को खत्म करने के बाद फिर से उसे उन्हें वापस लाना पड़ा।

नरेंद्र मोदी जैसे ईमानदार प्रधान मंत्री सांसद फंड के कमीशनखोरों को पराजित करने की इन दिनों बड़ी कोशिश कर रहे हैं।

देखना है कि उनकी कोशिश में कौन जीतता है -पी.एम.

या ताकतवर कमीशनखोर !

   विधायक-सांसद फंड इस गरीब देश में सरकार व राजनीति के भ्रष्टाचार के पीछे का ‘‘रावणी अमृत कुंड’’ 

है ।यह  देश में भ्रष्टाचार को कम करने ही नहीं दे रहा है।

जब अपने सेवा काल के प्रारंभिक वर्षों में ही सांसद-विधायक फंड की कमीशखोरी में जो आई.ए.एस.अफसर लिप्त हो जाएगा,वह ऊपर के पदों पर जाने के बाद ‘राम भजन’ तो नहीं ही करेगा !!

हालांकि न तो सारे अफसर कमीशनखोर हैं और न ही  सारे जन प्रतिनिधि।

किंतु यह भी सच है कि अधिकतर लिप्त हैं।

इस सांसद-विधायक फंड ने इस देश में राजनीति व प्रशासन को जनता की नजर में जितना गिरा दिया है,उतना किसी अन्य फंड ने नहीं गिराया।

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माले के 12 विधायक अपने -अपने चुनाव क्षेत्रों में विधायक फंड के खर्चे में ईमानदारी कायम करा सकें तो उससे एक साथ कई लाभ होंगे।

  जो इस धंधे में हैं,उनका जनता के बीच भंडाफोड़ हो जाएगा।

कुछ को सजा भी हो जाएगी।

खुद माले की ताकत जनता में बढ़ेगी।

क्योंकि अच्छे कामों की सुगंध बड़ी तेजी से दूर दूर तक फैलती है।

भ्रष्ट प्रशासनिक अफसर, ईमानदार जन प्रतिनिधियों से डरने लगेंगे।

नतीजतन सरकार के अन्य निर्माण ,विकास व कल्याण के कामों में जारी भीषण भ्रष्टाचार भी कम होगा।

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यदि माले ठीक से विधायक फंड का आॅडिट करा पाए तो उसका नाम भ्रष्टाचार उन्मूलन के क्षेत्र में इतिहास में दर्ज हो जाएगा।

आज आम जन सरकारी भ्रष्टाचार से बुरी तरह पीड़ित है।

भ्रष्टों के सामने जनता असहाय है।

किसी भी दल की अपेक्षा अभी माले में अधिक ईमानदार कार्यकत्र्ता उपलब्ध हैं।

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--सुरेंद्र किशोर--27 दिसंबर 20

 


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