मुझे जानने वालों से दो बातेें
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कई बार मेरे कुछ लेखों पर व मेरे यहां किसी बड़ी हस्ती के आने पर कुछ लोग अटकलें लगाने लगते हैं।
मेरे फेसबुक वाॅल पर भी ऐसी बातें हुई हैं।
जागरूक मित्र व मेरे हितंिचंतक रामनंदन बाबू ने जो बात लिखी है,उसका जवाब देना मैंने जरूरी समझा।
यह जवाब अन्य लोगों को भी संबोधित है।
वह जवाब आप भी पढ लीजिए-
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रामनंदन जी,
आपने तो शालीन ढंग से मेरे लिए सदिच्छा प्रकट की है।
आभारी हूं।
कई लोग तो मुझे अपमानित करने के लिए मेरे नाम के साथ -साथ राज्य सभा-विधान परिषद आदि -आदि शब्द जोड़ते रहते हैं।
जो जैसा होता है,उसका दिमाग उसी ओर जाता है।
मैंने जीवन में अपने लिए कभी किसी से कुछ नहीं मांगा।
एक अपवाद को छोड़कर जब मैंने 1977 में मशहूर पत्रकार जितेंद्र सिंह से कहा था कि आप दैनिक ‘आज’ के पारस बाबू से कहिए कि वे मुझे टेस्ट परीक्षा में बैठने दें।
‘आज’ के पटना ब्यूरो के लिए सीमित बहाली के लिए परीक्षा होनी थी।
मैं बैठा और सफल हुआ।
यदि यह कुछ मांगना हुआ तो आप मुझे दोषी मान सकते हैं।
बाकी राजनीति (1966 से 1977 तक )व पत्रकारिता में मुझे जो कुछ मिला है,वह लोगों ने बुला-बुला कर दिया ,मैंने मांगा नहीं।
बल्कि इस बीच समय-समय पर कई आॅफर मैंने ठुकराए भी।
जहां तक विधान परिषद व राज्य सभा का सवाल है ,उन जगहों के लिए मैं खुद को योग्य नहीं मानता।
क्योंकि उसके लिए मेरी कोई अर्हता (क्वाॅलिफिकेशन)नहीं है।
जो व्यक्ति जिस जगह के लिए योग्य नहीं है,उसे उसके बारे में सोचना भी नहीं चाहिए।
वैसे जो काम मैं करता रहा हूं,कर रहा हूं ,उससे मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं।
किसी को मेरी चिंता करने की जरूरत नहीं है।
हां, मुझसे जलने वाले या मुझसे अलग विचार रखने वाले लोग यदि मेरे मरने के बाद भी जीवित रहें तो तब मेरा आकलन वे करें,तो बेहतर होगा।
स्वाभाविक है कि जो कोई भी मतदान करता है,उसका कोई न कोई राजनीतिक विचार होगा ही।
हां, जो यह समझते हैं कि चूंकि मैं उनकी विचारधारा को नहीं मानता तो मैं मनुष्य नहीं बल्कि राक्षस हूं तो मैं वैसे लोगों की कोई मदद नहीं कर सकता।
वैसे लोग मुझे श्राप देते रहें,काल्पनिक बातों की चर्चा करते रहें !
मेरी शुभकामना है !
यह सब करके वे खुश रहें।
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--सुरेंद्र किशोर--17 जनवरी 21
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