राजनीतिक त्रिदोष ग्रस्त दलों का अस्तित्व खतरे में
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--सुरेंद्र किशोर--
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लगता है कि राजनीतिक त्रिदोष ग्रस्त तृणमूल के सत्ता से बाहर जाने की अब बारी है।
कफ,पित्त और वायु को आयुर्वेद में त्रिदोष कहा गया है।
दूसरी ओर राजनीति के त्रिदोष हैं-भ्रष्टाचार, परिवारवाद और
तुष्टिकरण।
राजनीतिक त्रिदोष से ग्रस्त कई तथाकथित सेक्युलर दल
अब काफी दुबले हो चुके हैं।
उनमें से अधिकतर की सत्ता भी छिन गई।
इस बार वहां के विधान सभा चुनाव से ठीक पहले पश्चिम बंगाल से भी वैसे ही संकेत मिल रहे हैं।
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पिछले कुछ महीनों में जितनी बड़ी संख्या में प्रमुख नेताओं ने ममता बनर्जी का साथ छोड़ा है,वह एक रिकाॅर्ड है।
दरअसल पहले जनता किसी दल का साथ छोड़ती है और बाद में राजनीति के मौसमी पक्षी !
तृणमूल छोड़ने वाले नेताओं में अधिकतर मौसमी पक्षी ही हैं।
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त्रिदोषग्रस्त तृणमूल कांग्रेस की ‘‘पिता-पुकार’’ भी बेकार गई।
तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय ने सी.पी.एम.और कांग्रेस से अपील की कि वे तृणमूल कांग्रेस से मिलकर पश्चिम बंगाल के अगले विधान सभा चुनाव में भाजपा का मुकाबला करें।
पर,कांग्रेस-सी.पी.एम.ने सौगत राय के इस आॅफर को ठुकरा दिया है।
लगता है कि तृणमूल का त्रिदोष एडवांस स्टेज में है।
कोई ‘वैद्य’ काम नहीं आ रहा है।
देश में अब भी सक्रिय ऐसे अन्य त्रिदोषग्रस्त राजनीतिक दल अब भी चेत जाएं।
चेत जाएंगे तो लोकतंत्र का भला होगा।
अन्यथा, देश अघोषित रूप से एकदलीय शासन की ओर बढ़ जा सकता है
जो सही नहीं होगा।
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--15 जनवरी 21
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