दिल्ली में हुड़दंग,हिंसा और टकराव
यह सरकार द्रोह नहीं बल्कि देशद्रोह है।
आंदोलनकारियों को न तो संसद पर भरोसा है
और न सुप्रीम कोर्ट पर
इन्हें अहिंसा में भी विश्वास नहीं हैं
फिर इनसे सरकार कैसे निपटे !
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--सुरेंद्र किशोर-
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भारत की संसद ने गत साल तीन कृषि कानून पास किए।
तीन-चार राज्यों के कुछ किसानों को ये कानून पसंद नहीं हैं।
वे आंदोलनरत-धरनारत हैं।
अब तो हिंसक हो उठे हैं।
केंद्र सरकार उन कानूनों को रद करने की मांग नहीं मांन रही है।
क्योंकि इन कानूनों के जरिए देश के किसानों की आय दुगुनी होनी है।
किसानों के आंदोलन को आढतियों व बिचैलियों का आंदोलन बताया जा रहा है।
उनमें कुछ देशद्रोही तत्व घुस गए हैं।
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कृषि कानून विरोधी किसानों को कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए था।
कोर्ट से उन्हें मांग करनी चाहिए थी कि वह कानून को रद करे।
पर उन्हें सुप्रीम कोर्ट पर विश्वास नहीं है।
यदि कृषि कानून देश के किसानों के खिलाफ है तो किसानों व उनके नेताओं को चाहिए था कि वे 2024 के लोक सभा चुनाव का इंतजार करते
जो सरकार किसान विरोधी होगी, वह चुनाव नहीं जीत पाएगी।
पर आंदोलनकारी यह जानते हैं कि तीन राज्यों को छोड़कर देश के अधिकतर किसान कानून के पक्ष में हैं।
इसलिए कृषि कानून विरोधी किसान व उनके नेता आज दिल्ली की सड़कों पर पुलिस से ‘युद्ध’ कर रहे हैं।
युद्ध का मुकाबला केंद्र सरकार को युद्ध से दे
ही देने को मजबूर होना पड़ेगा।
दरअसल किसानों के बीच कुछ ऐसे देशद्रोही तत्व घुस गए हैं जो इस आंदोलन के जरिए कोई अन्य लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं।
उनके उद्देश्यों का पता परंपरागत किसान नेताओं को पहले से ही था।
इसलिए उन्हें आंदोलन फिलहाल स्थगित कर देना चाहिए था।
पर उन्होंने ऐसा न करके खुद को गैर जिम्मेदार नेता साबित किया है।
पता नहीं आज का हिंसक आंदोलन कौन सा रूप ग्रहण करेगा।
किंतु अंततःकेंद्र सरकार को तत्काल उपद्रवियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करके उन्हें ठंडा करना पड़ेगा।
बाद में उन पर देशद्रेाह का मुुकदमा कायम करना होगा।
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--सुरेंद्र किशोर-
26 जनवरी, 21
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