सोमवार, 18 जनवरी 2021

 


केरल -तमिलनाडु से अपराध नियंत्रण का गुर सीखे बिहार-पश्चिम बंगाल-सुरेंद्र किशोर

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बिहार में अपराध पर काबू पाने के लिए जारी सरकारी कोशिश को और तेज करने की जरूरत है।

उससे भी अधिक महत्वपूर्ण काम है अदालती सजा की दर को बढ़ाना।

इस बात का पता लगाना जरूरी है कि किन कारणों से केरल में सजा की दर 85 प्रतिशत है और बिहार में सिर्फ 

16 प्रतिशत ?

हत्या के मामलों में तो बिहार में यह दर बहुत ही कम है।

 यदि तमिलनाडु में सजा का प्रतिशत 63 है तो क्यों पश्चिम बंगाल में दर मात्र 13 प्रतिशत है ?

जबकि राष्ट्रीय औसत दर 46 है।

एक ही देश के विभिन्न प्रदेशों में इतना अंतर क्यों ?

जबकि, अखिल भारतीय सेवा के पुलिस अफसर ही हर राज्य में  तैनात हैं।

ऊपर दिया गया आंकड़ा आई.पी.सी.के तहत दायर मुकदमों का है।

यानी, बिहार में जिन सौ मुकदमों में पुलिस अदालतों में आरोप पत्र दायर करती है,उनमेंसे सिर्फ 16 मामलों में ही वह अदालतों से सजा दिलवा पाती है।

  सी.बी.आई.के मामलों में सजा की दर 69 है तो एन.आई.ए.के मामलोें में करीब नब्बे है।

  इतना अंतर क्यों ?

बिहार सरकार यदि चाहे तो वह केरल और तमिलनाडु अपनी विशेषज्ञ टीमें भेज कर अधिक सजाओं के कारणों का पता लगवा सकती है।

यदि संभव हो तो उन उपायों को बिहार में भी लागू कर सकती है।

एन.आई.ए. को विशेष सुविधाएं मिलती हैं।

जरूरी भी है।

देश की रक्षा का सवाल जो है ! 

किंतु राज्य पुलिस बेहतर सुविधाओं के लिए क्यों तरसे ?

गवाहों व पीड़ितों की सुरक्षा कैसे हो  ?

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 एन.आई.ए. की सफलता  

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आतंक से संबंधित मामलों को देखने के लिए नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी का गठन किया गया है।

जिन मामलों को एन.आई.ए.अपने हाथों में लेती है,उसकी बेहतर जांच के लिए एजेंसी को शासन से विशेष सुविधाएं मिली होती है।

यहां तक कि नार्को टेस्ट तथा ब्रेन मैपिंग की सुविधा भी उस एजेंसी को अक्सर अदालत से मिल जाती है।

  दूसरी ओर, आई.पी.सी.से संबंधित मुकदमों को देख रही राज्य पुलिस को ऐसी सुविधा अत्यंत विरल मामलों में ही अदालत देती है।

  इस बीच गत माह सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों को यह निदेश दिया है कि हर पुलिस स्टेशन में सी.सी.टी.वी.कैमरे लगाएं जाएं।

यानी थाने में जोर जबर्दस्ती करके जुर्म कबूलवाने की गुंजाइश अब  कम ही रहेगी।नार्को टेस्ट की सुविधा है नहीं।

 इस पृष्ठभूमि में बिहार जैसे राज्यों की सरकारें इस बात पर विचार करे कि सजा की दरें बढ़ाने के लिए वह पुलिस का सशक्तीकरण कैसे करे ?

सजा का डर होगा तभी  अपराध पर काबू पाया जा सकेगा।........................................

 सरकारी योजनाओं के नाम

घोषित किए जाएं

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बिहार में भी राज्य और केंद्र सरकारें विकास और कल्याण की सैकड़ों योजनाएं चलाती हंै।

अनेक प्रमुख योजनाओं के नाम तो लोगों की जुबान पर रहते हैं।

पर, कई योजनाएं ऐसी भी हैं जिनके नाम तक लोगों को नहीं मालूम।

इसका लाभ वे सरकारी कर्मी व दलाल उठाते हैं जिनका धंधा ही है जाली बिलों के जरिए सरकारी पैसे उठा लेने का।

  यदि समाचार पत्रों में सरकारें अपनी योजनाओं के नाम प्रकाशित करती रहे तो जागरूक लोग संबंधित अफसरों व दफ्तरों से पूछ सकेंगे कि इसका लाभ किन्हें मिल रहा है।

  यदि अखबारों में छपवाना संभव नहीं हो तो जिला और अंचल स्तर पर कार्यालयों के नोटिस बोर्ड पर उन सारी योजनाओं के नाम लिख कर टांगे जा सकते हैं।

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छोटी नदियों पर बने चेक डैम

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यदि बिहार की छोटी-छोटी नदियों पर चेक डैम बन जाएं तो कैसा रहेगा ?

जानकार बताते हैं कि उससे सिंचाई होगी।

भूजल स्तर का क्षरण रुकेगा।

जल शोधन करके पेय जल का इंतजाम भी हो सकता है। 

किंतु पता चला है कि सिंचाई विभाग के कुछ इंजीनियर व अफसर छोटी नदियों पर चेक डैम के पक्ष में नहीं हैं।

इसलिए अब यह राज्य सरकार पर है कि छोटी नदियों पर चेक डैम के गुण-दोष की एक बार समीक्षा करे।

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   अपराध-भ्रष्टाचार के समर्थक कौन ?

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जो लोग सांसद-विधायक फंड की समाप्ति के समर्थक नहीं हैं,वे भ्रष्टाचार के जारी रखने दोषी हैं।

क्योंकि अपवादों को छोड़कर इस फंड ने प्रशासन व राजनीति मंे कमीशनखोरी को संस्थागत रूप दे दिया है। 

जो आपराधिक और माफिया पृष्ठभूमि के लोगों को चुनावी टिकट देने के पक्ष में हैं,वे नहीं चाहते कि अपराध रुके।

जो लोग चुनावी टिकट की बिक्री और नीलामी के विरोध में नहीं हैं वे ही प्रजातंत्र के खात्मे व तानाशाही की स्थापना के दोषी माने जाएंगे,यदि तानाशाही कभी आई तो। 

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  ममता बनर्जी के लिए अपशकुन

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तृणमूल कांग्रेस ने सी.पी.एम.और कांग्रेस से अपील की है कि वे तृणमूल कांग्रेस से मिलकर पश्चिम बंगाल के अगले विधान सभा चुनाव में भाजपा का मुकाबला करें।

कांग्रेस-सी.पी.एम.ने तृणमूल सांसद सौगत राय के इस आॅफर को ठुकरा दिया है।

एक और सूचना !

पिछले कुछ महीनों में तृणमूल कांग्रेस से जितने अधिक नेता व कार्यकत्र्ता अलग हुए हैं,उतने आज तक किसी सत्ताधारी दल से अलग नहीं हुए थे।

  इतना ही नहीं,कांग्रेस की अपेक्षा सी.पी.एम. से निकल कर अधिक कायकत्र्ता भाजपा में शामिल हुए हैं।

  अब आप पश्चिम बंगाल विधान सभा के अगले रिजल्ट का अनुमान लगा लीजिए।

याद रहे कि पश्चिम बंगाल बिहार के बगल का प्रदेश है।आम लोगों का आपसी संबंध रहा है।

इसलिए उसका रिजल्ट बिहार को भी देर सवेर प्रभावित करेगा। 

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 और अंत में 

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कुछ लोग महान पैदा होते हैं।

कुछ अन्य लोग अपनी मेहनत,ईमानदारी और प्रतिभा से महान बनते हैं।

पर, कुछ अन्य लोगों पर महानता थोप दी जाती है।

  पर,ऐसा देखा गया है कि स्थायित्व उनमें ही अधिक है जिन्होंने अपनी मेहनत-ईमानदारी-प्रतिभा से सफलता हासिल की है। 

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‘कानांेकान’

प्रभात खबर

पटना

15 जनवरी 21


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