शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

 बाबू जी की पुण्य तिथि पर

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पंडित ओम व्यास ओम ने ठीक ही लिखा है कि 

‘पिता भय से चलने वाला प्रेम का प्रशासन है।’

मुझे याद नहीं कि बाबू जी ने कभी हमें बचपन में एक थपड़ भी मारा हो।

दरअसल उनकी उपस्थिति मात्र से हम सब भाई अनुशासित रहते थे।

वैसी कद-काठी का शायद ही कोई व्यक्ति जवार में हो !

मेरे परमानंद मामा (जमशेद पुर में बस गए हैं) उनके बारे में कहते थे कि मेरे बहनाई शेर हैं।

  स्वाभाविक ही है कि उनके जीवनकाल में तो हमें उनके महत्व का उतना पता नहीं चल सका।

पर, न रहने पर हम सोचते रहे कि शायद हम लोग उनसे परंपरागत विवेक को लेकर कुछ अधिक सीख सकते थे।

उनकी स्कूली शिक्षा तो नहीं थी,

किंतु वे रामायाण पढ़ते थे,

कैथी लिखते थे।

जमींदारी की रसीद काटते थे।

गांव- जवार में पंचायती करने जाते थे।

हां,वे मुकदमे के सिलसिले में अक्सर पटना-छपरा 

जाते रहते थे।

कहा करते थे कि पटना हाईकोर्ट भवन के आसपास पहले धान की खेती होती थी जिसेे उन्होंने देखा था।

विधायक काॅलोनी तो बाद में बनी।

  बाबूजी का 19 जनवरी 1986 को निधन हो गया।

मेरी बेटी अमृता ने फेसबुक पर आज उन्हें पहले याद किया।

बाद में मैं।

  ओम व्यास ओम की कविता के जरिए हमें पिता के पूरे महत्व का एहसास हुआ।

आपके साथ साझा कर रहा हूं।

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पिता

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पिता  जीवन है, संबल है, शक्ति है।

पिता सृष्टि के निर्माण की अभिव्यक्ति है।

पिता अंगुली पकड़े बच्चे का सहारा है।

पिता कभी खारा तो कभी मीठा है।

पिता पालन पोषण है,परिवार का अनुशासन है।

पिता भय से चलने वाला प्रेम का प्रशासन है।

पिता रोटी है, कपड़ा है,मकान है।

पिता छोटे से परिंदे का बड़ा आसमान है।

पिता अप्रदर्शित अनंत प्यार है।

पिता है तो बच्चों को इंतजार है।

पिता से ही बच्चों के ढेर सारे सपने हैं।

पिता है तो बाजार के सब खिलौने अपने हैं।

पिता से प्रतिपल राग है।

पिता से ही मां की बिंदी और सुहाग है।

पिता परमात्मा की जगत के प्रति आसक्ति है।

पिता गृहस्थाश्रम में उच्च स्थिति की भक्ति है।

पिता अपनी इच्छाओं का हनन परिवार की पूत्र्ति है।

पिता रक्त में दिए हुए संस्कारों की मूत्र्ति है।

पिता एक जीवन को जीवन का दान है।

पिता दुनिया दिखाने का अहसास है।

पिता सुरक्षा है, अगर सिर पर हाथ है।

पिता नहीं तो बचपन अनाथ है।

पिता  से बड़ा अपना नाम करो।

पिता  का अपमान नहीं, अभिमान करो।

क्योंकि मां-बाप की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता।

ईश्वर भी इनके आशीषों को काट नहीं सकता।

दुनिया में किसी भी देवता का स्थान दूजा है।

मां-बाप की सबसे बड़ी पूजा है।

वो खुशनसीब होते हैं, मां-बाप जिनके साथ होते हैं।

       --  पंडित ओम व्यास ओम

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