गुरुवार, 7 जनवरी 2021

 सुरेंद्र किशोर के फेसबुक वाॅल से

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नशाबंदी का एक उपाय यह भी !

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हालांकि कोई मानेगा नहीं,

किंतु इसे कह देने में हर्ज ही क्या है ?!!

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जो नेता अतिशय दारू पीने के कारण मरे ,

उसका कोई स्मारक न बने।

उसे पारिवारिक पेंशन न मिले।

न ही उसकी संतान को अनुकम्पा के आधार पर 

कोई पद दिया जाए।

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पेंशन न मिलने की आशंका में उसकी पत्नी उसे दारू पीने से रोकेगी।

अनुकम्पा न मिलने के डर से संतान उसे दारू से दूर करने की कोशिश करेगी।

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यदि कोई नेता शराबी है तो देखा-देखी उसके समर्थक भी पीने लगते हैं।

क्योंकि वे शान व आधुनिकता की बात समझते हैं। 

इस तरह नशा का प्रचार होता है।

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अब जरा सिगरेट की बात करें।

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डा.राम मनोहर लोहिया पहले बहुत सिगरेट पीते थे।

अपने पिता के सामने भी पीते थे।

एक बार गांधी ने मना किया तो लोहिया ने पीना बंद कर दिया।पर गांधी के मरने के बाद फिर सिगरेट पीने लगे।

पर उनके निधन के बाद फिर वे सिगगरेट पीने लगे।

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जब उनके बहुत सारे प्रशंसक-समर्थक -अनुयायी उनकी देखा- देखी सिगरेट पीने लगे तो चिंता हुई।

मशहूर समाजवादी नेता मामा बालेश्वर दयाल ने लोहिया को पत्र लिखा।

कहा कि आपकी देखा-देखी अनेक समाजवादी कार्यकत्र्ता सिगरेट पीकर अपना स्वास्थ्य खराब कर रहे हैं।

आप सिगरेट छोड़ दीजिए।

लोहिया ने छोड़ दिया।

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आज का कोई नेता किसी के कहने पर दारू छोड़ने वाला है नहीं।

इसलिए ‘सजा’ जरूरी है।

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--सुरेंद्र किशोर -7 जनवरी 21


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