शुक्रवार, 11 जून 2021

 


खाद्य मिलावट से संबंधित अपराध को गैर जमानती बनाने की जरूरत--सुरेंद्र किशोर

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खाद्य मिलावट से संबंधित अपराधों पर इसी महीने सुप्रीम कोर्ट ने भारी चिंता व्यक्त की है।

 अदालत ने मिलावट के एक मामले में आरोपियों को अग्रिम जमानत देने से साफ मना कर दिया।

साथ ही, अदालत ने यह टिप्पणी भी की कि

 ‘‘सिर्फ भारत में हम स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के प्रति उदासीन हैं।’’

पिछली अनेक घटनाएं बताती हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने बिलकुल सही कहा है।

  यदि सरकार व संसद को चिंता रही होती तो ऐसे अपराध को गैर जमानती अपराधों की सूची में अब तक डाल दिया गया होता।

 उम्मीद है कि अन्य बड़े -बड़े काम कर चुकी नरेंद्र मोदी  सरकार इस दिशा में भी ठोस पहल करेगी।

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      निर्भीक मिलावटखोर

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  मिलावटखोरों की निर्भीकता तो देखिए !

उनकी पहुंच से आमजन कौन कहे,  प्रधान मंत्री  भी बाहर नहीं हंै।

     सन 1999 में तत्कालीन प्रधान मंत्री अटलबिहारी 

वाजपेयी पटना आए थे।

उन्हें परोसे जाने वाले खाद्य व पेय पदार्थों में से मिनरल वाटर नकली पाया गया था।

  इसी तरह की घटना सन 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ कानपुर में हुई।

उन्हें परोसे जाने वाले मूंग की दाल और खरबूजे के बीज अशुद्ध व मिलावटी पाए गए।

 इन दो घटनाओं के बावजूद ऐसे अपराध को गैरजमानती  बनाने की पहल नहीं की गई।

मिलावटखोरों की ताकत तो देखिए !

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     हमारी उदासीनता की हद 

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कई साल पहले भारत की  संसद में यह आवाज उठाई गई  कि अमेरिका की अपेक्षा हमारे देश में तैयार हो रहे कोल्ड ड्रिंक में रासायनिक कीटनाशक दवाओं का प्रतिशत काफी 

अधिक है।

  इसपर सरकार ने कह दिया कि ‘‘यहां कुछ अधिक की अनुमति है।’’

  हाल की खबर है कि इस देश में बिक रहे 85  प्रतिशत दूध मिलावटी है।

जितने दूध का उत्पादन नहीं है,उससे अधिक की आपूत्र्ति हो रही है।  

  सवाल यह भी है कि इस देश में अन्य कौन सा खाद्य व भोज्य पदार्थ कितना शुद्ध है ?

यह जानलेवा समस्या है और बहुत पुरानी भी है।

विभिन्न सरकारें लोक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए क्या -क्या करती हंै ?

 कितने दोषियों को हर साल सजा हो पाती है ?

मिलावट का यह कारोबार जारी रहा तो कुछ दशकों के बाद हमारे यहां कितने स्वस्थ व कितने अपंग बच्चे पैदा होंगे ?

पीढ़ियों के साथ इस  खिलवाड़ को आप क्या कहेंगे ?

क्या सबके मूल मंे भष्टाचार नहीं है ?   

बिहार विधान परिषद की विशेष समिति ने सन 2002 में ही यह कह दिया था कि ‘‘पूरा समाज  मिलावटी कारोबार करने वालों की दया पर निर्भर हो गया है।’’

  यहां तक कि बिहार विधान सभा का कैंटीन भी मिलावट के मामले में अछूता नहीं रहा।

पटना की कई प्रतिष्ठित किराना दुकानों को भी समिति ने मिलावट के मामले में अपवाद नहीं माना था।

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स्पीड ब्रेकर लगाने की छूट मिले

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सड़कों पर स्पीड ब्रेकर लगाने की सरकार की ओर से मनाही है।

सही भी है।उसके अपने तर्क हैं।

पर यह नियम सभी तरह की सड़कों पर लागू नहीं होना चाहिए।

जहां के उदंड वाहन चालकों के स्पीड पर कोई प्रशासनिक व पुलिसिया रोक नहीं है,वहां के वाशिंदों को अपनी जान बचाने की सुविधा तो मिलनी ही चाहिए।

खासकर आबादी वाले इलाकों में और जहां स्कूल या अन्य संस्था अवस्थित हों।

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काॅमन सर्विस सेंटर के पैसों की लूट

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बिहार में काॅमन सर्विस सेंटर के संचालकों से आए दिन लाखों-लाख रुपए लूट लिए जाते हैं।

कई बार लूटपाट के क्रम में हत्या भी हो जाती है।

कई साल पहले एक खबर आई थी।

खबर भारी धनराशि की सुरक्षा को लेकर थी।

शासन की ओर से कहा गया था कि यदि किसी व्यक्ति को 25 हजार रुपए से अधिक बैंकों से निकाल कर लाना है तो उसे पुलिस की सुरक्षा दी जाएगी।

  पता नहीं,यह नियम अब भी लागू है या नहीं।

यदि नहीं तो काॅमन सर्विस सेंटर के संचालकों की प्राणरक्षा के लिए इसे सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।

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वेंकैया साहब की बड़ी बात

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अखिल भारतीय सचेतक सम्मेलन का

उद्घाटन करते हुए केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री वेंकैया नायडू 

ने 2014 में कहा था  कि हमारी संसद और राज्य विधान सभाओं की कार्य प्रणाली को लेकर जन साधारण में चिंता है।

उन्होंने यह भी कहा कि इन संस्थाओं की विश्वसनीयता घटी है।

 याद रहे कि वंेकैया साहब अब उप राष्ट्रपति व राज्य सभा के पदेन सभापति हैं।

 उन्होंने तब कहा था कि राजनीति के अपराधीकरण,बढ़ते धन बल,बैठकों की संख्या में कमी ,व्यवधान व स्थगन के चलते इन महत्वपूर्ण संस्थानों की विश्वसनीयता घटी है।

  उम्मीद है कि वेंकैया साहब अपने इस पुराने विचार को याद करेंगे और कोविड विपत्ति के गुजर जाने के बाद इस समस्या पर उच्चस्तरीय चर्चा की पहल करेंगे।

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  और अंत में

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अपने देश में भी अजब-गजब तरह के लोग हैं।

बांग्ला देशी और रोहिग्या घुसपैठियों को इसी देश में बसा देने की मांग करते हुए अब तक सुप्रीम कोर्ट में 18 लोकहित याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं।

  पर,एक याचिका 5 करोड़ ऐसे घुसपैठियों को निकाल बाहर करने के लिए भी सबसे बड़ी अदालत में दायर की गई है।

मांग की गई है कि पहले उनकी पहचान हो।

फिर उन्हें रोक रखा जाए।अंत में उन्हें निर्वासित किया जाए।

इस एक याचिका पर अदालत ने केंद्र व राज्य सरकारों से राय मांगी है।

संभवतः अश्विनी उपाध्याय की इस याचिका पर अगले महीने सुनवाई हो।

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