बुधवार, 2 जून 2021

 प्रधान मंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना

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नजर रखिए, इस गरीब हितैषी परियोजना 

को आई.डी.पी.एल.की तरह ही किसी 

साजिश का शिकार न होना पड़े ! 

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--सुरेंद्र किशोर--

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प्रधान मंत्री जन औषधि परियोजना के तहत 

पूरे देश के साथ- साथ पटना में भी अनेक दवा दुकानें 

खुली हुई हैं।

उनमें अपेक्षाकृत बहुत ही सस्ती दवाएं मिलती हैं।

गरीब उससे अधिक लाभान्वित हो रहे हैं।

पर,उन दुकानों को व जन औषधि बिक्री प्रक्रिया को विफल करने की साजिश चल रही है।

ऐसी सूचनाएं मिल रही हैं।

  भगवान करे, मुझे मिल रही यह सूचना गलत हो ! 

 पर, उसे विफल करने के क्या तरीके हैं, इसका पता लगाना सरकार का काम है।

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  इसी तरह कई दशक पहले सार्वजनिक क्षेत्र के दवा उत्पादन कारखाने आई.डी.पी.एल.की दवाएं बहुत सस्ती मिला करती थीं।

पर,पता चला कि साजिश के तहत आई.डी.पी.एल.के कारखानों को ही एक एक कर बंद करा दिया गया।

  कुछ दशक पहले तक डा.शिवनारायण सिंह पटना के मशहूर 

चिकित्सक थे।

वे आम तौर पर आई.डी.पी.एल.निर्मित सस्ती दवाएं ही लिखते थे।

  जहां तक मुझे याद है ,तब आई.डी.पी.एल.निर्मित जो टेबलेट 10 पैसे में मिलती थी,वही टेबलेट ब्रांडेड कंपनी दस रुपए में बेचती थी।

 दस रुपए के टेबलेट-कैप्सूल का नकली संस्करण बनाने में फायदा था।

दस पैसे के टेबलेट के नकलीकरण से भला 

क्या फायदा होता !

इसलिए भी डा.शिवनारायण सिंह अनुशंसित दवाएं कारगर होती थीं।

हालांकि वे डाक्टर भी आले दर्जे के थे।

बात तब की है जब डा.शिवनारायण सिंह की फीस करीब 7 रुपए थी।

मेरी बड़ी बहन ने उनसे दिखाया।

डा.साहब ने कहा कि तुमको कोई बीमारी नहीं।

हाथों की कसरत करो।

ठीक हो जाओगी।

मेरे आवास पर आकर दीदी ने कहा कि ‘‘कइसन डागदर इहां भेज दले ह ?

ऊ त कौनो दवाइयो ना लिखलन।’’

फिर मैंने पत्नी के साथ पटना के ही उसे एक अन्य बड़े डाक्टर के यहां भेजा।

 उनकी फीस तब संभवतः 42 रुपए थी।

डाक्टर साहब ने दो  सौ रुपए की दवा भी लिख दी।मेरी दीदी संतुष्ट होकर घर लौटी।

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खैर, ताजा सवाल यह है कि क्या आई.डी.पी.एल.के कारखानों की तरह सरकार जन औषधि केद्रों की सस्ती दवाओं की बिक्री को भी विफल हो जाने देगी ?

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---सुरेंद्र किशोर

   31 मई 21



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