मोदी सरकार के सात वर्षों के कार्यकाल पर टीवी पर एक भी ऐसा कार्यक्रम नहीं देखा, जिसमें सरकारी कामकाज का संतुलित विश्लेषण होता।
या तो सरकारी उपलब्धियों का ढोल पीटने वाली जन संपर्क जैसी कवायद हुई या अंधविरोध की भावना से प्रेरित कार्यक्रम परोसे गए।
निश्चित रूप से इस स्थिति के बीच मध्यमार्ग भी है।
अफसोस की बात है कि निष्पक्षता ध्रवीकरण के हाथों भेंट चढ़ गई।
...............................................
---संदीप घोष
दैनिक जागरण
14 जून 21
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें