कैसे हो जनसंख्या नियंत्रण !
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--सुरेंद्र किशोर--
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दो बच्चों की नीति की ओर असम और उत्तर
प्रदेश सरकारें आगे बढ़ रही हैं।
राजस्थान -मध्यप्रदेश में पहले से लागू है।
किंतु यह काम केंद्र सरकार को भी करना चाहिए।
करना ही होगा।
दरअसल हमारे देश में जिस रफ्तार से आबादी बढ़ रही है,उससे हमारे सीमित ससाधनों पर और भी दबाव बढ़ता जा रहा है।
कोविड महा विपत्ति के दौर में भी केंद्र-प्रदेश सरकारों के सामने दिक्कतें आ रही हैं।
उसका एक कारण भारी जनसंख्या दबाव भी रहा।
यही हाल रहा कि एक दिन कई मोर्चों पर देश की स्थिति विस्फोटक हो जाएगी जिसे शायद ही संभाला जा सकेगा।
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आखिर आबादी को निंयत्रित कैसे किया जाए ?
नियंत्रण में दिक्कतें कहां -कहां हैं ?
सिर्फ बात यही नहीं है कि कुछ लोग आबादी बढ़ाकर देश पर कब्जा करना चाहते हैं।
बल्कि कई जगह तो गांव पर अपने परिवार का वर्चस्व कायम करने या बनाए रखने के लिए भी आबादी बढ़ाई जाती है।
यदि किसी किसान के पास जमीन अधिक है और उस परिवार में सदस्य कम हैं तो परिवार चाहता है कि हमारी आबादी तत्काल बढ़े।
ताकि, कोई हमारी जमीन पर कोई दबंग अतिक्रमण या कब्जा न कर सके।
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कुछ गरीब परिवारों का तर्क है कि यदि उसका परिवार बढ़ेगा तो उसके पास मजदूरी करने वाले हाथ अधिक होंगे।
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पुत्र की चाहत में भी पुत्रियों की संख्या बढ़ती जाती है।
इस तरह के कुछ अन्य कारण भी होंगे।
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अब इसके उपाय क्या हैं ?
सरकारी योजनाओं का लाभ दो बच्चों तक ही सीमित हो।
राज्य का विकास होने पर मजदूरी भी बढ़ेगी।
यदि एक ही मजदूर को कल आज की अपेक्षा दुगनी मजदूरी मिलने लगेगी तो उस परिवार को दूसरे बच्चे की जरूरत नहीं रहेगी।
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कानून-व्यवस्था बेहतर हो तो मजबूत परिवार कमजोर को नहीं सताएगा।
इस तरह मुकाबले के लिए आबादी बढ़ाने की जरूरत नहीं रहेगी।
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अंत में
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सिर्फ कन्या का जन्म देने वाली महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने के लिए सरकारों को चाहिए कि वे छोटी -छोटी जगहोें में भी जन जागरण अभियान चलाएं।
जन संपर्क विभाग की टीम महिला-पुरुष डाक्टरों के साथ मिलकर देहातों में सभाएं करें।
वे लोगों को बताएं कि सिर्फ कन्या पैदा करने के लिए महिला कत्तई ‘‘दोषी’’ नहीं है।
बल्कि संबंधित पुरुष में ‘‘जैविक’’
कमी के कारण ही उसकी पत्नी को सिर्फ शिशु कन्या पैदा होती है।
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20 जून 21
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