शुक्रवार, 4 जून 2021

 


इथेनाॅल उद्योग के विस्तार से देश के किसानों की बढ़ जाएगी आमदनी -सुरेंद्र किशोर

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आजादी के तत्काल बाद ही जो काम प्रारंभ हो जाना चाहिए था,वह काम बड़े पैमाने पर अब शुरू हो रहा है।

आजादी के समय ही ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले नेतागण तत्कालीन केंद्र सरकार को यह सलाह दे रहे थे कि पहले कृषि के विकास पर ध्यान दीजिए।

उससे किसानों की क्रय शक्ति बढ़ेगी।

नतीजतन उद्योग के विकास में भी गति आ जाएगी।

तब देश के 76 प्रतिशत लोग खेती पर निर्भर थे।

किंतु उस सलाह को नजरअंदाज कर दिया गया।

समुचित कृषि विकास की जगह छोटे -बड़े उद्योग लगाए गए।

भाखड़ा नांगल डैम अपवाद था।

इस देश में आज भी बहुमत किसानों का है।

सवाल है कि किसानों की आय नहीं बढ़ेगी तो कारखानों में उत्पादित सामग्री के खरीदार कितने होंगे ?

  आजादी के करीब सात दशक बाद अब किसानों की आय बढ़ाने की गंभीर कोशिश हो रही है।

हालांकि यहां यह नहीं कहा जा रहा है कि पहले कोई कोशिश हुई ही नहीं।

हुई जरूर, किंतु वह नाकाफी साबित हुई।

  इथेनाॅल उद्योग के विस्तार की दिशा में केंद्र सरकार के साथ -साथ बिहार सरकार भी सक्रिय है।

  बल्कि इथेनाॅल नीति बनाने वाला बिहार देश का पहला राज्य था।

 बिहार में इथेनाॅल उद्योग लगाने के करीब दो दर्जन प्रस्ताव मिल चुके हैं।

  डेढ़ दर्जन प्रस्तावों को राज्य सरकार ने मंजूरी भी दे दी है।

अभी इस उद्योग का और विस्तार होना है।

इथेनाॅल के उत्पादन में छोआ(गन्ना) के अलावा अनाज भी कच्चा माल के रूप में इस्तेमाल होगा।

स्वाभाविक है कि इससे किसानों की आय पहले से अधिक बढ़ेगी।

   जिस करखनिया माल की खरीदारी किसान नहीं कर पा रहे थे ,आय बढ़ने के बाद उसकी भी खरीदारी करेंगे।

उससे कारखानों का भी विस्तार होगा।

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भूमि अधिग्रहण मुआवजा 

 विवाद सुलझाए सरकार  

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शेरपुर-दिघवारा गंगा पुल के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया जारी है।

गंगा के दक्षिणी हिस्से में तो अधिग्रहण में संभवत कोई समस्या नहीं है।

किंतु उत्तरी हिस्से के भूमिधारियों को लगता है कि उनके साथ शासन न्याय नहीं कर रहा है।

सारण जिले के दिघवारा नगर पंचायत क्षेत्र के मीरपुर भुआल और सैदपुर दिघवारा मौजे  की लगभग 27 एकड़ जमीन का अधिग्रहण होना है।

 गत साल हुए गजट प्रकाशन में भूमि को कृषि भूमि लिखा गया ।

इसी पर भू स्वामियों की आपत्ति है।

क्योंकि अब दिघवारा नगर पंचायत की जमीन कृषि भूमि नहीं बल्कि आवासीय और व्यावसायिक घोषित है।

इसी आधार पर भूमि स्वामी सरकार को राजस्व दे रहे हैं।

इसी आधार पर भूमि का निबंधन भी हो रहा है।

तो फिर मुआवजा के लिए इस भूमि को कृषि भूमि क्यों माना जा रहा है ?

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एस.पी.हो तो राकेश दुबे जैसा !

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बिहार के भोजपुर जिले के एस.पी.राकेश दुबे से मेरा कोई परिचय नहीं है।

पर, मैं उनकी कत्र्तव्य परायणता व निर्भीकता के बारे में निष्पक्ष लोगों से सुनता रहा हूं। 

  भोजपुर के एस.पी.के रूप में इन दिनों वे जैसा काम कर रहे हैं,वैसा ही काम किसी जिले के एस.पी.को करना चाहिए।

खासकर समस्याग्रस्त जिले में।

इससे न सिर्फ पुलिस की इज्जत जनता में बढ़ती है,बल्कि शांति-व्यवस्था बेहतर रहने पर लोगों का विकास भी होता है। 

किंतु अफसोस है कि वैसा काम कम ही अफसर अब कर पाते हैं।

  कुछ दशक पहले ऐसे एस.पी. की संख्या आज की अपेक्षा कुछ अधिक हुआ करती थी।

उनमें डी.एन.गौतम और किशोर कुणाल के नाम प्रमुख हैं।

इन लोगों के कार्यकाल में बड़े -बड़े अपराधी वह जिला छोड़ देते थे जिन जिलों में श्री गौतम व श्री कुणाल की तैनाती होती थी। 

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भूली बिसरी याद

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सन 1975 के जून का महीना ऐतिहासिक घटनाओं के लिए चर्चित रहा।

उन दिनों जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में आंदोलन जारी था।

 5 जून, 1975 को बिहार के राज्यपाल को ज्ञापन दिया गया।

उस ज्ञापन में विधान सभा भंग करने की मांग थी। 

जब हजारों लोग गवर्नर को ज्ञापन देकर लौट रहे थे तो जुलूस के एक ट्रक पर पटना के बेली रोड पर गोलियां चलाई गई।एक विधायक के सरकारी आवास से गोलियां चली थीं।

उस कारण वह विधायक गिरफ्तार भी हुआ।

  उस घटना से आम लोगों में गुस्सा बढ़ा।

उसी साल 12 जून को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी का लोक सभा चुनाव खारिज कर दिया।

12 जून को ही यह खबर आई कि कांग्रेस गुजरात विधान सभा चुनाव हार गई।

25 और 26 जून के बीच की रात में देश में इमरजेंसी लगा दी गई।

जयप्रकाश नारायण सहित प्रतिपक्ष के लगभग सारे बड़े नेता गिरफ्तार करके देश के विभिन्न जेलों में भेज दिए गए।अखबारों पर कड़ा सेंसर लगा दिया गया।

किसी एक महीने में एक साथ इतनी बड़ी- बड़ी घटनाएं नहीं हुईं।

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    और अंत में

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बिहार में एक बार फिर यह मांग उठ रही है कि पंचायत चुनाव दलीय आधार पर होना चाहिए।

यह मांग सही लगती है।

यदि ऐसा हुआ तो पंचायत व नगर निकाय स्तरों के जन प्रतिनिधियों पर राजनीतिक दलों का नियंत्रण रहेगा।

आज तो किसी तरह का नियंत्रण नहीं है।

साथ ही, राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं की व्यावहारिक ट्रंेनिंग पंचायत स्तर से ही शुरू हो जाएगी।

पूर्व केंद्रीय मंत्री हुकुमदेव नारायण यादव अपने गांव के मुखिया रह चुके थे।

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कानोंकान

प्रभात खबर

पटना 4 जून 21


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