रविवार, 6 जून 2021

 


    जन भावना व सरजमीन से कटे नेतागण

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     --सुरेंद्र किशोर--

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पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी.चिदंबरम ने कहा कि नोटबंदी लागू करके केंद्र सरकार ने देश के 45 करोड़ लोगों की आर्थिक कमर तोड़ दी।

-- प्रभात खबर - 14 दिसंबर 2016

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2017 में उत्तर प्रदेश विधान सभा का चुनाव हुआ।

राजग को वहां की विधान सभा में तीन- चैथाई बहुमत मिल गया।

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इस रिजल्ट से यह साबित हो गया कि नोटबंदी से किसकी कमर टूटी थी !!

पूर्व वित्त मंत्री साहब ,सरजमीन से कितना कट चुके हैं आप !

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2017 में जी.एस.टी.लागू की गई।

उस पर राहुल गांधी ने कहा कि जी.एस.टी.तो गब्बर सिंह टैक्स है।

उसके तत्काल बाद गुजरात विधान सभा का चुनाव हुआ।

भाजपा वहां एक फिर सत्ता में आ गई।

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बिहार विधान सभा चुनाव से ठीक पहले लाखों मजदूर पैदल ही दिल्ली -पंजाब और अन्य जगहों से बिहार-उत्तर प्रदेश लौट रहे थे।

उन मजदूरों की मर्मांतक पीड़ा की मार्केंटिंग करके अनेक प्रतिपक्षी नेतागण बिहार चुनाव को लेकर भविष्यवाणियां कर रहे थे।

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पर, राजग बिहार में एक बार फिर सत्ता में आ गया।

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अब कोरोना विपत्ति को प्रतिपक्ष ने राजनीतिक हथियार बना रखा है।

उत्तर प्रदेश के भावी चुनाव (2022) व 2024 के लोस सभा चुनाव के लिए।

देखना है आगे -आगे क्या होता है !

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वैसे अपवादों को छोड़ कर पिछले चुनाव रिजल्ट

यही बताते हैं कि अधिकतर मतदातागण सत्ताधारी की मंशा व नीयत देखते हैं।

यदि कोई सरकार चलाता है तो वह यदि अच्छे काम करता है तो भी उससे कुछ कमियां -गलतियां भी जाने-अनजाने  होती ही रहती हैं। 

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 मान लीजिए कि आप के यहां अक्सर करीब आधा दर्जन मित्र चाय पर गपशप करने आते हैं।

उनके लिए तो आपके यहां चाय,दूध, चीनी आदि की व्यवस्था रहती ही है।

 पर किसी दिन यदि आपके 100 परिचित व उनके मित्र पूर्व सूचना दिए बिना आ धमकें और तुरंत चाय पिलाने की जिद करने लगें तो क्या आप उन्हें चाय पिला पाएंगे ?

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कोविड विपत्ति वैसी ही एक अचानक विपदा है।

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लोक सभा व विधान सभाओं के कितने सदस्यों ने पिछले दो -तीन वर्षों में देश व राज्यों की स्वास्थ्य सेवाओं पर सदन में सवाल पूछे हैं ?

  कितनों ने इस पर आधे घंटे की चर्चा की मांग की है ?

कितनों ने जीरो आॅवर में जर्जर स्वास्थ्य व्यवस्था का मामला उठाया है ?

 कितनों ने ध्यानाकर्षण सूचना दी है ?

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शायद ही किसी ने दी होगी जबकि इस देश की स्वास्थ्य संरचनाओं की दुर्दशा का हाल सबको मालूम है।

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पर अधिकतर जन प्रतिनिधियों की प्राथमिकताएं बदल चुकी हैं।

सदन में हल्ला-गुल्ला करके अपनी उपस्थिति जताने के अलावा कितने लोग सार्थक चर्चा में रूचि रखते हैं ?

प्रश्न,ध्यानाकर्षण,जीरो आवर और आधे घंटे की डिबेट से सरकार पर दबाव बनता है। कई बार सरकारें अपनी गलती सुधारने व कुछ बेहतर करने को मजबूर हो जाती है।

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--सुरेंद्र किशोर

5 जून 21 


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