मंत्री पद से हटा दिए गए तो असंतुष्ट हो गए।
सदन में पहंुचने का दूसरा मौका नहीं मिला तो पार्टी छोड़ दी।
यह सब अब स्वार्थी राजनीति का आम चलन हो गया है।
इस स्थिति में विभिन्न दलों के ऐसे नेताओं की सूची बननी चाहिए जो टिकट कटने के बावजूद पार्टी में बने रहते हैं।
साथ ही, उन लोगों की भी सूची बने जो मंत्री पद से हटाए जाने के बावजूद दल या सुप्रीमो से नाराज नहीं होते।
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इस स्थिति के दो अपवाद मुझे फिलहाल नजर आते हैं।
अपवाद और भी होंगे किंतु मुझे उनके बारे में पता नहीं।
पता चलेगा तो उन पर भी लिख दूंगा।
राजद के जगदानंद सिंह और जदयू के नीरज कुमार अपवाद स्वरूप लगते हैं।
नीरज कुमार पहले बिहार में मंत्री थे।
अब नहीं हैं।
फिर भी मैं देखता हूं कि जदयू व उसके नेता नीतीश कुमार के प्रति नीरज कुमार का समर्थन व प्रशंसा के भाव पहले जैसे ही हैं।
जगदानंद सिंह लगातार लालू प्रसाद व राजद के प्रति प्रतिबद्ध बने हुए हैं।
जबकि चुनाव हारने के बाद भी न तो वे राज्य सभा में हैं और न ही विधान परिषद में।
मैं यहां यह नहीं कह रहा हूं कि वे उच्च सदन की सदस्यता चाहते हैं।
कुछ तथाकथित लाॅयल नेता भी पीछे में अपने सुप्रीमो की आलोचना यदाकदा कर देते हैं।
पर, जगदा जी को पीठ पीछे भी कभी आलोचना करते नहीं सुना।
यह लिखने का मेरा आशय सिर्फ यही है कि आप चाहे जिस दल रहें,जन सेवा भाव से रहें।
सिर्फ मेवा प्राप्ति के लिए नहीं।
उससे राजनीति बेहतर होगी और लोगों की राय राजनीति के प्रति बदलेगी।
सफल लोकतंत्र के लिए यह जरूरी तत्व है।
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सुरेंद्र किशोर
25 फरवरी 22
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