चारा घोटाले की जांच के दौरान
जांच एजेंसी व पत्रकार दहशत में थे
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सुरेंद्र किशोर
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जिन दिनों पटना हाईकोर्ट की सतत निगरानी में सी.बी.आई.चारा घोटाले से संबंधित मामलों का अनुसंधान कर रही थी,उन दिनों जांच एजेंसी के लोगों व कुछ पत्रकारों को कठिन समय से गुजरना पड़ा था।
उनके परिजन भी दहशत में थे।
आज रांची की अदालत ने जिन लोगों को सजा दी है,उनमें से एक आरोपित ने दो पत्रकारों पर अपना खास निशाना साधा था।
तब वह बेऊर जेल में था।
उसके एक जेल सहयात्री के अनुसार उसने जेल में गपशप के दौरान कहा था कि जेल से निकलने के बाद फलां (अंग्रेजी अखबार के संवाददाता) की मुड़ी काट दूंगा।
दूसरे पत्रकार (हिन्दी अखबार के संवाददाता) के बारे में कहा था कि उसकी बांह काट दूंगा।
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सी.बी.आई.के संयुक्त निदेशक डा.यू.एन.विश्वास ने पटना में संवाददाताओं को तब बताया था कि
‘‘मैं जब भी कोलकाता से पटना के लिए रवाना होता हूं तो अपनी पत्नी को यह कहकर आता हूं कि शायद मैं नहीं लौटूं।’’
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चारा घोटाले के खिलाफ जनहित याचिका दाखिल करने वालों व चारा घोटालेबाजों के खिलाफ अभियान चलाने वाले नेताओं को तो बाद में तरह-तरह के पद मिले।
मिलने भी चाहिए थे।
किंतु पत्रकारों और जांचकत्र्ताओं को क्या मिला ?
सिर्फ अपमान,धमकी और गाली -गलौज।
हालांकि पत्रकार किसी पुरस्कार के लिए तब खतरा नहीं उठा रहे थे।
वे अपनी ड्यूटी कर रहे थे।
वह भी एक तरह की जन सेवा ही थी।
रांची अदालत ने अंततः यह साबित कर दिया कि उनकी ड्यूटी सच पर आधारित थी।
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21 फरवरी 22
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