आज कौन याद करता है
डा.गोरखनाथ सिंह को !
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सुरेंद्र किशोर
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गोरख कहां है ?
यही सवाल प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू से किया था ब्रिटिश अर्थशास्त्री हिक्स ने।
प्रधान मंत्री को गोरख यानी डा.गोरखनाथ सिंह के बारे में कुछ पता नहीं था।
नेहरू जी को यह भी कैसे पता होता कि कैब्रिज के सेकेंड टाॅपर का यह सवाल अपने बैच के टाॅपर के बारे में था।
खैर, डा.गोरखनाथ सिंह के बारे में छात्र जीवन में ही अपने गांव और छपरा में मैंने सुन रखा था।
वे बिहार के सारण जिले के मढ़ौरा के पास के एक गांव के मूल निवासी थे।
जब मैं छात्र था तो एक दूसरे संदर्भ में गोरख बाबू का नाम सुनता रहता था।
जब किसी छात्र को यह कहा जाता था कि खैनी यानी तम्बाकू मत खाओ।
इससे दांत जल्दी टूट जाएंगे तो जानते हैं वह क्या जवाब देता था ?
वह कहता था कि यह बुद्धिवर्धिनी चूर्ण है।
इसे गोरख बाबू भी खाते थे।
यह बात सही है कि गोरख बाबू तम्बाकू चूर्ण यानी खैनी खाते थे।
किंतु वे साथ- साथ एक विलक्षण प्रतिभा वाले अर्थशास्त्री भी थे।
उन्हें जानने वाले बताते हैं कि उनकी छपने वाली एक किताब की पांडुलिपि को ही उनकी अशिक्षित पत्नी ने चूल्हे में झोंक दिया था।
उसमें नई थ्योरी लिखी गई थी।
खैर,गोरख बाबू पटना काॅलेज के प्रिंसिपल थे।
मौजूदा ए.एन.सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान के निदेशक थे और बिहार सरकार के डी.पी.आई.भी रहे थे।
उनका साठ के दशक में निधन हो गया।
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पुनश्चः,गोरख बाबू के बारे में मुझे तो इतना ही मालूम है।
किन्हीं व्यक्ति कुछ और पता हो तो जरूर लिखें।
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फेसबुक वाॅल से
29 जनवरी 22
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